पति के हाथ धुलाते हुए सुंदरी ने कहा, ‘‘अब की 2-2 सोने की चूड़ियां जरूर बनवा दो, नहीं तो राखी पर मायके वाले कहेंगे कि इतनी भी नहीं जुटा पाते कि...’’ तभी लू का एक जोरदार थपेड़ा सूरज की कनपटी पर तमाचा सा मारता हुआ ऊपर की ओर उड़ गया. कानों पर हथेलियां रख उस ने जवाब दिया, ‘‘आमों की फसल अच्छी आई है. कुदरत ने चाहा तो इस बार के शहर के चक्कर में ही चूड़ियां निकल आएंगी. तू अब घर जा. धूप तेज हो रही है.

’’ सुंदरी के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ गई. उठते हुए वह बोली, ‘‘हम इतने बुरे लगने लगे अब?’’ सूरज जानता था कि उस की बीवी के दिन चढ़े हैं. उस ने कुछ जवाब नहीं दिया. घर की ओर लौटती हुई बीवी की ओर वह तब तक देखता रहा, जब तक कि वह आंखों से ओझल न हो गई. उस ने सोचा, ‘सुंदरी सचमुच सुंदरी है. तन से ही नहीं, मन से भी.’ खलिहान उठ चुके थे. किसान किसी छप्पर अथवा पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे. परंतु सूरज इस साल आम की रखवाली में डट गया था. वैसे तो गांव में और भी आम के पेड़ थे, पर सूरज के आमों का स्वाद ही गजब का था.

सूरज ने इस बार बौर आने पर ही पेड़ के नीचे बसेरा कर लिया था. गांव वाले मन ही मन गुस्सा कर रहे थे. सूरज की यह पहरेदारी उन्हें अच्छी नहीं लग रही थी. सुंदरी के हाथों की रोटियों ने पेट में पहुंचते ही अपना काम दिखाना शुरू कर दिया. सूरज की आंखें झपकने लगीं. एक पेड़ के नीचे अधलेटा हो उस ने आंखें मूंद लीं. अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि खड़खड़ाहट सुन कर किसी जानवर को आया जान नींद की हालत में ही हाथ पसार उस ने मिट्टी का ढेला उठा कर मार फेंका.

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