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लेखक- मधु शर्मा कटिहा

‘‘वान्या,आज से तुम ही संभालना घर और मेरे इस अनाड़ी से भाई को. अगर फ्लाइट्स बंद नहीं हो रही होतीं तो मैं कुछ दिन तुम लोगों के साथ बिता कर जाती. वैसे ठीक ही है हमारा जल्दी जाना. बच्चे दादादादी को खूब तंग कर रहे होंगे कोलकाता में. बहुत चाह रहे थे बच्चे अपनी दुल्हन मामी से मिलना. जल्दबाजी में सब कुछ नहीं करना पड़ता तो सब को ले कर आती.’’ सुरभि अपनी नईनवेली भाभी वान्या को टैक्सी में पीछे की सीट पर बैठे हुए बता रही थी. वान्या मुसकराते हुए सिर हिला कर कभी सुरभि को देखती तो कभी पास ही बैठे अपने पति आर्यन को. सुरभि का बोलना जारी था, ‘‘शादी चाहे जल्दबाजी में हुई, लेकिन सही फैसला है. अब मुझे आर्यन की फिक्र तो नहीं रहेगी. कोविड-19 ने तो ऐसा आतंक मचाया है कि डर लगने लगा है. तुम लोग भी ध्यान रखना अपना. हो सके तो अभी घर पर ही रहना, घूमने के लिए तो उम्र पड़ी है...’’

‘‘बसबस... रहने दो. टीचर है भाभी तुम्हारी और हमारे साले साहब आर्यन भी बेवकूफ थोड़े ही हैं कि जब इंडिया में भी कोरोना अपने पैर फैला रहा है तब बिना सोचेसमझे चल देंगे कहीं घूमने. क्यों साले साहब?’’ ड्राईवर के साथ आगे की सीट पर बैठे सुरभि के पति विशाल ने सिर पीछे घुमा कर आर्यन पर मुसकराती दृष्टि डालते हुए कहा.

वान्या और आर्यन का विवाह दो दिन पहले ही हुआ था. जुलाई में डेट थी शादी की, लेकिन कोरोना के कारण आर्यन ने ही फैसला किया था कि सादे समारोह में केवल पारिवारिक सदस्यों के बीच विवाह जल्दी से जल्दी हो जाए. वान्या का घर दिल्ली में था, इसलिए विवाह का आयोजन वहीं हुआ था. आर्यन हिमाचल प्रदेश के बड़ोग शहर का रहने वाला था. परिवार के नाम पर आर्यन की एक बड़ी बहन सुरभि थी, जो कोलकाता में अपने परिवार के साथ रहती थी. पति के साथ विवाह में सम्मिलित होने सुरभि वहां से सीधा दिल्ली पहुंच गई थी. आज वे दोनों वापस जा रहे थे, वान्या को ले कर आर्यन भी अपने घर आ रहा था. दीदीजीजू को एअरपोर्ट छोड़ने के बाद उन को रेलवे स्टेशन जाना था. दिल्ली से कालका तक वे ट्रेन से जाने वाले थे, जो रात 11 बजे चल कर सुबह 4 बजे कालका पहुंचती. वहां से टैक्सी द्वारा उन्हें आगे का सफर तय करना था.

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