मैनी गरीब जरूर थी, पर रूप के मामले में बहुत धनवान थी. लंबा शरीर, सुराहीदार गरदन और गोरा रंग. गांव में निकलती तो मनचलों की आंखें उस के उभारों पर टिक जातीं.
गांव में ही रहने वाला मूलन ठाकुर मैनी को देख कर लार गिराता था और हमेशा उस के शरीर को घूरा करता था. और वैसे भी कोई लड़की या औरत मूलन की गंदी नजर से बची नहीं थी.
मैनी भी मूलन की नजर को अच्छी तरह से पहचानती थी. आज तक उस ने खुद को मूलन नाम के कामी मर्द से खुद को बचा कर रखा था.
झोंपड़ी के बाहर साइकिल के खड़खड़ाने की आवाज आई, तो मैनी समझ गई कि उस का मरद ढोला दिनभर आसपास के गांवों में फेरी लगाने के बाद वापस आ गया है. मैनी गुड़ और पानी ले आई.
ढोला खटिया पर बैठ चुका था. गमछे से अपने माथे का पसीना पोंछते हुए उस ने फीकी मुसकराहट से अपनी 7 साल की बेटी बिट्टी को पुचकारा.
बिट्टी किसी खाने वाली चीज की उम्मीद में अपने बापू के हाथों को टटोलने लगी. ढोला ने उसे गोद में उठा कर अपने पास बिठा लिया और उस के सिर पर हाथ फेरने लगा.
मैनी के चेहरे पर नजर जाते ही ढोला की दिनभर की थकान कुछ कम हुई. उस ने गुड़ खाते हुए मैनी का हाथ पकड़ कर उसे पास बिठाने की कोशिश की, पर मैनी उस से दूर छिटकते हुए बोली, ‘‘काहे नहीं और कोई काम करते हैं अब... इस धंधे में हमें अब कोई बरकत नहीं दिखती.’’
मैनी की शिकायत सुन कर ढोला का मुंह लटक गया और वह बोला, ‘‘अरे, अब गांव में भी ये प्लास्टिक के देशी खिलौने कोई नहीं लेता. हर तरफ चीन के बने खिलौने पहुंच गए हैं. विदेशी के सामने देशी खिलौने की क्या औकात...’’
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