उजमा के दोनों बेटे रो रहे थे. बड़ा बेटा रोते हुए कह रहा था, ‘‘पुलिस अंकल, अम्मी से बोलो कि हम उन्हें बिलकुल भी परेशान नहीं करेंगे. वे हमें छोड़ कर न जाएं. हम घर का सारा काम करेंगे. उन्हें बिलकुल भी काम नहीं करने देंगे. बस, वे हमारे साथ रहें. वे जो भी कहेंगी, हम वही करेंगे. अंकल प्लीज, हमारी अम्मी को समझाओ…’’

बच्चों को रोताबिलखता देख कर वहां बैठे सभी पुलिस वालों की आंखों में आंसू आ गए. साथ ही, बच्चों के अब्बा राशिद की आंखें भी नम हो गईं.

पर उजमा ने दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘मैं साहिल से प्यार करती हूं और मुझे इस के साथ जाने से कोई नहीं रोक सकता. मैं अपनी मरजी से साहिल के साथ जा रही हूं, न कि साहिल मुझे जबरदस्ती ले कर जा रहा है.’’

‘‘अम्मी, रुक जाओ. हमें छोड़ कर मत जाओ. तुम हमारी अच्छी अम्मी हो,’’ उजमा के छोटे बेटे ने कहा.

उजमा बोली, ‘‘मेरी कोई औलाद नहीं है. तुम रहो अपने इस नकारा बाप के साथ. मैं इस के साथ रह कर अपनी जिंदगी बरबाद नहीं कर सकती. मेरी भी कुछ ख्वाहिशें हैं… मैं भी अच्छे से जीना चाहती हूं…’’

तभी वहां बैठे एक पत्रकार ने बच्चों के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, रोओ मत. तुम्हारी अम्मी अब तुम्हारे लिए मर चुकी है. उसे भूल जाओ और अपने अब्बा के साथ घर जाओ.

‘‘खुश रहो और उस औरत को भूल जाओ, जो रिश्ते में तुम्हारी मां है. समझना कि तुम्हारी अम्मी अब इस दुनिया में नहीं है.’’

उजमा ने जब उस पत्रकार के मुंह से यह सब सुना, तो वह बुरा सा मुंह बनाते हुए साहिल से बोली, ‘‘चलो, यहां से… मेरे लिए भी मेरे दोनों बच्चे और उन का बाप मर चुका है.’’

यह घटना उत्तर प्रदेश के एक गांव की है, जहां राशिद अपनी बीवी उजमा के साथ खुशीखुशी रहता था.

राशिद एक दिहाड़ी मजदूर था, पर था बड़ा मेहनती. अपनी मेहनत से पूरे घर का खर्चा वह आसानी से उठा लेता था.

राशिद का काम इन दिनों पास के ही एक गांव में चल रहा था. वहां एक अस्पताल बन रहा था, जिस में राशिद दिहाड़ी मजदूर बन कर काम कर रहा था.

राशिद की मेहनत देख कर वहां का ठेकेदार उस से बहुत खुश था और साहिल नाम का वह ठेकेदार राशिद को काफी इज्जत भी देता था, उस का हालचाल पूछता था, वक्तबेवक्त उसे एडवांस में पैसे भी दे देता, क्योंकि राशिद अपना काम दूसरे लोगों की तुलना में मेहनत, ईमानदारी और सफाई के साथ करता था. यही वजह थी कि वहां के ठेकेदार को राशिद पर बहुत भरोसा था और वह उसे अपना दोस्त समझ कर काम की जिम्मेदारी सौंप देता था.

राशिद ने एक दिन अपने ठेकेदार से 5,000 रुपए बतौर एडवांस ले लिए थे.

लेकिन उस के अगले दिन राशिद काम पर नहीं आया, तो ठेकेदार साहिल को अजीब लगा. वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या हुआ? राशिद की तबीयत खराब है या पैसा पा कर उस की नीयत बदल गई.

इसी उधेड़बुन में एक दिन साहिल ठेकेदार राशिद के घर जा पहुंचा. उस ने जैसे ही दरवाजा खटखटाया, अंदर से एक निहायत ही खूबसूरत हसीना फटेपुराने कपड़े पहने उस के सामने आ कर बोली, ‘‘जी कहिए, आप कौन हैं?’’

साहिल की नजर जैसे ही उस हसीना पर पड़ी, उस के होश उड़ गए. उस हसीना का गदराया बदन और उठी हुई छातियां देख कर वह हक्काबक्का रह गया.

उजमा ने फिर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?  किस से मिलना है आप को?’’

ठेकेदार साहिल इस बार भी उजमा के अल्फाज न सुन सका. वह तो बस एकटक उजमा की खूबसूरती को निहार रहा था.

तभी उजमा ने अपनी गरदन को एक झटका देते हुए कहा, ‘‘आप कुछ बोलेंगे भी या यों ही मुझे निहारते रहेंगे,’’ कहते हुए उस ने अपने बालों को हवा में यों लहरा दिया कि साहिल के मुंह से खुद ब खुद निकल पड़ा, ‘‘आप वाकई बहुत ज्यादा खूबसूरत हो.’’

उजमा मुसकराते हुए बोली, ‘‘मेरी तारीफ करना बंद करो और यह बताओ कि आप को किस से मिलना है और यहां क्यों आए हो?’’

साहिल हड़बड़ाते हुए बोला, ‘‘मैं राशिद से मिलने आया हूं. दरअसल, राशिद मेरे पास काम करता है और

मैं उस का ठेकेदार हूं. वह काम पर नहीं आया, तो उस का हालचाल लेने आ गया.’’

यह सुनते ही उजमा सन्न रह गई और बोली, ‘‘आइए बाबूजी, अंदर आइए. राशिद अंदर हैं.’’

साहिल उजमा के पीछेपीछे घर के अंदर पहुंच गया. उजमा उसे राशिद के पास ले गई.

राशिद ने जैसे ही ठेकेदार साहिल को अपने घर में देखा, तो वह शर्मिंदा होते हुए बोला, ‘‘मुझे माफ कर देना बाबूजी. दरअसल, मेरी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए मैं काम पर न आ सका.’’

साहिल बोला, ‘‘कोई बात नहीं. मैं तो यह पता करने आया था कि आखिर क्या बात हुई, जो तुम आज काम पर नहीं आए?’’

राशिद बोला, ‘‘बाबूजी, आप तो देख रहे हो कि मुझे कई दिनों से बुखार था. अब जा कर कुछ सुकून मिला है. आप मुझे माफ कर देना. मैं ने आप से एडवांस पैसा भी लिया और काम पर भी नहीं आ सका.’’

साहिल ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. जब तुम्हारी तबीयत ठीक हो जाए, तब आ जाना. फिलहाल, तुम आराम करो.’’

तभी उजमा चाय ले कर आ गई और एक कप साहिल की तरफ बढ़ाते हुए बोली, ‘‘लो बाबूजी, हम गरीब के घर की चाय पी लो.’’

साहिल ने कहा, ‘‘अरे, इस की क्या जरूरत थी…’’ और उस ने उजमा के हाथों से चाय लेते समय उस के हाथों को छू लिया.

साहिल की इस हरकत से उजमा ने एक कातिल मुसकान से उस की तरफ देखा और मुसकरा दी.

साहिल भी मुसकराते हुए चाय की चुसकी लेते हुए बोला, ‘‘वाह, क्या चाय बनाई है.’’

उजमा ने कहा, ‘‘सच बाबूजी, हमारी चाय क्या आप को पसंद आई?’’

तभी राशिद बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘क्यों हम गरीब लोगों का मजाक उड़ा रहे हैं बाबूजी.’’

साहिल बोला, ‘‘नहीं राशिद, वाकई, आप की बीवी ने चाय बहुत अच्छी बनाई है.’’

चाय पीने के बाद साहिल उठा और राशिद को खर्चे के लिए 2,000 रुपए देते हुए बोला, ‘‘लो राशिद, ये कुछ पैसे रख लो और जब तक तबीयत सही न हो, काम पर आने की जरूरत नहीं है.

‘‘मैं रोजाना शाम को तुम से मिलने आता रहूंगा और किसी भी चीज की जरूरत हो, तो मुझे बेझिझिक बता देना.’’

राशिद ने कहा, ‘‘अरे बाबूजी, इस की क्या जरूरत थी. वैसे भी मैं कल से काम पर आ जाऊंगा.’’

साहिल बोला, ‘‘ये पैसे मैं तुम्हें एडवांस में नहीं दे रहा हूं, मेरी तरफ से तुम्हारे बीवीबच्चों के लिए हैं,’’ कहते हुए साहिल उठा और जैसे ही घर से बाहर निकलने के लिए चला, तो राशिद ने उजमा को आवाज देते हुए कहा, ‘‘बाबूजी को बाहर तक छोड़ आओ.’’

उजमा साहिल के साथ बाहर तक आई, तो दरवाजे के करीब एकांत में पहुंचते ही साहिल ने उजमा से कहा, ‘‘आप बहुत खूबसूरत हो. अगर आप के जैसी कोई आप की बहन हो, तो मेरी शादी उस से करा दो.’’

उजमा बोली, ‘‘मेरी तो कोई बहन नहीं है.’’

तभी ठेकेदार साहिल ने उजमा का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल जन्नत की हूर लगती हो.’’

उजमा मुसकरा दी और बोली, ‘‘अच्छा, आप को मैं ऐसी लगती हूं?’’

‘‘हां, आप वाकई बहुत खूबसूरत हैं,’’ कहते हुए साहिल वहां से बाहर आ गया और उजमा घर के भीतर चली गई.

राशिद ने उजमा से कहा, ‘‘बहुत नेक और मदद करने वाले हैं हमारे साहिल ठेकेदार. एक बात का ध्यान रखना कि वे जब भी कभी यहां आएं, तो उन के नाश्तेपानी में कोई कमी मत रखना.’’

उजमा बोली, ‘‘आप बेफिक्र रहें.

मैं किसी बात की कोई कमी नहीं होने दूंगी. वे जब भी आएंगे, उन की खूब मेहमाननवाजी करूंगी.’’

कुछ दिन बाद राशिद ठीक हो गया और वह काम पर जाने लगा.

एक दिन राशिद काम पर था. साहिल का दिल उजमा से मिलने के लिए बेचैन था. मौसम भी खराब था, तो साहिल ने राशिद से कहा, ‘‘मैं घर जा रहा हूं और जब तक वापस न आऊं, तुम यहीं रहना. अभी 11 बज रहे हैं, मैं दोपहर 2-3 बजे तक आ जाऊंगा.’’

राशिद ने कहा, ‘‘ठीक है बाबूजी, आप यहां की जरा भी फिक्र मत करो. मैं यहां सब संभाल लूंगा.’’

साहिल ने अपनी कार स्टार्ट की और राशिद के घर की तरफ चल दिया. राशिद के घर के पास पहुंच कर उस ने जैसे ही दरवाजा खटखटाया, उजमा बाहर निकल आई और बोली, ‘‘बाबूजी, आप यहां कैसे…? राशिद तो काम पर गए हैं.’’

साहिल बोला, ‘‘मालूम है मुझे. मैं तो बस बच्चों की खैरियत मालूम करने आया हूं…’’ साहिल ने अभी अपना जुमला पूरा भी नहीं किया था कि तभी जोरदार बारिश होने लगी.

साहिल ने कहा, ‘‘अंदर भी आने दोगी या सब यहीं दरवाजे पर मालूम करोगी…’’

उजमा बोली, ‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. दरअसल, बच्चे भी स्कूल गए हैं. आप आओ न अंदर.’’

साहिल उजमा के साथ घर के अंदर आ गया. उजमा ने साहिल को बैठने के लिए कहा और बोली, ‘‘मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

साहिल ने कहा, ‘‘नहीं, चाय नहीं. बस, तुम से एक बात पूछनी थी कि तुम इतनी खूबसूरत हो, फिर राशिद जैसे गरीब के साथ जिंदगी कैसे गुजार रही हो?’’

उजमा ने कहा, ‘‘बाबूजी, मेरे मांबाप बहुत गरीब थे. उन्होंने मेरा निकाह राशिद से कर दिया, तो अब अपनी किस्मत समझ कर इन के साथ रहने को मजबूर हूं.’’

साहिल ने आगे बढ़ कर उजमा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘मैं ने जब से तुम्हें देखा है, तुम्हारा दीवाना हो गया हूं. तुम बला की खूबसूरत हो. तुम्हें यहां देख कर ऐसा लगता है, जैसे कीचड़ में कोई कमल खिला हो.’’

उजमा ने पूछा, ‘‘सच बाबूजी, आप को मैं अच्छी लगती हूं?’’

साहिल ने कहा, ‘‘अगर तुम्हें एतराज न हो, तो तुम मुझ से शादी कर लो. मैं तुम्हें इस कीचड़ से निकाल कर महल में रखूंगा.’’

इतना कहते हुए साहिल ने उजमा को अपनी बांहों में भरते हुए उस के गुलाबी रस भरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

साहिल की इस हरकत से उजमा सिहर उठी. उस के बदन में हवस की आग भड़कने लगी.

साहिल ने उजमा की उठी हुई छातियों से उस के दुपट्टे को अलग करते हुए उन्हें अपने हाथों की गिरफ्त में ले लिया और सहलाने लगा.

उजमा कसमसा कर ठेकेदार साहिल की बांहों में सिमटने को बेताब होने लगी.

साहिल ने बिना समय गंवाए उजमा को चारपाई पर लिटा दिया और उस के अंगों को बेतहाशा चूमते हुए उस के बदन से कपड़े हटाने लगा. कुछ ही देर में पूरा कमरा कामुक आवाजों से गूंजने लगा.

एक बार साहिल और उजमा के बीच यह जिस्मानी रिश्ता बना, तो फिर रुकने का नाम ही नहीं लिया. अब उन दोनों को जब भी मौका मिलता, वे एकदूसरे से अपनेअपने जिस्म की ख्वाहिश पूरी करने लगे.

कई महीनों तक दोनों का यह रिश्ता चलता रहा, फिर साहिल ठेकेदार का वह ठेका भी पूरा हो गया और राशिद अब अपने घर पर रहने लगा.

राशिद के घर पर रहने से उजमा और साहिल को मिलने में दिक्कत आने लगी. दोनों तरफ आग भड़की हुई थी. उजमा को अब न बच्चों की परवाह थी और न राशिद की. उस का तो बस अब यही सपना था कि वह अपनी जिंदगी की नई शुरुआत साहिल के साथ करे.

एक रात उजमा साहिल के साथ घर छोड़ कर चली गई और एक परचा लिख कर रख गई, ‘मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. मैं तुम्हारे साथ अब और नहीं रह सकती. मुझे भी अपनी जिंदगी जीने का हक है, जिसे मैं अपनी मरजी से जीना चाहती हूं.

‘मैं ने अपना जीवनसाथी ढूंढ़ लिया है, जो मुझे बहुत प्यार करता है और मेरा अच्छे से खयाल रखता है. उस के पास काफी पैसा भी है. मैं यह गरीबी वाली जिंदगी जी कर थक चुकी हूं, इसलिए मैं यह घर छोड़ कर अपनी मरजी से जा रही हूं.’

राशिद ने जब उजमा का यह परचा पढ़ा, तो उस के होश ही उड़ गए. वह समझ गया कि उजमा को उस के सपनों का राजकुमार मिल गया है, इसलिए वह घर छोड़ कर चली गई है.

राशिद ने थाने में जा कर उजमा को ढूंढ़ने की फरियाद की और साथ ही, उजमा का लिखा वह परचा भी पुलिस को दिखाया.

पुलिस वालों ने राशिद को दिलासा देते हुए इतना ही कहा कि जब उजमा अपनी मरजी से गई है, तो उसे ढूंढ़ना बेकार है.

राशिद के पास उस पुलिस वाले के सवाल का कोई जवाब न था. वह वापस घर लौट आया. पुलिस ने भी उजमा को ढूंढ़ने की कोशिश नहीं की.

बच्चों का अपनी मां के लिए रोरो कर बुरा हाल था. राशिद की सम?ा में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और कैसे उन की मां बच्चों को ला कर दे.

एक दिन गांव में एक हादसा हो गया था. वहां पर कई पत्रकार आए हुए थे, तभी राशिद का बड़ा बेटा रोता हुआ पत्रकार तनवीर के पास आया और बोला, ‘‘अंकल, मेरी अम्मी को ढूंढ़ कर हमारे पास ले आओ.’’

पत्रकार तनवीर हैरानी से उस बच्चे की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘बेटे, क्या हुआ है तुम्हारी अम्मी को और वे कहां हैं? तुम उन्हें क्यों ढूंढ़ रहे हो? तुम्हारे अब्बा कहां हैं?’’

बच्चे ने कहा, ‘‘वे सामने मेरे अब्बा खड़े हैं और हमारी अम्मी कई दिनों से घर से कहीं चली गई हैं. उन का कुछ अतापता नहीं है. अब्बा और मैं पुलिस अंकल के पास भी गए थे, पर वे अभी तक हमारी अम्मी को ढूंढ़ कर नहीं लाए हैं. आप हमारी मदद कर दो, प्लीज.’’

पत्रकार तनवीर बच्चे को ले कर राशिद के पास गया, तो उस ने देखा कि राशिद एक बच्चे का हाथ पकड़े एक तरफ खड़ा था और उस की आंखों में आंसू थे. उस का शरीर काफी कमजोर लग रहा था, बदन पर फटेपुराने कपड़े थे.

तनवीर पत्रकार राशिद से बोला, ‘‘यह बच्चा क्या कह रहा है? कहां है इस की अम्मी?’’

राशिद ने पूरा मामला पत्रकार तनवीर को बताया और कहा, ‘‘बच्चे अपनी मां को बहुत याद करते हैं. वह अपने किसी आशिक के साथ हम सब को छोड़ कर चली गई है. उस ने बच्चों तक की कोई परवाह नहीं की.

‘‘मैं ने पुलिस में भी जा कर शिकायत भी की, पर हवलदार बोले कि जब तुम्हारी बीवी अपनी मरजी से गई है, तो इस का मतलब यह है कि वह तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती है.’’

तनवीर पत्रकार ने कहा, ‘‘आप चिंता मत करो. मैं अभी इंस्पैक्टर से बात कर के उसे ढूंढ़ने पर जोर देता हूं. आप मुझे उस का कोई फोटो दे दो.’’

तनवीर ने इंस्पैक्टर से मिल कर उजमा को जल्दी ढूंढ़ने के लिए कहा, तो अगले ही दिन उजमा अपने आशिक साहिल के साथ थाने में आ गई.

राशिद और उस के बच्चों को भी थाने में बुला लिया गया, जहां काफी बहस और एकदूसरे की बात सुनने के बाद सब की आंखें नम हो गईं, क्योंकि उजमा ने राशिद के साथ न रहने का दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘मुझे न बच्चों की परवाह है और न पति राशिद की. मैं साहिल से प्यार करती हूं और उसी के साथ रहना चाहती हूं. साहिल मुझे भगा कर नहीं ले गया, बल्कि मैं अपनी मरजी से इस के साथ गई हूं.’’

उजमा के इस जवाब को सुन कर राशिद ही नहीं, बल्कि बच्चों की आंखों में भी आंसू आ गए, पर उजमा पर इस का कोई असर न हुआ. उस ने साहिल के हाथ में हाथ डाला और पुलिस स्टेशन से बाहर निकल कर एक चमचमाती गाड़ी में बैठ कर वहां से चली गई.

राशिद अपने बच्चों को ले कर घर आ गया. उजमा के इस फैसले से वह पूरी तरह हिल चुका था. उस की हंसतीखेलती दुनिया उजड़ चुकी थी.

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