सरकार कहती है कि उस ने कोरोना महामारी का सामना बहुत अच्छी तरह से किया है, लौकडाउन ने लोगों को बरबाद होने से बचा लिया, पर कोरोना ने कितना नुकसान किया, यह या तो बलि चढ़ने वाला या फिर बलि लेने वाला बता सकता है.कोरोना की दूसरी लहर ने मेरे सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया.

हमारे हंसतेखेलते परिवार को बरबाद कर दिया. हमारी जिंदगी को वैंटिलेटर बना दिया. कोरोना ने मुझे सिविल सर्विस प्रतियोगी से दूर कर के कारपोरेट वेश्या बना दिया.आज मैं अपनी यानी पूर्णिमा की कहानी आप को सुनाती हूं. मेरे पिताजी फलों के ठेले की फेरी लगा कर आराम से 800 से 1,200 रुपए रोजाना बचा लेते थे. उन्होंने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया और यही सीख हम बच्चों को भी मिली थी.

12वीं क्लास में उत्तर प्रदेश की मैरिट लिस्ट में नाम आने के बाद पापा की इच्छा थी कि मैं आईएएस की तैयारी के लिए दिल्ली चली जाऊं और मां की इच्छा थी कि मेरे छोटे भाई विनोद को डाक्टरी की तैयारी कराऊं.मैं जानती थी कि दोनों सपने एकसाथ पूरे नहीं हो सकते, इसलिए मैं ने शहर के एक कालेज में एडमिशन ले लिया और विनोद को डाक्टरी की तैयारी कराने के लिए हम सब पाईपाई जोड़ने लगे.सरकार की गलत नीतियों के चलते महंगाई और बेरोजगारी वैसे ही हद पर थी.

पापा की कमाई तो घरखर्च में भी कम पड़ जाती थी. मेरी और मां की ट्यूशन की कमाई थी, जिस से थोड़ीबहुत बचत हो रही थी.अपने सरकारी कालेज के एक फंक्शन में मेरी मुलाकात शहर के सब से बड़े उद्योगपति के बिगड़ैल लड़के राजीव से हुई थी. मैं ने उस फंक्शन में रानी झांसी का किरदार निभाया था. मेरी बहुत तारीफ हुई थी. राजीव ने मुख्य अतिथि की हैसियत से मुझे पुरस्कार दिया था.राजीव एक बहुत ही महंगी कार से आया था. उस के गोरे, क्लीन शेव चेहरे पर क्रीम कलर का सूट बहुत अच्छा लग रहा था. उस के काले चश्मे में अपना अक्स देख कर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई थी.

कालेज की बिगड़ी हुई लड़कियां पीछे की लाइन में बैठ कर राजीव के लिए तरहतरह की गंदीगंदी बातें करते हुए अफवाह फैला रही थीं. कुछ लड़कियां राजीव को शहर का सब से काबिल बैचलर बताते हुए उस के लिए ठंडी आहें भरने लगी थीं, तो एक सीनियर लड़की ने बताया कि वह पहले से शादीशुदा है.पता नहीं क्यों इस बात से मुझे भी बुरा लग गया. इस बीच राजीव को अपनी ओर घूरता देख मेरे शरीर में एक सिहरन सी पैदा हो गई. उस दिन के बाद राजीव से मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई.मार्च, 2020 में कोरोना महामारी के चलते पूरे भारत में लौकडाउन हो गया.

हम सब की कमाई खत्म हो गई. डेढ़ महीने तो घर बैठ कर अपनी बचत इस्तेमाल करते रहे, उस के बाद पापा ने दोबारा ठेला लगाना शुरू कर दिया. सरकार ने फलसब्जियों की कीमत तो कंट्रोल कर दी थी, लेकिन यह तय नहीं हुआ था कि वह फुटकर में बेची जाएगी कि थोक में यानी दुकानदार 100 रुपए प्रति किलो से महंगे सेब नहीं बेच सकता, चाहे थोक हो या फुटकर.

इस का नतीजा यह हुआ कि मार्जन बहुत घट गया और अब उन्हें रोजाना 200-300 रुपए कमाने में दिक्कत हो रही थी.हमारे पड़ोस की कमला आंटी, जो बड़े लोगों के घरों में बरतन मांजती थीं, अनपढ़ होने के बावजूद उन की जिंदगी अब हम से कहीं बेहतर चल रही थी. उन की मालकिन ने दोबारा उन्हें काम पर बुलाना चालू कर दिया था. 2 महीने उन्हें घर बैठे के पैसे दिए थे, सो अलग.

कमला आंटी के बच्चों को उन की मालकिन के बच्चों की उतरन मिल जाती थी, जो हमारे नए कपड़ों से भी अच्छे होते थे. अब तो कई महीने से हमारे कपड़े खरीदे ही नहीं गए थे. विनोद कमला आंटी के बच्चों के कपड़ों पर ललचाता था, तो अकसर मैं अपने हिस्से के पैसों से भी उसी के लिए कपड़े खरीद देती थी.लड़कियों के कपड़े लड़कों से पहले छोटे हो जाते हैं, क्योंकि वे लंबाई के साथ चौड़ाई में भी बढ़ती हैं. लौकडाउन में मेरे सारे कपड़े छोटे पड़ने लगे थे.

सब से ज्यादा गुस्सा मुझे अपने सीने के साइज को ले कर था. हर सुबह इस का साइज मुझे कुछ बढ़ा हुआ महसूस होता था. मेरी सब से बड़ी साइज की कुरती भी सीने के पास से छोटी हो गई थी. मेरे तकरीबन सारे कपड़े कांख के पास से फटने शुरू हो चुके थे.कमला आंटी को समाजसेवियों के मुफ्त भंडारे का पता चल जाता था. उन्होंने साथ चलने को कहा, तो मैं ने बहुत आनाकानी की, पर मजबूरी में विनोद को ले कर उन के साथ फ्री राशन लेने जाना पड़ा. मैं ने जानबूझ कर और भी खराब कपड़े पहने थे, ताकि मदद देने वाले कुछ गलत न बोलने लगें.शरमाते हुए मैं भीख मांगने की लाइन में लगी ही थी कि धक्के की आवाज के साथ मेरे दिल की धड़कन रुक गई. सामने राजीव सर थे…

मेरे ड्रीम बौयफ्रैंड, जिन के बारे में सपने देखते हुए मैं ने दर्जनों बार मधुर मिलन किया था. मेरा चेहरा शर्म से लाल पड़ गया और मुझे रोना आ गया.जल्द मुझे अहसास हुआ कि दुनिया इतनी बुरी नहीं जितना मैं मानती थी. मदद बांटने वाले लड़के और राजीव सर ने मुझे लाइन तोड़ कर सामान दे दिया. इस से थोड़ी सी वीआईपी वाली फीलिंग आई, लेकिन भीख तो भीख ही होती है.अगले दिन राजीव सर ने दोबारा मुझे कसम दे कर बुलाया था. आज मैं अपने सब से अच्छे कपड़े पहन कर गई थी. राजीव सर थोड़ी देर से आए थे. भीख के लालच में जनता बेसब्री से उन का और उन की टीम का इंतजार कर रही थी.राजीव सर अपनी बड़ी शाही कार से आने के बाद सीधे मेरे पास आ कर रुके.

वे आज मेरे भाई विनोद के लिए एक बहुत बड़ी चौकलेट ले कर आए थे. वे मुझ में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहे थे. मुझे इस बात से शर्मिंदगी भी हो रही थी, तो दूसरी ओर मैं रोमांचित भी हो रही थी.राजीव सर बहुत देर से मेरे सीने को ही देखे जा रहे थे. तब मुझे अहसास हुआ कि मेरी नई कुरती भी कांख के पास से फट चुकी थी. मैं जब तक संभलती, तब तक राजीव सर मेरे ‘ताजमहल’ को अच्छी तरह ताड़ चुके थे.अगले दिन राजीव सर मेरे लिए टौप लाए थे और उन्होंने जबरदस्ती गाड़ी के अंदर जा कर नया टौप पहनने को मुझे मजबूर कर दिया.

मैं बाहर निकली, तो टौप से कंपनी का टैग निकालने के बहाने उन का मुंह मेरे बेहद करीब था. उन की सांस को मैं अपनी आंखों पर महसूस कर रही थी. उन के गुलाब की खुशबू का परफ्यूम बेहद मस्त था.अचानक उन्होंने मेरे नितंबों को अपनी हथेली से पकड़ते हुए अपनी ओर खींचना शुरू किया, तो घबरा कर मैं ने उन्हें धक्का दे दिया. उन से दूर भागते हुए दूर से ही उन्हें ‘थैंक्यू’ बोला और उन्हें ‘बाय’ बोलते हुए वहां से दौड़ निकली.विनोद ने बहुत पूछा कि दीदी हुआ क्या है, लेकिन मैं ने जवाब में सिर्फ विनोद का सिर चूमा. उस दिन के बाद विनोद ने बहुत जिद की, लेकिन मैं फ्री का राशन लेने नहीं गई. उस दिन से फिर मेरी राजीव सर से तीसरी बार मुलाकात नहीं हुई.अगस्त महीने में कोरोना का असर थोड़ा कम होने लगा था. मुफ्त का भोजन बंटना अब बंद हो चुका था.

मेरा कालेज दोबारा खुल गया था. मैं ने पूरा मन बना लिया था कि कोई नौकरी कर लूंगी. घर के माली हालात के हिसाब से मुझे अब अपने छोटे भाई को डाक्टर बनाने का सपना नामुमकिन सा लग रहा था.हमारे कालेज में सोशल डिस्टैंस, मास्क, सैनेटाइजर, कोरोना प्रोटोकाल का पालन करते हुए कोई न कोई कार्यक्रम होता रहता था. कालेज की सब से मेधावी छात्र होने के चलते इवैंट मैनेजमैंट की जिम्मेदारी मेरी रहती थी. मेरी आंखें हर मास्क के पीछे राजीव सर को ही तलाशती रहती थीं.

जिंदगी में पहली बार मुझे गरीब होने का दुख था. अगर कुछ अच्छे कपड़े होते, अगर मैं भी उन के साथ गरीबों को दान कर रही होती, तब हमारी दोस्ती के कुछ और माने होते. रोतेरोते मेरी आंख लग चुकी थी. राजीव सर सपने में मेरे सीने और जांघों को मसलते हुए मेरे होंठ चूम रहे थे. उन्होंने मेरे कपड़े उतारते हुए मुझे अपनी औफिस की टेबल पर लिटा दिया, उस के बाद वे मुझे प्यार करने लगे. जैसे ही वे मुझ में समाने लगे, तो मैं चौंक कर उठ गई. यह सिर्फ एक सपना होने पर मुझे तसल्ली हुई.कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने के चलते बाजार बंद किए जाने लगे. पापा ने तय कर लिया था कि इस बार कुछ भी हो जाए, वे फेरी लगाना बंद नहीं करेंगे. यह फैसला हमारी जिंदगी की सब से बड़ी गलती साबित हुई.

पापा को कोरोना हो गया. बुखार, खांसी और थकान के साथसाथ उन्हें सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी. जाहिर था कि वे कोरोना की दूसरी अवस्था में थे. शाम होतेहोते पापा का औक्सीजन लैवल बहुत घट गया और उन्हें वैंटिलेटर की जरूरत महसूस होने लगी. सरकारी अस्पताल में वैंटिलेटर की कमी हो रही थी.कमला आंटी ने बताया, ‘‘एक बार सरकारी अस्पताल के इमर्जैंसी वार्ड में जाने के बाद मुरदे ही बाहर आ रहे हैं.’’रिश्तेदारों ने भी निजी अस्पताल का सुझाव दिया.

मम्मी ने डेढ़ लाख रुपए जोड़ रखे थे. यह रकम हम लोगों के लिए बहुत बड़ी थी. मम्मी को लगता था कि इस के बूते वे किसी भी समस्या से बाहर आ जाएंगी. पापा का निजी अस्पताल में इलाज शुरू हो गया. आरटीपीसीआर और एंटीजन टैस्ट पौजिटिव आया था. सीटी स्कैन में 19/24 इंफैक्शन पाया गया. अस्पताल के कमरे का एक दिन का चार्ज 1950 रुपए, नर्स का चार्ज 900 रुपए, डाक्टर की एक विजिट के 900 रुपए थे.रेडियोलौजी टैस्ट के लिए… ऐक्सरे चैस्ट पीए व्यू 550 रुपए, अल्ट्रासाउंड 2,000 रुपए, सीटी चैस्ट एचआरसीटी 7,150 रुपए. खून की जांच के लिए, एंटी एचसीबी टैस्ट 1,450 रुपए, ब्लड कल्चर 1,100 रुपए, डीडाईमर 1,600 रुपए और ब्लड शुगर 100 रुपए प्रति जांच.मैं ने पूछा, ‘‘मेरे पापा को तो शुगर नहीं है, तो टैस्ट क्यों?’’डाक्टर ने बताया कि मरीज को रैबजोल, लोपारिन, टेजिन वगैरह जो भी दवाएं दी जा रही हैं, सभी में ग्लूकोज है. कोरोना प्रोटोकाल में जरूरी है.

इन दवाओं के बाद मरीज को शुगर रिपोर्ट के मुताबिक इंसुलिन दिया जा रहा है.इन सारी बातों के बीच सिस्टर रोजी से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी. वे जींसटौप में स्कूटी से अस्पताल आती थीं. एक घंटा उन्हें अस्पताल की ड्रैस पहनने और मेकअप में लगता था. इस बीच अगर कोई उन्हें टोक दे तो उन्हें बहुत गुस्सा आता था. मुझे समझ नहीं आता था कि इस प्रोफैशन में मेकअप की क्या जरूरत? सिस्टर रोजी ने बताया कि औरत को हर प्रोफैशन में मेकअप की जरूरत होती है. औरत कितनी भी बुद्धिमान क्यों न हो, उसे अच्छा दिखना होता है.

मुझे उन की जौब बहुत अच्छी लगती थी. मैं उन से कई बार उन के जैसी जौब दिलाने को कह चुकी थी.सिस्टर रोजी मुसकरा कर कहती, ‘‘उस के लिए कुछ कंप्रोमाइज करना होता है. हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और होते हैं…’’ और बात खत्म हो जाती थी.एक दिन रोजी मैडम ने अपनी मेकअप किट से मुझे लिपस्टिक लगा दी. मैं ने जिंदगी में पहली बार लिपस्टिक लगाई थी और केवल इस वजह से मैं आईने में बेहद खूबसूरत लगने लगी थी. रोजी मैडम ने बताया कि मेरे चेहरे की बनावट बहुत अच्छी है. सीने, कमर और नितंबों का अनुपात बहुत अच्छा है. अगर मैं कोशिश करूंगी, तो मुझे अच्छी नौकरी मिल जाएगी. अस्पताल में चौथे दिन ही हमारे सारे पैसे वैंटिलेटर की भेंट चढ़ गए.

डाक्टर ने प्लाज्मा थैरेपी के लिए 20,000 रुपए अलग से मांगे. मम्मी के ट्यूशन के बच्चों से उम्मीद नहीं थी, क्योंकि आधे बच्चे तो फ्री में ही ट्यूशन पढ़ते थे, बाकी भी गरीब परिवारों से थे. हमारे महल्ले में ज्यादातर गरीब लोग रहते थे.मेरे कालेज के बहुत से दोस्त पापा को देखने आए थे. जिन लड़कों से मैं सीधे मुंह कभी बात नहीं करती थी, उन्होंने भी हमारी मदद की थी.

इन सब को जोड़ कर कुल 8,000 रुपए हुए थे.मैं ने दोबारा कातर निगाह से दोस्तों को देखा. जितेंद्र मेरी मदद करने को तैयार हो गया, लेकिन वह कुछ रिटर्न चाहता था. जितेंद्र हमारे कालेज का सब से अमीर, बिगड़ा हुआ और स्टूडैंट यूनियन का नेता था. अगर मुझे यही सब करना होता, तो जितेंद्र का औफर मैं ने तुरंत स्वीकार कर लिया होता, पर उस की मदद लेने से मैं ने साफ इनकार कर दिया.रोजी मैडम ने हमें इलाज के खर्च में छूट दिला दी. कुछ रिश्तेदारों से मदद हो गई.

इस तरह मैं इस मुसीबत से तो बाहर आ गई, लेकिन अगले ही दिन एक नई मुसीबत आ पड़ी. डाक्टर अब रेमडेसिवीर खरीदने को कह रहे थे. मैं पूरी तरह लाचार हो चुकी थी.तभी मुझे अस्पताल के गेट से राजीव सर आते दिखे. सफेद खादी के कुरते और ग्रीन सनग्लास में वे फिल्मी हीरो की तरह लग रहे थे. इतने बुरे हालात में उन के सामने आने की मेरी जरा भी हिम्मत नहीं थी.

मैं ने दीवार की ओर सिर कर के उन से छिपने की कोशिश की, पर उन्होंने मुझे देख लिया.चिरपरिचित गुलाब की खुशबू महसूस होते ही मुझे पीछे मुड़ कर देखने की इच्छा होने लगी. एक परिचित आवाज में मेरा नाम ‘पूर्णिमा’ सुनते ही मेरा सब्र जवाब दे गया. मैं राजीव सर से लिपट कर देर तक रोती रही. काउंटर पर जा कर उन्होंने कुछ बात की, तो अकाउंटैंट हैरानी से मुझे देखने लगी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरी जैसी सीधीसादी, देहाती लड़की राजीव सर की दोस्त है.

राजीव सर उस अस्पताल के मालिक के बेटे थे.फिर उस के बाद 2 दिन और मेरे पापा वैंटिलेटर पर रहे, उस के बाद सामान्य औक्सीजन पर आ गए. अब अस्पताल में मुझ से पैसे मांगे ही नहीं जा रहे थे.रोजी मैडम को जब मेरी और राजीव सर की दोस्ती के बारे में पता चला, तो वे खुशी से फूली नहीं समा रही थी. उन्होंने मुझे दोपहर में स्टाफरूम में बुला कर गेट बंद कर लिया. मेरे सारे कपड़े उतारने के बाद उन्होंने मुझे शीशे के सामने खड़ा कर दिया.

मेरे एकएक अंग की खास बनावट के बारे में मुझे समझाने लगीं. मेरे सीने की नाप की तुलना में उभारों की माप कुछ ज्यादा थी और वे आम की तरह पिलपिले नहीं, सेब की तरह सख्त थे. उस पर निप्पल बटन की तरह न हो कर खूंटी की तरह थे. वे काले नहीं, सुर्ख गुलाबी थे. इसी तरह मेरे नितंबों का आकार भी कमर की तुलना में ज्यादा था और वे गीली मिट्टी की तरह लचर न हो कर रबड़ की तरह तने से थे. गोरा रंग और चेहरे की उभरी हुई बनावट मुझे आकर्षक और ग्लैमरस बनाते थे.

मतलब, मैं एक खास प्रोफैशन के लिए परफैक्ट थी. पर मुझे रोजी मैडम की बेहूदा बातें जरा भी पसंद नहीं आ रही थीं. उन्हें भलाबुरा बोल कर मैं बाहर निकल गई.कुदरत की मरजी को कोई नहीं समझ सका है. पापा के ठीक हो कर घर लौटते ही एक दिन राजीव सर का बुलावा आया. उन के एहसान का बदला चुकाने और उन की प्रेमिका बनने के लिए मैं पहले से तैयार बैठी थी. एक महीने में एक दर्जन जगहों पर बुला कर उन्होंने मुझे भरपूर भोगा, उस के बाद मुझे मेरी औकात समझा कर बाहर का रास्ता दिखा दिया.अपनी इज्जत गंवाने के बाद अब मेरे पास रोजी मैडम के बताए रास्ते पर चलने के अलावा कोई रास्ता न था.

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