‘‘कुदरत किसी के साथ बेइंसाफी नहीं होने देती. लेकिन हम उस की बारीकियों को समझ नहीं पाते. हमारे नजरिए में ही खोट होती है, तभी हम उस के कानून की खिल्ली उड़ाते हैं. अगर आप का जिस्म ताकतवर है, तो जोरदार ठोकर का भी कोई असर नहीं होता... पर अगर कमजोर है तो मामूली सा झटका भी बहुत बड़ा भूचाल लगता है.

‘‘इसी तरह वह जब साथ देता है, तब मिट्टी छुओ तो सोना बन जाती है. लेकिन, जब हालात ठीक नहीं होते, तो जोकुछ भी दांव पर लगाओ, वह भस्म हो जाता है. केवल मेहनत से कमाया हुआ पैसा, यश ही जिंदगी में साथ देता है.’’

‘‘चोर, डाकू, ठग तो लाखों का हाथ मारते हैं, लेकिन फिर भी कलपते रहते हैं और रातदिन बेचैन रहते हैं. वहीं दूसरी ओर एक मजदूर दिनभर मिट्टी, कूड़ा, ईंट, गारा का काम कर के जब सोता है, तो उसे सूरज की किरणें ही जगाती हैं,’’ इतना कह कर मास्टर रामप्रकाश ने जीत सिंह से विदा मांगी.

जीत सिंह ने मास्टरजी की बात काटते हुए कहा, ‘‘मेहनत से पैदा की हुई दौलत तो आदमी के पास रहनी ही चाहिए. बड़ेबड़े राजाओं ने दूसरों के देश, सूबे जीते और भोगे, उन का क्या हुआ?’’

‘‘मुखियाजी, यह सिर्फ दिल का भरम और थोड़ी देर का संतोष होता है. महाराजा अशोक को इस से वैराग भी तो उपजा था?’’ इतना जवाब दे कर मास्टरजी चले गए.

जीत सिंह बमरौली गांव के मुखिया थे. गांव में उन का अच्छाखासा रोब था. उन की पत्नी गीता कुछ घमंडी थी. वे 2 बेटियों की शादी कर चुके थे. एक बेटा कमलेश सिंह अभी कुंआरा था. घर का कामकाज वही चलाता था. मुखियाजी सूद पर रुपया उठाते थे. उन्होंने 2-3 गुंडे पाल रखे थे जो उन का बिगड़ा काम बनाते थे.

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