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मनमोहिनी अपनी ड्रैस से मैच करता हुआ पर्स अपनी बगल में लटका कर और कूल्हे मटका कर जब चलती तो ऐसा लगता जैसे बौलीवुड की कोई हीरोइन सड़क पर रैंप वाक कर रही हो. भले ही मनमोहिनी ने 40 हरेभरे सावनभादों देख लिए हों, लेकिन वह किसी भी सूरत में 30 से ज्यादा की नहीं लगती थी. यह उस की गजब की फिटनैस का जादू था.

मनमोहिनी को होना तो चाहिए था किसी मौडलिंग कंपनी में, लेकिन वह शिक्षा विभाग में आ गई. लेकिन उस ने आपदा में भी अवसर ढूंढ़ लिया, इसलिए अब उसे कोई गम नहीं था. उस के पास अपनी खूबसूरती और लटकेझटकों का भरपूर खजाना था. इन के दम पर वह आत्मविश्वास से लबालब भरी हुई थी.

इस बात का गहरा ज्ञान और अनुभव मनमोहिनी को कालेज लाइफ में ही हो गया था कि औरत ही औरत की कट्टर दुश्मन होती है, इसलिए उस ने कभी भूल कर भी यह गलती नहीं की कि वह अपनी ‘कंचन काया’ को ले कर महिला कालेज की महिला इंटरव्यू मंडली के सामने आए, जो उस के जोबन और लटकेझटकों को देखते ही जलभुन कर खाक हो जाए.

मनमोहिनी तो मर्दों की कमजोरी को बहुत पहले से जानती थी, इसलिए उस ने अपनी खूबसूरती के हंटर और अदाओं के तीर हमेशा मर्दों पर चलाए, क्योंकि वहां कामयाबी का फीसद सौ से कम नहीं था.

जब मनमोहिनी मर्द मंडली या

फिर अकेले मर्द के सामने इंटरव्यू के लिए हाजिर होती तो उस के हावभाव रीतिकाल के महाकवि बिहारी लाल की उस नायिका की तरह होते जो भरे भवन में भी अपने नायक से नैनों से बात कर लेने में माहिर है. बकौल बिहारी लाल :

‘कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात,

भरे भौन में करत है नैननु ही सब बात.’

अब भला कौन बूढ़ा खूसट होगा, जो मनमोहिनी को न चुने या फिर उस के नाम की सिफारिश न करे. बूढ़े से बूढ़ा भी मनमोहिनी के लटकेझटकों पर रीझ जाता था, नौजवान मसखरों की तो बात ही जाने दीजिए, वे तो किस खेत की मूली. इसी के बूते एक बड़े स्कूल में मनमोहिनी को नौकरी मिलने का चांस बन गया.

प्रिंसिपल मोहकलाल मनमोहिनी की खूबसूरती में इंटरव्यू के समय ही गिरफ्तार हो गए थे. मनमोहिनी ने जल्दी ही भांप लिया था कि अब आगे

क्या होने वाला है. वजह, औरतों में भविष्य को सूंघने की ताकत मर्दों के मुकाबले बहुत ज्यादा होती है.

मर्द तो वर्तमान में ही अपनी सुधबुध खो बैठता है और वर्तमान का ही मजा लूटने में रह जाता है. ऐसे मामलों में वह तब जागता है, जब ‘छीछालेदरी का सूरज’ उग चुका होता है. लेकिन औरतें ऐसे मामलों में मर्दों के बजाय एक कदम आगे होती हैं. वे भविष्य को वर्तमान के साथ बांध कर चलती हैं.

मनमोहिनी का पढ़ाईलिखाई से कोई ज्यादा वास्ता तो था नहीं, इसलिए उस ने एक नई जुगत भिड़ाई. 2-4 बार वह किसी न किसी बहाने से मर्दों को लुभाने वाला इत्र लगा कर प्रिंसिपल मोहकलाल के कमरे में गई. अपने पल्लू को ठीक करने के बहाने उस ने मोहकलाल की आंखों समेत दिल तक को बींध कर

रख दिया.

फिर मौका देख कर मनमोहिनी बड़े कमसिन अंदाज में बोली, ‘‘सर, मैं कोऔर्डिनेशन का काम बड़े अच्छे से जानती हूं. अगर आप मुझे यह काम दे

दें, तो मैं आप को अपना हुनर दिखा सकती हूं.’’

जब मनमोहिनी प्रिंसिपल मोहकलाल को यह बात बता रही थी, तो मोहकलाल को न जाने क्यों ऐसा एहसास हुआ, जैसे  मनमोहिनी ने अपनी बाईं आंख झपकाई नहीं, बल्कि उन की तरफ देख कर दबाई हो. मोहकलाल को अपने अंदर झटके के साथ किसी करंट का एहसास हुआ.

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