लेखक- बलविंदर ‘बालम’
‘‘साहब, लड़की बहुत ही खूबसूरत है. जिस्म की बनावट देखें. खिला हुआ ताजा गुलदाऊदी है जनाब. रंगरूप कितना चढ़ा हुआ है. जनाब, आप तो इस तरह की रसदार जिस्म वाली लड़कियां ही पसंद करते हो... जनाब उठा लें, फिर मौका नहीं मिलने वाला?’’
जीप से थोड़ी दूर ही हवलदार की नजर उस लड़की पर जा पड़ी थी. सूरज अंबर के घौंसले में जा छिपा था. रात खतरनाक रूप ले कर और गहरी होती जा रही थी.
एक नया शादीशुदा जोड़ा हाथ में एक छोटी सी अटैची उठाए, नाजुकनाजुक प्यारीप्यारी बातें करता पैदल ही अपने गांव जा रहा था. गांव की दूरी तकरीबन एक किलोमीटर ही होगी. वे दोनों बस से उतर कर थोड़ी ही दूर गए थे कि पुलिस की जीप आहिस्ता से उन के पास से गुजरी.
इंस्पैक्टर ने जोश में आ कर ड्राइवर को कहा, ‘‘जीप मोड़ ले...’’ और अपनी बांहें ऊपर को खींच कर 2-3 अंगड़ाइयां तोड़ लीं.
ड्राइवर ने जीप उस जोड़े के आगे जा कर खड़ी कर दी. हवलदार और इंस्पैक्टर नीचे उतरे.
हवलदार ने उस लड़के से पूछा, ‘‘ओए, कहां जाना है तुझे?’’
‘‘अपनी ससुराल से आ रहा हूं जनाब और अपने गांव जा रहा हूं. जनाब, कुछ दिन पहले ही हमारी शादी हुई है?’’
‘‘ओए, तू तस्करी करता है... तू अफीम बेचता है... इतने अंधेरे में ससुराल से आ रहा है?’’
‘‘जनाब, इस अटैची में सिर्फ कपड़े हैं और कुछ भी नहीं है,’’ उस लड़के ने कहा.
‘‘ओए, तू थाने चल. वहां जा कर पता चलेगा कि इस में क्या है...’’
‘‘जनाब, मेरा कुसूर क्या है? मैं कोई अफीम नहीं बेचता, कोई तस्करी नहीं करता. जनाब, मेरी अटैची देख लें.’’