कहां तो किसान आंदोलन के बाद से ही कहा जाने लगा था कि भाजपा आलाकमान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को चलता कर सकते हैं, क्योंकि मंदसौर में हुई पुलिस फायरिंग में 6 किसान मारे गए थे जिससे पार्टी की साख पर बट्टा लगा और असल इमेज नरेंद्र मोदी की बिगड़ी. खुद शिवराज सिंह इन अफवाहों और अटकलों से चिंतित थे, जिसे दूर करने जरूरी हो चला था कि वे ऐसा कोई नया कारनामा कर दिखाएं, जिससे न केवल कांग्रेसियों बल्कि पार्टी के अंदर बढ़ रहे उनके विरोधियों के मुंह भी अगले विधानसभा चुनाव तक बंद हो जाएं और मीडिया भी बेवजह हल्ला मचाना बंद कर दे.

18 से 20 अगस्त तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का भोपाल दौरा हर लिहाज से शिवराज सिंह को सुकून देने वाला साबित हुआ, जिसके पहले ही दिन अमित शाह ने शिवराज सिंह को हटाये जाने वाली अटकलों को खारिज करते यह कहा कि अगला विधानसभा चुनाव शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में ही लड़ा जाएगा और वे एक कामयाब और लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं. एक तरह से उन्हें किसान आंदोलन के बाद का डेमेज, मेनेज करने का इनाम मिल गया. इस बाबत शिवराज सिंह को कितना पसीना बहाना पड़ा ये तो वही जानते हैं, लेकिन यह हर किसी ने देखा कि सरकारी पैसे को पूरी बेरहमी के साथ बहाया गया.

अमित शाह का भगवा बना दिये गए भोपाल में देवताओं और अवतारों सरीखा ऐसा स्वागत किया गया जिसके लिए भाजपा कभी कांग्रेस को बदनाम किया करती थी. पहले ही दिन उनकी राह में लाखों रुपये के गुलाब के फूल बिछा दिये गए. भाजपा का हबीबगंज स्थित दफ्तर दुल्हनों जैसा सजाया गया था, जिसमें अलग से एक कमरा खासतौर से तैयार करवाया गया था. अमित शाह के स्वागत के प्रचार प्रसार पर ही करोड़ों रुपये इश्तिहारों, बैनरों और होर्डिंग्स पर खर्चे गए, इसके अलावा तीन दिन चले सामूहिक भोजों के व्यंजनों और पकवानों पर भी दिल खोल कर खर्च किया गया. यह तामझाम और फिजूल खर्ची देख सहज ही लगा कि सूबे में गरीबी नाम की कोई चीज है या किसी को किसी भी तरह की कमी है.

किसान आंदोलन कांग्रेसियों की साजिश या फिर गुंडे बदमाशों की ही हरकत थी, यह न केवल जताने बल्कि साबित करने में भी शिवराज सिंह कामयाब रहे कि जिस राज्य में एक आदमी की खुशामद करने करोड़ो रुपये 72 घंटों में उड़ाए जा सकते हैं, वहां के अन्नदाता को तो कोई कमी हो ही नहीं सकती, फिर भला वे क्यों आंदोलन का रास्ता चुनेंगे. यह बात खुद अमित शाह को तीन दिन में तरह तरह से समझ आई कि जिस मुख्यमंत्री के एक इशारे पर पूरी प्रदेश भाजपा एकजुट होकर उनके पांवों में बिछी जा रही हो, वो कैसे अलोकप्रिय या किसान विरोधी हो सकता है. लिहाजा उन्हें किसान हत्याओं के आरोपों से बाइज्जत न केवल बरी कर दिया गया, बल्कि अगली बार भी मुख्यमंत्री बनाए जाने का आशीर्वाद दे दिया गया.

खर्चीले स्वागत सत्कार और अपनी जय जय कार के नारों में सुदबुध खो बैठे  अमित शाह यह स्वीकार करने मजबूर हो गए कि मध्य प्रदेश में जिस नेता की अगुवाई में भाजपा फिर से सत्ता तक पहुंच सकती है वे शिवराज सिंह चौहान ही हैं, दूसरे किसी नेता में इतना दम नहीं. गणेश की झांकियों के एक हफ्ते पहले ही शिवराज सिंह ने भोपाल में अमित शाह की ऐसी झांकी जमाई कि उनके जाने की बात सुनने की मंशा लिए बैठे उनके विरोधी तो दूर की बात हैं, अमित शाह से उनकी चुगली करने की सोचने वाले भाजपाई भी चुपचाप खिसक लिए या फिर खामोशी ओढ़े इस झांकी को निहारते रहे, जिसमें शिवराज सिंह ने नरेंद्र मोदी की तुलना भगवान से कर डाली.

अमित शाह ने तो नरेंद्र मोदी की तारीफों में कसीदे भर गढ़े थे, बाकी की कसर उन्हे शिवराज सिंह के मुंह से भगवान कहलवाकर यह संदेशा दे दिया गया कि जमाना या युग आज भी भक्ति का ही है, इसे जो ज्यादा करेगा उसकी झोली में उतना ही डाला जाएगा.  दिल्ली वाले  भगवान के यहां न तो देर है और न ही अंधेर है. ऐसे माहौल में, पार्टी में अंदरूनी लोकतन्त्र है जैसी चलताऊ बात सुनकर जरूर कुछ लोगों को अमित शाह पर शायद  तरस आया हो, लेकिन उसके कोई माने नहीं रह गए थे इसकी दूसरी वजह अमित शाह का सबसे पहले पंडित नरोत्तम मिश्रा के यहां खाना खाने जाने था, जो पेड़ न्यूज के मामले में कानूनी तौर पर उलझे हुये हैं.

तीन दिन अमित शाह शिवराज सिंह को बगल में लटकाए सत्ता और संगठन का नया पहाड़ा पढ़ाते रहे, जिसमे टू टू जा फोर होता है दो दूनी चार नहीं होता. अमित शाह की ब्रांडिंग के लिए पुराने लेकिन अचूक टोटकों का जी भर कर इस्तेमाल किया गया, साधू संतों को उनसे मिलवाया गया और फिर आखिरी दिन एक आदिवासी कमल ऊईके के घर उन्हें मालवा के मशहूर पकवान  दाल बाफले खिलाने ले जाया गया.  कोई किसी तरह का आरोप न लगा पाये इस बाबत मीडिया वालों को पहले ही इसकी इत्तला दे दी गई थी, जिससे वे दाल बाफले बनने का सीधा प्रसारण करते रहे. कोई नहीं कह पाया  कि ये दाल बाफले बाजार से मंगवाए गए थे या फिर गुपचुप किसी ऊंची जाति वाले से बनवाए गए थे.  आजकल नेताओं के दलित आदिवासियों के घर जाकर खाना खाने के फैशन के दौर में बाद तो दूर कभी कभी एडवांस में ही इस तरह के आरोप मढ़ दिये जाते हैं.

इसी दिन प्रदेश भर के कालेजों से छात्र छात्राएं ढो कर भोपाल लाये गए थे. मुख्यमंत्री मेधावी छात्र योजना के तहत 25 हजार युवा शिवराज सिंह ने अमित शाह के सामने ला खड़े किए तो वे और हक्के बक्के रह गए कि शिवराज सिंह जितना जमीन के बाहर हैं उससे कहीं ज्यादा जमीन के अंदर भी हैं. इस जलसे में सरकार के तकरीवन 25 करोड़ रुपये खर्च हुये, लेकिन सवाल जब राजर्षि को प्रसन्न करने का था तो पैसा नाम के हाथ का मैल देखने की जहमत शिवराज सिंह चौहान ने नहीं उठाई, उल्टे यह जता दिया कि सरकार किसान आंदोलन के बाद किसानों की नाराजी से बचने अरबों रुपये की प्याज उनसे खरीदकर सड़ाने का सीना रखती है, तो सौ दो सौ करोड़ रुपये पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को खुश करने खर्च कर दिये तो कोई गुनाह नहीं कर रही.

अब सब खामोश हैं, चारों तरफ शिवराज सिंह चौहान की एक और फतह के चर्चे हैं, तो कुछ पुराने और तजुर्बेकार भाजपाइयों को दिग्विजय सिंह का अंजाम याद आ रहा है. ऐसे ही एक बुजुर्ग नेता ने नाम न छापने की गुजारिश पर आह भरते कहा, अब वाकई पार्टी का चरित्र, चाल और  चेहरा सब बदल चुका है, जिसमें प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की नहीं बल्कि कांग्रेस की तरह चाटुकार नेताओं की तूती बोल रही है.  कांग्रेसी खेमा तो इसी बात की दुआ मांग रहा था कि भाजपा अगला चुनाव शिवराज सिंह की अगुवाई में ही लड़े, चिंता की बात तो यह है कि अमित शाह इस दुआ को कबूल कर गए.

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