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‘‘मैं तो सोच रहा था, तुम किसी बड़ी कंपनी में इंजीनियर बन गए होगे. यह तुम टीचर कहां बन बैठे,’’ पैदल चलतेचलते अमित ने राहुल से कहा.

‘‘मैं तो हमेशा से टीचर ही बनना चाहता था,’’ राहुल ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

‘‘अच्छा, अगर टीचर ही बनना था तो यह फटीचर स्कूल ही रह गया था. तुम कहो तो अमेरिका या इंग्लैंड में किसी से बात करूं. यों चुटकियों में तुम्हारा चयन करा दूंगा. या कहो तो दिल्ली या दुबई में एक स्कूल ही खुलवा देता हूं. दोस्तों के लिए इतना तो कर ही सकता हूं.’’ अमित ने बड़े गर्व के साथ राहुल से कहा.

‘‘अरे भाई, मैं भी इसी स्कूल में पढ़ चुका हूं. हां, स्कूल की बिल्ंिडग जरूर पुरानी है लेकिन यहां की पढ़ाई पूरे जिले में सब से अच्छी मानी जाती है.’’ अपने स्कूल के बारे में बताते हुए राहुल की आंखों में एक चमक सी थी.

‘‘और तुम्हारे औफर के लिए धन्यवाद, लेकिन मैं यहीं खुश हूं,’’ राहुल ने मुसकराते हुए कहा तो अमित को थोड़ी निराशा सी हुई.

‘‘लेकिन इस छोटे से शहर में रह कर तुम कितनी तरक्की कर पाओगे? अपना नहीं तो अपने बच्चों के बारे में सोचो.  कल उन को भी किसी बड़े शहर जाना ही होगा. मेरी मानो तो मेरे साथ दुबई चलो.  चाहो तो मेरी कंपनी में जौब कर लेना या फिर तुम्हें किसी स्कूल में सैट करा दूंगा,’’ अमित ने राहुल को सम?ाने की कोशिश की.

राहुल के घर जाने तक गली के कई लोग राहुल को ‘नमस्ते सर’ कहते सत्कार व्यक्त करने लगे. अमित के साथ कभी ऐसा नहीं हुआ था. राहुल के प्रति लोगों के इस प्रकार के सत्कारभाव को देख वह थोड़ा सकुचाया.

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