लेखक - शुभम पांडेय गगन

कोरोना की महामारी ने बड़ेबड़े परदेशी को गांव में आने को मजबूर किया है. आज पूरे 4 साल बाद मुकेश अपने गांव आया है या कहें मजबूरी में आया है. मुकेश बहुत ही गरीबी की जिंदगी बचपन से जिया है और अपने सपनों और घर की हालत सुधारने के लिए 10 वीं पढ़ कर मुंबई भाग गया. वहां उस ने मोटर बनाने का काम सीखा और आज अच्छा पैसा कमा रहा है.

मुकेश की उम्र अभी 24 साल है. उस पर मुंबई का सुरूर देखा जा सकता है. रंगे हुए बाल, गोरा शरीर, अच्छे कपड़े उस की शोभा बढ़ा रहे थे.

मुकेश अपने घर के बाहर बरामदे में बैठा था, तभी उस की नजर सामने लगे नल पर पड़ी, जहां एक 17 साल की नई यौवन को पाई हुई खूबसूरत गोरी सी लड़की बालटी में पानी भर रही थी.

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मुकेश की नजरों को मानो कोई जादू सा लग गया हो. वह एकटक उसी को देखे जा रहा था. वह सोच रहा था कि आखिर ये लड़की, जो बिलकुल साधारण कपड़ों और बिना फैशन के ही सुंदर लग रही है. हमारे शहर में लड़कियां तो मेकअप का सहारा लेती हैं, लेकिन इतनी सुंदर और मनमोहक नहीं लगतीं. मुकेश की नजर उस का तब तक पीछा करती रही, जब तक वह पानी ले कर ओझल नहीं हुई.

मुकेश ने अपनी भाभी से पूछा, ‘‘भाभी, यह लड़की कौन है? मैं तो इसे पहचान नहीं पाया.‘‘

भाभी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अरे मुकेश, यह तो अपनी बगल के तिवारीजी की बिटिया मीनू है. तुम इसे भूल गए. शायद वह बड़ी हो गई है, इसीलिए इसे पहचान नहीं पाए.‘‘

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