आमतौर पर चुनावों के दौरान या फिर सियासी जलसों के वक्त ही मध्य प्रदेश में नजर आने वाले 2 बड़े कांग्रेसी नेता कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की कोशिश यह रहने लगी है कि वे ज्यादा से ज्यादा प्रदेश ही में दिखें. तकरीबन 2 साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सियासी बिगुल बज उठा है. कांग्रेसी जगहजगह सियासी जलसे कर शिवराज सिंह चौहान की अगुआई वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार को उखाड़ फेंकने का दम भरने लगे हैं. इस की असल वजह यह नहीं है कि कांग्रेस यहां बहुत मजबूत हो गई है, बल्कि यह है कि भाजपा अब पहले के मुकाबले कमजोर पड़ने लगी है.

वैसे, कुछ महीने पहले तक कांग्रेसी जलसों का फीकापन हर किसी को नजर आता था, लेकिन किसान आंदोलन, जिस में मंदसौर में पुलिस फायरिंग में 6 किसान मारे गए थे, कांग्रेस के लिए वरदान साबित हुआ. किसान आंदोलन से कांग्रेस का कोई सीधा वास्ता नहीं था, लेकिन भाजपा से किसानों की नाराजगी जब उजागर हुई, तो कांग्रेस एकाएक ही उम्मीद के सागर में डुबकियां लगाते हुए हरकत में आ गई.

तेजी से बनतेबिगड़ते सियासी समीकरणों के बीच कांग्रेस की कोशिश अपना खोया हुआ परंपरागत वोट बैंक और साख हासिल करने की है. परंपरागत वोट बैंक यानी दलित, आदिवासी और कुछ पिछड़ों के अलावा मुसलिम वोट एकजुट हो जाएं, तो तख्ता पलटने में देर नहीं लगेगी.

कांग्रेस ने यह वोट बैंक अपने हाथों और हरकतों से खोया था, जिस के एकलौते जिम्मेदार दिग्गज कांगे्रसी नेता दिग्विजय सिंह माने जाते हैं. 10 साल मुख्यमंत्री रहते हुए दिग्विजय सिंह ने अपनी ही पार्टी की लुटिया डुबोने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. नतीजतन, साल 2003 के विधानसभा चुनावों में वोटर ने उन्हें खारिज कर दिया था.

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