‘‘इस का मतलब तुम्हारी मम्मी को मेरी पत्नी के इस दुनिया को छोड़ कर चले जाने की जानकारी है. मेरे अकेलेपन को दूर करने का जो इलाज तुम मुझे बता रही हो, क्या वह तुम्हारी मम्मी का बताया हुआ है?’’
‘‘एक बार हम दोनों की इस विषय पर बातचीत हुई थी. वैसे मुझे नहीं लगता कि आप इस दिशा में कोई कदम उठाएंगे.’’
‘‘ऐसा क्यों कह रही हो?’’ मैं ने मुसकराते हुए पूछा.
‘‘आप को अपनी रेपुटेशन कुछ ज्यादा ही प्यारी है,’’ उस ने बड़े नाटकीय अंदाज में जवाब दिया और फिर हम दोनों ही जोर से हंस पड़े थे.
उस दिन शुचि मेरे घर में करीब 2 घंटे रुकी. उस ने मुझे चाय बना कर पिलाई और टोस्ट पर बटर लगा कर नाश्ता कराया. फिर मेरे साथ बातें करते हुए उस ने पहले ड्राइंगरूम में फैले सामान को संभाला और फिर मेरे शयनकक्ष को भी ठीकठाक कर दिया.
उस के हाथ में जूस का गिलास पकड़ाते हुए मैं ने पूछा, ‘‘तुम जिंदगी में क्या करना चाहती हो…क्या बनना चाहती हो, शुचि?’’
‘‘सर, 5 महीने बाद मेरा बी.कौम पूरा हो जाएगा. मेरी इच्छा बहुत अच्छे कालिज से एम.बी.ए. करने की है लेकिन…’’
‘‘लेकिन क्या?’’ उस की आंखों में परेशानी के भाव पढ़ कर मैं ने उत्सुक लहजे में सवाल पूछा.
‘‘मेरी फीस देना पापा के लिए कठिन होगा.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘पहले मेरी बड़ी बहन की शादी में और फिर भैया को होस्टल में रख कर इंजीनियरिंग कराने में पापा ने पहले ही सिर पर कर्जा कर लिया है. मैं बेटी हूं, बेटा नहीं. इसीलिए वह मेरी एम.बी.ए. की फीस का इंतजाम करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेंगे,’’ शुचि उदास हो उठी थी.
मैं ने फौरन उस का हौसला बढ़ाया, ‘‘शुचि, तुम अच्छे कालिज में प्रवेश तो लो. तुम्हारी फीस का इंतजाम कराने की जिम्मेदारी मेरी रहेगी.’’
‘‘क्या आप मेरी फीस भर देंगे?’’ उस की आंखों में आशा भरी चमक उभरी.
‘‘अगर बैंक से लोन नहीं मिला तो मैं भर दूंगा. नौकरी लग जाने के बाद बैंक का या मेरा लोन लौटाओगी न?’’ मैं ने मजाक में पूछा.
‘‘श्योर, सर, मेरी इस समस्या को हल करने की जिम्मेदारी ले कर आप मुझ पर बहुत बड़ा एहसान करेंगे,’’ वह भावुक हो उठी थी.
‘‘दोस्तों के बीच एहसान शब्द का प्रयोग नहीं होना चाहिए. तुम्हारे लिए कुछ भी कर के मुझे खुशी होगी,’’ इन शब्दों को सुन कर उस का चेहरा फूल सा खिल उठा था.
शुचि के साथ के कारण अचानक ही मेरा समय बड़े आराम से कटने लगा था. उस से मिलने और उस के घर आने का मुझे इंतजार रहता. अपने को मैं नई ऊर्जा और उत्साह से भरा महसूस करता. अपने बेटेबहुओं से फोन पर बातें करते हुए मैं अपने अकेलेपन की शिकायत अब नहीं करता था. शुचि की मौजूदगी ने मेरी जिंदगी से ऊब और नीरसता को बिलकुल दूर भगा दिया था.
आगामी रविवार की सुबह पार्क में सैर कर लेने के बाद उस ने कहा, ‘‘सर, आज आप का लंच हमारे यहां है. आप तैयार रहना. मैं आप को अपने घर ले चलने के लिए ठीक 12 बजे आ जाऊंगी.’’
‘‘थैंक यू वेरी मच, शुचि. तुम्हारे मम्मीपापा से मिलने की मेरी भी बड़ी इच्छा है,’’ उस के घर जाने का बुलावा पा कर मैं सचमुच बहुत खुश हुआ था.
शुचि के आने से पहले मैं काजू की मिठाई का डब्बा और फूलों का बहुत सुंदर गुलदस्ता बाजार से ले आया था. उस के आने के 5 मिनट बाद ही हम दोनों कार में बैठ कर उस के घर जाने को निकल पड़े थे.
‘‘बहुत सुंदर गुलदस्ता बनवाया है आप ने, सर. मम्मी तो बहुत खुश हो जाएंगी,’’ शुचि की आंखों में अपनी तारीफ के भाव पढ़ कर मैं खुश हुआ था.
शुचि के पापा ने बड़ी गरमजोशी के साथ हाथ मिलाते हुए मेरा स्वागत किया, ‘‘मैं रवि हूं…शुचि का पापा. वेलकम, कपूर साहब. शुचि आप की बहुत बातें करती है. इसीलिए ऐसा लग नहीं रहा है कि हम पहली बार मिल रहे हैं.’’
शुचि की मम्मी घर के भीतरी भाग से ड्राइंगरूम में आईं तो रवि ने मुझ से उन का भी परिचय कराया लेकिन मुझे उन के मुंह से निकला एक शब्द भी समझ में नहीं आया क्योंकि उन की पत्नी को देखते ही मुझे जबरदस्त झटका लगा था.
हमारी मुलाकात करीब 30 साल बाद हो रही थी पर सीमा को देखते ही मैं ने फौरन पहचान लिया था.
‘‘ये बहुत सुंदर हैं, थैंक यू वेरी मच,’’ सीमा ने मुसकराते हुए मेरे हाथ से गुलदस्ता ले लिया था.
मैं बड़े मशीनी अंदाज में मुसकराते हुए उन के साथ बोल रहा था. उन तीनों में से किसी की बात मुझे पूरी तरह से समझ में नहीं आ रही थी. मन में चल रही जबरदस्त हलचल के कारण मैं खुद को बिलकुल भी सहज नहीं कर पा रहा था.
‘‘क्या आप मम्मी को पहचान पाए, सर?’’ शुचि के इस सवाल को सुन कर मैं बहुत बेचैन हो उठा था.
मुझे जवाब देने की परेशानी से बचाते हुए सीमा ने हंस कर कहा, ‘‘अतीत को याद रखने की फुरसत और दिलचस्पी सब के पास नहीं होती है. कपूर साहब को कुछ याद नहीं होगा पर मैं ने इन्हें पार्क में फौरन पहचान लिया था.’’
‘‘मेरी याददाश्त सचमुच बहुत कमजोर है,’’ मैं ने जवाब हलकेफुलके अंदाज में देना चाहा था पर मेरी आवाज में उदासी के भाव पैदा हो ही गए.
‘‘सीमा कुछ नहीं भूलती है, कपूर साहब. महीनों पहले हुई गलती का ताना देने से यह कभी नहीं चूकती,’’ रवि के इस मजाक पर मेरे अलावा वे तीनों खुल कर हंसे थे.
‘‘महीनों पुरानी न सही पर आप वर्षों पहले हुई गलती तो भुला कर माफ कर देती होंगी?’’ मैं ने पहली बार सीमा की आंखों में देखने का हौसला पैदा कर यह सवाल पूछा.
रवि और शुचि मेरे सवाल पर ठहाका मार कर हंसे पर मैं ने सीमा के चेहरे पर से नजर नहीं हटाई.
‘‘वक्त के साथ नईपुरानी सारी गलतियां खट्टीमीठी यादें बन जाती हैं, कपूर साहब. आप इन की बातों पर ध्यान न देना. पुरानी बातों को याद रख कर अपने या किसी और के मन को दुखी रखना मेरा स्वभाव नहीं है. आप खाने से पहले कुछ ठंडा या गरम लेंगे?’’ सीमा सहज भाव से मुसकराती हुई किचन में जाने को उठ खड़ी हुई थी.
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