अपने गांव के स्कूल के टीचरजी की पता नहीं किस दुश्मन ने शिकायत कर दी कि इन दिनों वे बरगद के पेड़ के नीचे बच्चों को बैठा कर अपनेआप कुरसी पर स्कूल की प्रार्थना के बाद से स्कूल छूटने तक ऊंघते रहते हैं. बच्चों को ही उन्हें झकझोरते हुए बताना पड़ता है, ‘टीचरजी, स्कूल की छुट्टी का समय हो गया है.’

बच्चों का शोर सुन कर टीचरजी कुरसी पर पसरे हुए जागते हैं, तो बच्चे कहते हैं, ‘टीचरजी जाग गए, भागो…’

मैं ने टीचरजी के विरोधी टोले से कई बार कहा भी, ‘‘अरे, इतनी भयंकर गरमी पड़ रही है. आग बुझाने के लिए आग पर पानी भी डालो, तो वह भी घी का काम करे. गरमी के दिन हैं, टीचरजी सोते हैं, तो सोने दो. गरमी के दिन होते ही सोने के दिन हैं, क्या जनता के क्या सरकार के.

‘‘पता नहीं, गांव वाले हाथ धो कर टीचरजी और पटवारी के पीछे क्यों पड़े रहते हैं? यह तो टीचरजी की शराफत है कि वे कम से कम बच्चों की क्लास में तो जा रहे हैं. बरगद के पेड़ के नीचे बच्चे ज्ञान नहीं तो आत्मज्ञान तो पा रहे हैं. क्या पता, कल इन बुद्धुओं में से कोई बुद्ध ही निकल आए.’’

पर टीचरजी के विरोधी नहीं माने, तो नहीं माने. कल फिर जब टीचरजी रोज की तरह कुरसी पर दिनदहाड़े सो रहे थे कि जांच अफसर तभी बाजू चढ़ाए स्कूल में आ धमके. तो साहब, विरोधियों का सीना फूल कर छप्पन हुआ कि टीचरजी तो रंगे हाथों पकड़े गए.

जांच अफसर आए, तो उन्होंने कुरसी पर सोए टीचरजी को जगाया. वे नहीं जागे, तो क्लास के मौनीटर से पास रखे घड़े से पानी का जग मंगवाया और टीचरजी के चेहरे पर छिड़कवाया, तब कहीं जा कर टीचरजी जागे. देखा तो सामने यमदूत से जांच अफसर. पर टीचरजी ठहरे ठूंठ. वे टस से मस न हुए.

जिले से आए जांच अफसर ने उन्हें डांटते हुए कहा, ‘‘हद है, जरा तो शर्म करो. पूरी पगार नहीं, तो कम से कम कुछ पैसा तो इन बच्चों पर खर्च करो.

‘‘अगर आप ऐसे ही अपना स्कूल चलाएंगे, तो ये बच्चे जहां पैदा हुए हैं, बूढ़े हो कर भी वहीं के वहीं रह जाएंगे. ऐसे में ‘सब पढ़ें, सब बढ़ें’ का नारा फेल हो जाएगा.’’

टीचरजी पहले तो सब चुपचाप सुनते रहे, जब बात हद से आगे बढ़ गई, तो वे विनम्र हो कर बोले, ‘‘साहब, गुस्ताखी माफ. दरअसल, मैं इन बच्चों को कुंभकरण के बारे में पढ़ा रहा था. कुंभकरण कैसे सोता था, बस यही इन बच्चों को सो कर दिखा रहा था.

‘‘अब इस गांव में कोई सोने वाला न मिला, तो बच्चों को खुद ही कुरसी पर सो कर बता रहा था कि कुंभकरण इस तरह 6 महीने सोया रहता था, पर आप ने मुझे हफ्तेभर बाद ही जगा दिया.

‘‘अब बच्चे कैसे जानेंगे कि महीने में कितने दिन होते हैं? उन्हें तो लगेगा कि एक दिन का एक महीना होता है.’’

इतना कह कर टीचरजी मुसकराते हुए अपने विरोधी टोले को देखने लगे. जांच अफसर ने टीचरजी की पीठ थपथपाते हुए गांव वालों से कहा, ‘‘हे गांव वालो, तुम धन्य हो, जो तुम ने ऐसा होनहार टीचर पाया.

‘‘इन्होंने किताब में लिखे को सही माने में सच कर दिखाया. महीने में 30 दिन ही होते हैं, आप बच्चों को शान से बताइए. जब तक कुंभकरण की नींद पूरी नहीं होती, तब तक बच्चों के हित में आप भी इस सिस्टम की तरह सो जाइए.

‘‘हमारी सरकार भी सोती ही रहती है. प्रशासन भी सोता रहता है. यहां तक कि अकसर सांसद और विधायक भी होहल्ले के बीच सो रहे होते हैं.

‘‘टीचरजी, हम अभी आप का नाम राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए नौमिनेट करते हैं. अच्छा तो हम चलते हैं.’’

तो सब मिल कर बोलो, ‘आरती कीजै टीचर लला की, स्टूडैंट्स दलन, फेंकू कला की…’

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