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आज अलगू की खुशी देखते ही बनती थी. सुबह से चहकाचहका घूम रहा था और सभी मिलने वालों से बड़ी हंसीखुशी से बात कर रहा था. कहां तो बंदे के चेहरे पर हमेशा एक सर्द खामोशी चस्पां रहती थी, पर आज तो वह बेवजह हंसा जा रहा था. उस के खुश रहने की वजह यह थी कि उस का बचपन का दोस्त जुम्मन वापस जो आ रहा था.

जुम्मन और अलगू एकसाथ खेले और बड़े हुए थे, पर तकरीबन 10 साल पहले ही जुम्मन गांव से शहर की ओर कमाने चला गया था. उस समय जुम्मन की उम्र महज 18 साल थी और अब वह 28 साल का हो गया था.

इन सालों में जुम्मन ने शहर में मोटर मेकैनिक का काम किया और एक से एक महंगी गाड़ी को अच्छे ढंग से  बनाना सीखा. अब तो वह किसी भी गाड़ी के मर्ज को मिनटों में भांप लेता था.

‘‘बाकी तो सब बात सही है, पर मुझे यह बताओ कि तुम गांव छोड़ कर चले गए थे और शहर में तुम्हारा रोजगार भी अच्छा चल रहा था, तब वापस क्यों आ गए?’’ अलगू ने जुम्मन से गले मिलते ही पहला सवाल दाग दिया.

जुम्मन ने अलगू को अपने प्लान के बारे में बताया, ‘‘शहर में रह कर मोटर मेकैनिक का काम करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि इस लाइन में होड़ बहुत है. हर गलीमहल्ले में एकाध मेकैनिक मिल जाता है.

‘‘यहां गांव के सामने से ही तो शहर की ओर जाती हुई एक चौड़ी सड़क है, एकदम हाईवे टाइप. बस, इसी रोड के किनारे अपनी कार और मोटरसाइकिल रिपेयरिंग की दुकान खोलूंगा. सड़क पर गाडि़यों की आवाजाही रहेगी तो काम भी खूब मिलेगा. और फिर जब गांव में ही रोजगार मिल रहा है, तो शहर जाने की क्या जरूरत है?’’

जुम्मन ने बेशक गांव वापस आने के पक्ष में ये सारी दलीलें दे डाली थीं, पर अंदर ही अंदर अलगू अच्छी तरह से जानता था कि हकीकत कुछ और ही है और वह हकीकत थी रन्नो से जुम्मन की मुहब्बत.

जुम्मन और रन्नो शादी करना चाहते हैं, पर दिक्कत यह है कि जुम्मन एक मुसलमान परिवार से है और रन्नो हिंदू लड़की है.

कमबख्त जातपांत का लफड़ा तो रास्ते में रोड़ा बन कर आएगा ही, पर एक बार धंधा अच्छी तरह से जम जाए, तब खुद जा कर जुम्मन शान से रन्नो का हाथ मांग लेगा और अगर लड़की के पिता जातिधर्म की दुहाई देंगे तो उन्हें आज के जमाने की हकीकत से रूबरू कराते हुए बता देगा कि पुराना जमाना बदल रहा है, आजकल हिंदूमुसलिम कोई नहीं देखता, बस अपनी लड़की और लड़के की खुशी का ध्यान रखते हैं  मांबाप.

अगर वे लोग इतनी बात से सबकुछ समझ गए तो ठीक है, नहीं तो फिर जुम्मन और भी कच्चाचिट्ठा खोल देगा और यह बताने से बिलकुल नहीं डरेगा कि इस गांव में दूसरे धर्म की लड़की से प्यार करने वाला वह अकेला नहीं है, बल्कि और लोग भी हैं जो अलग धर्म में मुहब्बत करते हैं और शादी भी करना चाहते हैं.

अरे, फिर तो जुम्मन नाम बताने से भी नहीं चूकेगा, भले ही उस का दोस्त अलगू उस से नाराज हो जाए. अलगू, अरे हां भाई, अलगू ही तो है उस का दोस्त और उसे प्यार है एक मुसलिम लड़की से. अब अलगू को सलमा से प्यार है और सलमा भी तो अलगू से मुहब्बत करती है और यह मुहब्बत कोई जानबूझ कर नहीं की जाती, यह तो बस हो जाती है.

पर यह बात बाहुबली जिगलान को समझ आए तब तो. जिगलान इस गांव में रहने वाला खानदानी ठाकुर था. वह 48 साल का था, पर शरीर में जवानों जैसा कसाव और चेहरे पर ताजगी. उस की तलवारकट मूंछ उसे एक रोबीला इनसान बनाती थी.

हालांकि ठाकुर जिगलान को राजनीति में कोई पद तो हासिल नहीं था, पर बड़ेबड़े नेता उस के पैर छूने आते थे. इस की वजह सिर्फ एक थी कि चुनाव में ठाकुर जिगलान सभी गांव वालों के वोट दिलाने की गारंटी लेता था और बदले में नेता उसे पैसे देते थे.

हालांकि इस गांव में हिंदू तकरीबन 60 फीसदी और मुसलिम तकरीबन 40 फीसदी थे, फिर भी ठाकुर जिगलान ने अपनी इमेज एक सैक्युलर की बना रखी थी, जबकि वह गांव के हिंदूमुसलिमों को आपस में लड़ा कर रखता और अपना उल्लू सीधा करता था.

ठाकुर जिगलान जानता था कि अगर गांव के लोगों में एकता हो गई, तो वह अपनी मरजी गांव के लोगों पर नहीं चला पाएगा.

ठाकुर जिगलान के चारों तरफ उस के चमचे रहते थे, जो गांव की जवान होती लड़कियों पर बुरी नजर रखते थे.  गांव के लोग चाह कर भी इस बात का विरोध नहीं कर पाते थे, क्योंकि ठाकुर जिगलान के पास पैसा भी था और लोगों का समूह भी, जो उस के एक इशारे पर कुछ भी करगुजरने को तैयार रहते थे.

ठाकुर जिगलान अपने इर्दगिर्द इकट्ठे जवान लड़कों की कमजोर नस को अच्छी तरह जानता था और वह कमजोर नस थी दारू और मांस. तकरीबन हर दूसरे दिन ही ठाकुर  जिगलान की बगिया के कोने में बने बड़े से चूल्हे पर मांस पकाया जाता और सूरज डूबतेडूबते दारू और मांस खाने वाले इकट्ठे होने लगते थे.

जब कभी ठाकुर जिगलान का मन किसी लड़की पर आ जाता, तो वह उसे उठवा लेता और रेप कर देता था.कभीकभी तो ठाकुर जिगलान के मुंह लगे मुंशी जानकीदास को हैरानी होती कि साहब खुद इतने रसूख वाले हैं, पर कभीकभी इन्हें न जाने क्या हो जाता है.

खेत में पसीने में तर हो कर काम कर रही होती किसी भी औरत, जिस की खुली पीठ और काली रंगत की कमर कहीं से भी आकर्षक नहीं लग रही होती थी, उसे भी उठवा कर वे उस का रेप करने का मजा लेते हैं. अरे, कम से कम अपना रसूख भी तो देखें.

एक दिन जब 25 साल के जानकीदास से रहा नहीं गया, तो वह ठाकुर जिगलान से कह बैठा और उस की बात का ठाकुर ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘अरे जनकिया, ठकुराई हमें विरासत में मिली है. यह सब करना हमारे खून में है और खून का असर जल्दी नहीं जाता.

‘‘हम जानते हैं कि वह लड़की जाति से छोटी है, फिर भी उस का रेप करते हैं, क्योंकि ये लोग हमारी जांघ के नीचे रहने लायक ही हैं.’’

ठाकुर जिगलान की बात जानकीदास की समझ में आई या नहीं, पर उस ने हां की मुद्रा में अपना सिर जरूर हिला दिया.

ठाकुर जिगलान की पत्नी, जो उम्र में महज 30 साल की थी, खामोशी से यह सब देखा करती थी. उस ने कई बार अपने पति को समझाना भी चाहा तो बदले में ठाकुर की डांट ही मिली और खामोश रहने की ताकीद भी.

बेचारी ठकुराइन समझ गई थी कि खामोशी को उसे अपना सिंगार बनाना होगा. उस ने तो जबान ही सिल ली थी.चूंकि गांव वाले ठाकुर जिगलान के रोब से अच्छी तरह वाकिफ थे, इसलिए लड़कियों के रेप के बाद भी कोई चूं तक नहीं करता और ज्यादातर मामलों में तो लड़की के मांबाप ही लड़की को नहलाधुला कर बैठा लेते और लड़की से भी चुप रहने को कह देते.

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