ना हर और चिया में इश्क की रवानगी अपनी हद पर थी और आज चिया अपनी स्कृटी को लगातार एक उड़ान दिए जा रही थी. रफ्तार बढ़ाने के साथसाथ उस के चेहरे की बादामी चमक भी बढ़ती जा रही थी. यह फेशियल की चमक नहीं थी, बल्कि यह तो रोड पर मर्दों की भीड़ को पीछे छोड़ देने से उमड़े फख्र की रौनक थी.

चिया के बाल अब भी हलके से गीले थे और उस के बालों से उठती हुई नैचुरल गंध पीछे की सीट पर बैठे नाहर को बहुत भा रही थी. कभीकभी नाहर जानबूझ कर अपने चेहरे को थोड़ा आगे कर देता, जिस से चिया के बाल उस के चेहरे को छू जाते थे. 28 साल का नाहर रोमांचित हुए बिना नहीं रह पा रहा था.

चिया ने आज हलके पीले रंग का सूट पहन रखा था. अनजाने में ही उस ने यह कलर नहीं चुन लिया था, बल्कि इसे तो आज इसलिए पहना था, क्योंकि यह नाहर का पसंदीदा रंग था.

नाहर लखनऊ यूनिवर्सिटी से हिंदी भाषा में पीएचडी कर रहा था, तो चिया एमकौम की छात्रा थी. नाहर अकसर यूनिवर्सिटी के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेता था और उन्हीं कार्यक्रमों में चिया कौमर्स फैकल्टी की नुमाइंदगी करती थी. बस यहीं से 2 नौजवान दिल एकदूसरे के लिए धड़कने लगे थे.

नाहर ‘वीर भारत’ नामक एक पार्टी का सदस्य था और आगे चल कर वह इस पार्टी का बड़ा नेता बनना चाहता था, जबकि चिया चाहती थी कि वह कोई अच्छी नौकरी करे.

‘‘पर, तुम ने यहां स्कूटी क्यों रोकी? मुझे तो यहां नहीं जाना...’’ चिया ने अपनी स्कूटी रैजीडैंसी के सामने रोकी, तो नाहर ने बिना सीट से उतरे हुए पूछा.

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