भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में नैपोटिज्म तो नहीं है, लेकिन गुटबाजी का जम कर बोलबाला है. यहां हीरोवाद, हीरोइनवाद, कंपनीवाद, निर्मातावाद, निर्देशकवाद, गायकवाद और वितरकवाद हावी है.

भोजपुरी सिनेमा में ग्रुपबाजी का सब से ज्यादा शिकार नए हीरोहीरोइन और गायक हो रहे हैं. भोजपुरी सिनेमा में अगर कोई गायन में तेजी से उभर रहा है, तो बड़े गायक और ऐक्टर उस के गाने और फिल्में रिलीज होने से रोकने के लिए पूरे जतन करते हैं.

भोजपुरी सिनेमा 2 सब से बड़े ग्रुपों में बंटा हुआ है, जिस में पहला खेसारीलाल का ग्रुप है और दूसरा पवन सिंह का ग्रुप है. इन दोनों ऐक्टरों के खेमों के अपनेअपने निर्माता और निर्देशक हैं. गाने रिलीज करने वाली म्यूजिक कंपनियां हैं और दोनों खेमों के अपनेअपने पसंदीदा सपोर्टिंग ऐक्टर व टैक्निशियन भी हैं. इन ऐक्टरों के

साथ कुछ खास हीरोइनों को ही काम मिलता है.

इस के अलावा छोटे और मझोले ऐक्टरों के भी अपनेअपने गुट हैं, जो अलगअलग लोगों के साथ ही फिल्में शूट करते हैं.

भोजपुरी सिनेमा की जानीमानी हीरोइन अक्षरा सिंह भी ग्रुपबाजी का शिकार हो चुकी हैं. उन्होंने 25 जून, 2020 को अपने यूट्यूब और दूसरे सोशल मीडिया एकाउंट पर 25 मिनट, 37 सैकंड का वीडियो जारी कर भोजपुरी में गुटबाजी पर खुल कर बोला था कि भोजपुरी सिनेमा में गुटबाजी इस कदर हावी है कि इस का शिकार छोटेबड़े कलाकार और सपोर्टिंग ऐक्टर तक हो चुके हैं.

अक्षरा सिंह ने उस वीडियो में खुल कर आरोप लगाया था कि ‘जब मैं किसी एक हीरो के साथ काम करती थी, तो दूसरे ग्रुप के हीरो मुझे फिल्म में काम नहीं करने देते थे. इस गुटबाजी का शिकार सिर्फ हीरोहीरोइन ही नहीं होते, बल्कि इस का शिकार फिल्म निर्देशक और टैक्निशियन भी होते हैं.’

अक्षरा सिंह ने भोजपुरी सिनेमा में होने वाली गुटबाजी को ले कर आगे कहा कि ‘मुझे गुटबाजी के चलते कई फिल्मों से निकाल दिया गया. जो लोग मेरा सहयोग करना चाहते थे, वे दूसरे ग्रुप से जुड़े होने के चलते चाह कर भी सहयोग नहीं कर पा रहे थे.’

अक्षरा सिंह ने वीडियो में यह भी बताया कि जब ग्रुपबाजी का शिकार होने के बाद उन के पास फिल्मों में करने के लिए कोई काम नहीं था, तो मुंबई में पैर जमाए रखने के लिए उन्होंने अलबम में गीत गाने शुरू कर दिए.

जब अक्षरा सिंह के गाने हिट होने शुरू हुए और पैसे आने शुरू हो गए, तो ग्रुपों में बंटे बड़े ऐक्टर और गायक म्यूजिक कंपनियों से उन के गाने रिलीज होने से रोकने लगे.

उन्होंने आरोप लगाया कि कई म्यूजिक कंपनियों के मालिकों ने फोन कर के कहा कि वे उन के गाने रिलीज नहीं कर सकते हैं, क्योंकि कई बड़े ऐक्टरों और गायकों ने उक्त कंपनी के लिए गाने और फिल्में करने से मना कर दिया है.

यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब भोजपुरी सिनेमा में अक्षरा सिंह जैसी बड़ी कलाकार ग्रुपबाजी का शिकार हो सकती हैं, तो इंडस्ट्री में नया कदम रखने वाले लोग किस कदर शिकार होते होंगे.

एक फिल्म निर्माता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री ऐसी है, जो सिर्फ आपसी खींचतान और गुटबाजी के लिए जानी जाती है. इस का नतीजा यह होता है कि गुट के लोगों को ही काम मिलता है, दूसरा कितना ही टैलेंटेड क्यों न हो, उसे काम नहीं दिया जाता है.

अगर कोई नया हीरो, गायक, राइटर, टैक्निशियन आगे बढ़ने की कोशिश करता है, तो भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में जिन की तूती बोलती है और जो बड़े चेहरे हैं, वे म्यूजिक कंपनियों को घुटने टेकने पर मजबूर कर देते हैं. फिर चाहे कोई लाख बड़ा गायक हो, लाख अच्छी ऐक्टिंग आती हो, आप के न गाने रिलीज हो पाएंगे और न ही इंडस्ट्री में काम मिलेगा.

हीरो तय करता है…

भोजपुरी सिनेमा के एक उभरते हुए ऐक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भोजपुरी सिनेमा में फिल्म की कास्टिंग में सब से ज्यादा दखलअंदाजी गायक से नायक बने बड़े ऐक्टरों की है.

उन्होंने आरोप लगाया कि ये बड़े ऐक्टर ही तय करते हैं कि उन की फिल्म में कौन सी हीरोइन रहेगी, कौन फिल्म का निर्देशन करेगा, कौनकौन से लोग सपोर्टिंग ऐक्टर के रूप में काम करेंगे और कौन फिल्म में टैक्निशियन के रूप में काम करेगा.

भोजपुरी सिनेमा में कभी काजल राघवानी के पास फिल्मों की लाइन लगी रहती थी. इस की वजह यह थी कि उन की और खेसारीलाल यादव की जोड़ी हिट मानी जाती थी. ऐसे में काजल को खेसारीलाल की फिल्मों के साथ उन के गुट के दूसरे निर्माताओं की फिल्मों में भी काम मिलता था. लेकिन खेसारीलाल और काजल के विवाद के बाद जब दोनों की जोड़ी टूट गई, तो अब काजल राघवानी के पास फिल्मों में काम न के बराबर है.

इस की महज यही वजह है कि खेसारीलाल की भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में तूती बोलती है और उन के नाराज होने के डर से कोई भी फिल्मकार काजल को अपनी फिल्म में काम देने से डरता है.

यही हाल कमोबेश अक्षरा सिंह का भी हुआ था. पवन सिंह के साथ विवाद होने के बाद अक्षरा सिंह के पास काम ही नहीं रह गया था. तब उन्होंने गायन का रास्ता अख्तियार किया और बाद में जा कर वे कुछ हद तक भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में वापसी कर पाईं.

जातियों में बंटे फैन

भोजपुरी सिनेमा में जातिवाद का बोलबाला सब से ज्यादा है. जहां एक तरफ पिछड़ी जातियों के लोग खेसारीलाल के समर्थक हैं, वहीं अगड़ी जातियों के समर्थक पवन सिंह, रितेश पांडेय, प्रदीप पांडेय ‘चिंटू’ वगैरह के समर्थक हैं. कई बार ये समर्थक इन ऐक्टरों के सोशल मीडिया पोस्ट पर ही आपस में भिड़ जाते हैं और गालीगलौज व धमकियां देने पर उतर आते हैं.

अहंकार भी है वजह

भोजपुरी सिनेमा में गुटबाजी की जो खास वजह सामने आती है, वह बड़े और चर्चित कलाकारों की लोकप्रियता और अहम भी है, जो अकसर विवाद की वजह बनते हैं. अगर हम खेसारीलाल, पवन सिंह, रितेश पांडेय के आपसी टकराव पर नजर डालें, तो अकसर इस को ले कर बयान सामने आते रहते हैं.

एक वीडियो में खेसारीलाल ने अपशब्द बोलते हुए कहा था कि प्रमोद प्रेमी, रितेश, ‘कल्लू’ और समर सिंह की औकात 5 लाख से ज्यादा की नहीं है.

खेसारीलाल के इस वीडियो के बाद भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के कई ऐक्टरों ने विरोध जताया था. इस मसले पर ऐक्टर और गायक रितेश पांडेय ने सोशल मीडिया पर जवाब देते हुए लिखा था कि इन में से किस के घर का खर्च आप चलाते हैं? अपने से छोटों को आप इस नजरिए से देखते हैं. बहुत घटिया है आप की मानसिकता.

फिल्म जानकारों का मानना है कि कई नामीगिरामी म्यूजिक कंपनियां और प्रोडक्शन हाउस भोजपुरी के कुछ चुनिंदा ऐक्टरों के इशारों और रहमोकरम पर ही चल रहे हैं. ऐसे में भोजपुरी इंडस्ट्री में खेमेबाजी तो आम बात है.

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