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अब वह किसी और स्कूल में अपना जलवा बिखेरने की तैयारी कर चुकी थी. मोहकलाल ने उसे भावभीनी विदाई दी.

मनमोहिनी उड़ी तो मोहकलाल कुछ दिन तक मजनू बने रहे. उन का मन स्कूल के किसी काम में नहीं लगता था. स्कूल के कौरिडोर उन्हें सूनेसूने से लगते. अपना गम भुलाने के लिए वे म्यूजिक रूम का रुख करते. तब वहां से दुखभरे फिल्मी नगमों की तान सुनाई पड़ती... ‘मेरी किस्मत में तू नहीं शायद जो तेरा...’, ‘आ लौट के आजा...’

इस पर कौरिडोर में चाय की खाली ट्रे ले जाती फूलवती आया अपने लहजे में जवाब देती, ‘‘अब तो वह चली गई, अब काहे बावरा हो रिया.’’

लेकिन बेचारी फूलवती को क्या पता था कि वियोग क्या होता है. वियोग तो अच्छेअच्छों को कवि बना देता है, तभी तो सुमित्रानंदन पंत ने कहा था :

‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान, निकल कर आंखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान.’

लेकिन इसी के साथ एक काम और हुआ. फूलवती की अनजाने में कही

गई बात किसी मुंहफट टीचर के कान

में पड़ गई. फिर तो वह बात स्कूल में सभी टीचरों के ‘हंसोड़खाने’ की आवाज बन गई.

इस बात को टीचर एकदूसरे को चटकारे लेले कर सुनाते और मजे लेते हैं. फूलवती को आज तक नहीं पता कि उस ने अनजाने में कितने काम की बात कही थी.                            द्य

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