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‘‘जब तुम्हारी नेतागीरी चल नहीं पा रही है तो तुम और कोई काम क्यों नहीं करते? अब तो घर चलाना कितना मुश्किल हो रहा है...’’ मानसी ने अपने पति हितेश से कहा.

‘‘नेतागीरी नहीं चल रही होती तो लोग मेरी पार्टी को चंदा नहीं भेजते... और अब तो मैं सोशल मीडिया पर भी अपने भाषण के वीडियो डालता हूं... कितने ढेर सारे कमैंट आते हैं... पर तुम भला क्या जानो... तुम्हारी तो सोच ही छोटी है, तुम्हारी जाति की तरह,’’ आखिरी के शब्द हितेश ने धीमी आवाज में कहे थे कि मानसी के कान उन्हें सुन नहीं पाए, वह बस हितेश का मुंह देखती रह गई.

हितेश एक कर्मकांडी ब्राह्मण का बेटा था और कालेज के समय से ही नेतागीरी में अपना कैरियर बनाना चाहता था. वह जानता था कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ जातिवाद पर ही राजनीति की जा सकती है, इसीलिए उस ने जानबू झ कर एक छोटी जाति की लड़की से शादी की थी, ताकि पिछड़ी जाति वालों को अपनी ओर ला कर सके. पर एक छोटी जाति की लड़की से शादी करने से हितेश के घर वालों ने उस से नाता तोड़ लिया था और उस के पिता ने उसे अपनी जायदाद से बेदखल भी कर दिया था.

शादी के बाद वे दोनों लखनऊ के हजरतगंज इलाके में एक फ्लैट किराए पर ले कर रहने लगे थे. हितेश कुछ कामवाम नहीं करता था और राजनीति में भी जो पैसा वह कमा पा रहा था, वह पार्टी के प्रचारप्रसार में और लोगों को अपनी पार्टी में जोड़ने में खर्च कर देता था, लिहाजा घर चलाने के लिए मानसी को घर से बाहर निकलना पड़ा और नौकरी करनी पड़ी.

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