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‘ओय मुन्नी, तू ने फेंका?’ रघु लपका.

‘नहीं तो, फेंका होगा किसी ने,’ एक पत्ता मुंह में दबाते हुए शरारती अंदाज में मुन्नी बोली.

‘देख, झठ मत बोल, मुझे पता है कि तू ने ही फेंका है.’

‘अच्छा, और क्याक्या पता है तुझे?’ कह कर वह पेड़ से नीचे कूद कर भागने लगी कि रघु ने ?ापट कर उस का हाथ पकड़ लिया.

‘छोड़ रघु, कोई देख लेगा,’ अपना हाथ रघु की पकड़ से छुड़ाते हुए मुन्नी बोली.

‘नहीं छोड़ ूगा. पहले यह बता, तू ने मेरे सिर पर पत्ता क्यों फेंका?’ आज रघु को भी शरारत सू?ा थी.

‘हां, फेंका तो, क्या कर लेगा?’ अपने निचले होंठ को दांतों तले दबाते हुए मुन्नी बोली और दौड़ कर अपने घर भाग गई.

दिनभर का थकाहारा रघु मुन्नी को देखते ही उत्साह से भर उठता और मुन्नी भी रघु को देखते बौरा जाती. भूल जाती दिनभर के काम को और अपनी मां की डांट को भी. एकदूसरे को देखते ही दोनों सुकून से भर उठते थे.

18 साल की मुन्नी और 22 साल के रघु के बीच कब और कैसे प्यार पनप गया, उन्हें पता ही नहीं चला. इश्क परवान चढ़ा तो दोनों कहीं अकेले मिलने का रास्ता तलाशने लगे. दोनों बस्ती के बाहर कहीं गुपचुप मिलने लगे. मोहब्बत की कहानी गूंजने लगी, तो बात मुन्नी के मातापिता तक भी पहुंची और मुन्नी के प्रति उन का नजरिया सख्त होने लगा, क्योंकि मुन्नी के लिए तो उन्होंने किसी और को पसंद कर रखा था.

इसी बस्ती के रहने वाले मोहन से मुन्नी के मातापिता उस का ब्याह कर देना चाहते थे और वह मोहन भी तो मुन्नी पर गिद्ध जैसी नजर रखता था. वह तो किसी तरह उसे अपना बना लेना चाहता था और इसलिए वह वक्तबेवक्त मुन्नी के मांबाप की पैसों से मदद करता रहता था.

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