‘‘शायद बेटे की चाह या कहें औरत की लत पड़ जाने की वजह से मेरे पिता का मन अर्चना से भी दूर होता चला गया. उन की नजर अब एक विधवा पर थी जिस के पहले से 2 बच्चे थे. एक बेटा और एक बेटी. रूपरंग में वह विधवा सुंदर थी, उस की सुंदरता पर मेरे पिता रीझ उठे और उस से तीसरा विवाह कर लिया.
‘‘3 कमरों के छोटे से घर में वह 3 प्राणी और आ गए. मौसी और उस औरत में खूब लड़ाई होती थी. उस लड़ाई में मैं और मेरी छोटी बहन बिलकुल दब कर रह गईं. उस समय मेरी उम्र कोई 12 साल की रही होगी. मैं अकसर रोतीरोती अपनी मां की तसवीरें बनाती रहती थी. नतीजा यह निकला कि मैं चित्रकला में निपुण होती चली गई.
‘‘उस कच्ची उम्र में मुझे पता चला कि मेरी तीसरी मां, जिस का नाम किरण था, ने बच्चे बंद होने का आपरेशन पहले से ही करवा रखा था. किरण के कई पुरुषों से शारीरिक संबंध रह चुके थे और इसी बात को ले कर वह अकसर मेरे पिता से पिट जाया करती थी.
‘‘कुछ समय बाद ही मेरे पिता का तबादला जयपुर हो गया. जयपुर जाते समय वह बहुत खुश थे...शायद अर्चना और किरण भी. किरण को अपनी आजादी प्रिय थी और अर्चना को अपने पति से अकसर पिटने का डर था. पिता तो चले गए पर जाते समय उन्होंने एक नजर भी हमारी ओर नहीं देखा.
‘‘हम दोनों बहनें फिर से अकेली हो गईं. अर्चना मौसी कभीकभी हमें कोसतीं, कभीकभी प्यार करतीं. बस, यों ही समय बीतता गया. पिता का मन जयपुर में लग गया था, क्योंकि उन्हें वहां एक और औरत मिल गई थी. वह उन्हीं के आफिस में कार्यरत थी और उन से वरिष्ठ थी.
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