शुचि शाम को मेरा हालचाल जानने मेरे घर आई. मैं ने उसे अपने पास बिठाया और एक चेक उसे दिखाते हुए बोला, ‘‘यह 5 लाख रुपए का चेक मैं ने तुम्हारे नाम से आज ही भर दिया है. अब मुझ से पूछो कि इस रकम की हकदार बनने के लिए तुम्हें क्या करना पड़ेगा.
’’‘‘क...क्या करना पड़ेगा, सर?’’ वह एकदम से टेंशन का शिकार तो बन गई पर डरी हुई बिलकुल नजर नहीं आ रही थी.
‘‘क्या तुम मेरी सारी बातें खुशी- खुशी मानोगी?’’
‘‘सर, आप के इस एहसान का बदला मैं कैसे भी चुकाने को तैयार हूं.’’
सीमा की अपनी बेटी के प्रति चिंता जायज थी. मैं चाहता तो भावुकता की शिकार बनी शुचि को गलत राह पर कदम रखने को आसानी से राजी कर सकता था.
‘‘मैं ने कुछ दिन पहले कहा था न कि दोस्तों के बीच एहसान शब्द का प्रयोग ठीक नहीं है. अब तो मैं तुम्हारे परिवार से भी जुड़ गया हूं. इसलिए यह शब्द मैं फिर कभी नहीं सुनना चाहूंगा.’’
‘‘ठीक है, सर.’’
‘‘अब इस ‘सर’ को भी विदा कह कर मुझे ‘नरेश अंकल’ बुलाओ. इस संबोधन में ज्यादा अपनापन है.’’
‘‘ओ के, नरेश अंकल...’’ वह मेरे चेहरे को बड़े ध्यान से पढ़ने की कोशिश कर रही थी.
‘‘यह मेरी दिली इच्छा है कि एम.बी.ए. के लिए तुम्हें अच्छे कालिज में प्रवेश मिले. इस लक्ष्य को पाने के लिए तुम्हें बहुत मेहनत करने का वचन मुझे देना होगा, शुचि.’’
‘‘मैं बहुत मेहनत करूंगी,’’ उस की आंखों में दृढ़ निश्चय के भाव उभरे.
‘‘आज से ही?’’
‘‘हां, मैं आज से ही दिल लगा कर मेहनत करूंगी, नरेश अंकल,’’ वह जोश भरी आवाज में चिल्लाई और फिर हम दोनों ही खुल कर हंस पड़े थे.
‘‘गुड,’’ मैं ने उस के सिर पर हाथ रख कर दिल की गहराइयों से उसे आशीर्वाद दिया तो वह एक आदर्श बेटी की तरह मेरे पैर छू कर सीने से लग गई.