फिल्मों में घुड़सवारी या घोड़े दौड़ाते हीरोहीरोइन को देख कर मन में घुड़सवारी का शौक तो जरूर जागता है. ऐसा नजारा लाइव भी है, जिस में घोड़े रेस लगा कर एकदूसरे से आगे निकलने की कोशिश करते हैं ताकि वे खुद पर सवार प्रतियोगी को जिता सकें. दुनियाभर में न केवल इंसानों की प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं बल्कि जानवरों के शोज व प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है ताकि कुछ हट कर होने के कारण ज्यादा ऐंटरटेनमैंट हो सके.
क्या है हौर्स रेस प्रतियोगिता
हौर्स रेस आज की नहीं बल्कि पुराने समय से चली आ रही प्रतियोगिता है, जिसे लोगों ने हमेशा पसंद किया है. यह एक ऐसा खेल है, जिस में प्रतियोगिता के लिए चयनित घोड़ों पर सवार प्रतियोगी घोड़ों को दिशानिर्देश देते हुए बिना गिरे औरों से पहले अपने लक्ष्य तक पहुंचने की कोशिश करते हैं.
इस में सिर्फ एक ही टास्क नहीं बल्कि विभिन्न तरह के टास्क होते हैं, जिन्हें विभिन्न राउंड्स के रूप में पूरा कर अपना गोल अचीव करना होता है. इस में विभिन्न राउंड्स होते हैं. किसी राउंड में एक ही नस्ल के घोड़े भाग लेते हैं, किसी राऊंड में उन्हें बाधाओं को पार करते हुए आगे बढ़ना होता है, तो किसी राउंड में निश्चित दूरी को कम समय में तय करना होता है. किसी में अलगअलग ट्रैक पर दौड़ना होता है. फिर इसी के आधार पर बैस्ट परफौर्मर को विजेता घोषित किया जाता है. इस प्रतियोगिता में दुनियाभर से लोग भाग लेने आते हैं.
संभल कर आगे बढ़ना जरूरी
जब भी हम कभी हिल स्टेशन घूमने जाते हैं, वहां हौर्स राइडिंग का लुत्फ उठाना नहीं भूलते. भले ही हमें राइडिंग आती हो या नहीं, लेकिन यह सोच कर ट्राई जरूर करते हैं कि साथ में हमें संभालने वाला और घोड़े को कंट्रोल करने वाला है.
जब यही बात प्रतियोगिता के लिए आती है तब वहां न तो कोई संभालने वाला होता है और न ही गिरने पर उठाने वाला. वहां सबकुछ खुद ही हैंडिल करना होता है, इसलिए यहां थोड़ा संभल कर कदम रखना जरूरी होता है. सो इस के लिए प्रशिक्षण लेना जरूरी हो जाता है.
घोड़े पर बैठने से पहले अच्छी तरह सोच लें कि आप को घोड़े पर सवार होना व उसे आगे बढ़ने के लिए ठीक तरह से संकेत देना आता हो. इस के लिए जरूरी है कि आप अपने घोड़े के साथ सभी जरूरी तैयारी कर लें यानी उस के साथ ऐसी दोस्ती गांठें कि जब आप उस पर बैठें तो उसे एहसास हो जाए कि यही मेरा मालिक है जिसे जिताना है. इस में दोनों के स्किल्स और दोनों का ही प्रशिक्षित होना जरूरी है.
प्रशिक्षण
घोड़ों का ट्रेनिंग प्रोग्राम रेस की अवधि पर निर्भर करता है. घोड़े की परफौर्मैंस में आनुवंशिक कारण, ट्रेनिंग, उम्र वगैरा का अहम रोल होता है. घोड़े की प्रजाति पर भी उस की फिटनैस निर्भर करती है. इस के अलावा जब उसे ट्रेनिंग दी जाती है, तो उस के आनुवंशिक कारणों को भी ध्यान में रखा जाता है. ट्रेनिंग के दौरान उस के खानेपीने, उसे चोट न लगे इन चीजों का खासतौर से ध्यान रखा जाता है, क्योंकि चोट लगने से घोड़े की सीखने की क्षमता प्रभावित होती है.
हौर्स रेसिंग के प्रकार
फ्लेट रेसिंग : इस में घोड़े सीधी या फिर अंडाकार बनी सतह पर तेजी से दौड़ते हुए आगे बढ़ते हैं. इस में थरोब्रैड, क्वार्टर, अरबी, पेंट और एप्पालूसा नामक नस्ल के घोड़े इस्तेमाल किए जाते हैं.
जंप रेसिंग : इसे आप एक तरह से खतरों का खेल कह सकते हैं, क्योंकि इस में घोड़े ऊंचाई से जंप करते हुए आगे बढ़ते हैं. इस में थरोब्रैड जैसी नस्ल के घोड़े प्रयोग में लाए जाते हैं.
हारनैस रेसिंग : इस रेस में जब घुड़सवार घोड़े को मंदगति से खींचता है, तो वह धीरेधीरे अपने कदम आगे बढ़ाता है. इस में स्टैंडर्ड नस्ल के घोड़ों का प्रयोग होता है.
एंडुरैंस रेसिंग : इस रेस में बाकी रेसों की तुलना में डिस्टैंस ज्यादा होता है.
हौर्स रेसिंग इन इंडिया
देश में होर्स रेसिंग का खेल 200 साल पुराना है. यहां पहली रेसकौर्स चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में 1777 में आयोजित की गई थी. इस तरह के आयोजनों के लिए यहां 6 टर्फ क्लब हैं,
बैंगलुरु टर्फ क्लब साल में 2 बार, मई से अगस्त और नवंबर से अप्रैल के महीनों में रेसिंग प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है.
हैदराबाद टर्फ क्लब जुलाई से अक्तूबर और नवंबर से फरवरी के बीच प्रोग्राम आयोजित करता है. इस के अलावा रौयल कलकत्ता टर्फ क्लब, नवंबर से अप्रैल और जुलाई से अक्तूबर के बीच, रौयल वैस्टर्न इंडिया टर्फ क्लब मुंबई में नवंबर से मई के बीच और पूना में जुलाई से नवंबर के बीच, मैसूर रेस क्लब अगस्त से अक्तूबर के बीच व दिल्ली टर्फ क्लब मई से अगस्त के बीच हौर्स रेसिंग प्रतियोगिता का आयोजन करते हैं.
इसी तरह इस वर्ष मार्च में साउथवैस्ट के इंगलैंड के ग्लूस्टरशायर शहर में चैल्टेनहैम फैस्टिवल हौर्स रेसिंग का आयोजन किया गया, जिसे सब ने खूब ऐंजौय किया.
दर्शक कैसे ऐंजौय करते हैं
हौर्स राइडिंग का लुत्फ सिर्फ घुड़सवार ही नहीं उठाता बल्कि देखने वाले भी उसे ऐसे अनुभव करते हैं जैसे वे खुद मैदान में हों. इतना ही नहीं वे रेस शुरू होने से पहले शर्त लगाने में भी पीछे नहीं रहते. इस से उन्हें खेल देखने में और मजा आता है, क्योंकि जीतने वाले को प्राइज जो मिलता है. इतना ही नहीं दर्शकों की शो के प्रति ऐक्साइमैंट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे शो शुरू होने के काफी देर पहले ही प्रतियोगिता स्थल पर पहुंच जाते हैं ताकि किसी भी कीमत पर शो मिस न होने पाए और वे हर ऐडवैंचर को अपनी आंखों से देख पाएं. आखिर घुड़दौड़ के प्रति इतना दीवानापन जो है.
खतरे भी कम नहीं
यह खेल बहुत रोमांचक होता है, इस में घोड़े और घुड़सवार दोनों को ही टास्क के दौरान चोट लगने का डर रहता है, क्योंकि कई बार घोड़ा कुछ ज्यादा ही तेजी से जंप लगाने के कारण खुद तो गिरता ही है साथ ही अपने घु़ड़सवार को भी गिरा देता है. ऐसे में चोट वगैरा न लगे इसलिए दोनों का ही प्रशिक्षण लेना जरूरी होता है.
बाकी प्रतियोगिताओं की तरह घुड़दौड़ भी अपनी तरह की एक अलग प्रतियोगिता है जिसे घु़ड़सवार से ले कर दर्शक तक सभी ऐंजौय करते हैं.