जब भीड़ चौकी के बाहर खड़ी जीप के पास पहुंची, तो देखा कि ग्लास फैक्टरी का मालिक सेठ दयालराम अपने हिमायती लोगों के बीच खड़ा मंगलू और उस के घर वालों को गंदी गालियां दे रहा था.
आएदिन उन गलियों में मारपीट, गालीगलौज देखनेसुनने के आदी लोगों ने इस से यह अंदाज तो लगा लिया कि आज मंगलू की किसी करतूत से सेठ दयालराम परेशान हैं, तभी तो उतना हंगामा हो रहा था.
पुलिस वालों की सरगर्मी और सख्त चेहरों को देख कर लोग अटकल लगा रहे थे कि इस बार मंगलू नहीं बचेगा.
‘‘अरे, सेठ चाहे तो
10 बस्तियां चुटकियों में खरीद ले. मंगलू जैसे तो बीसियों भर रखे हैं उस ने अपनी फैक्टरी में.’’
‘‘फिर इस की जुर्रत तो देखो.’’
सेठ के पैरों पर गिरा हुआ मंगलू का बाप और लगभग कमर तक झुकी उस की मां दोनों बेटे के लिए दया की भीख मांग रहे थे. मंगलू को देखते ही सेठ का गुस्सा और बढ़ गया. वह पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाते हुए मरियल शरीर के मंगलू के बाप को पीछे धकेलते हुए नफरत से चिल्ला कर बोला, ‘‘इंस्पैक्टर, हटाओं इन्हें यहां से. इन बदमाश लफंगों ने जीना हराम कर दिया है हम शरीफ लोगों का.’’
इंस्पैक्टर, जो सेठ दयालराम की दया और गुस्से की ताकत जानता था, बिना कोई जवाब दिए जल्दी से मंगलू को जीप में बैठा कर बड़े थाने की तरफ चल पड़ा.
जीप कालोनी से दूर होती गई.
2 सिपाहियों के साथ पीछे बिलकुल चुपचाप बैठे मंगलू की आंखों के सामने बारबार सेठ के पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाता हुआ अपने बाप का