यह जान कर कि राहुल किसी छोटे से स्कूल में टीचर है, अमित उस से मिलने के लिए बेचैन ही हो उठा. अब तो अपनी हार का बदला लेने का अवसर उस को साफसाफ नजर आ रहा था.
अगले दिन ही अमित ने अपनी बीएमडब्लू निकाली और बिजनौर की तरफ चल दिया. राहुल का स्कूल ढूंढ़ने में उसे ज्यादा दिक्कत नहीं हुई. वह स्कूल के गेट पर पहुंचा तो वौचमैन से राहुल के बारे में पूछा. वौचमैन ने अमित को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, ‘‘बिलकुल, यहीं तो काम करते हैं हमारे राहुल सर. आप कौन हैं वैसे?’’
सवाल के जवाब में अमित ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘हम एक ही स्कूल के हैं.’’
‘‘अरे, आप राहुल सरजी के दोस्त हैं. आइए न, मैं ले चलता हूं आप को उन तक.’’
‘‘नहींनहीं, मैं इंतजार कर कर लूंगा, कोई बात नहीं,’’ अमित ने कहा और वह वहीं खड़ा हो कर स्कूल की छुट्टी होने का इंतजार करने लगा.
दोपहर बाद स्कूल की छुट्टी हो गई और थोड़ी देर बाद राहुल भी स्कूल से बाहर आता दिखाई दिया. साधारण से कपड़े पहने राहुल अपनी स्कूटी पर बैठा ही था कि अमित उस के सामने आ गया.
‘‘हाय राहुल. कैसे हो? पहचाना?’’ अमित ने राहुल की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा.
महंगे सूटबूट पहने अमित को एक क्षण के लिए तो राहुल पहचान ही नहीं पाया.
‘‘अरे यार, मैं अमित. हम लोग डीपीएस में साथ पढ़ते थे,’’ अमित ने राहुल को याद दिलाते हुए कहा.
‘‘अरे, अमित, तुम यहां? सौरी इतने दिनों बाद देखा तो एकदम से पहचान नहीं पाया,’’ राहुल ने अमित का हाथ अपने हाथों में लेते हुए बड़ी खुशी से कहा.