कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लेखक- मधु शर्मा कटिहा

‘‘देखो वह सामने सीढ़ीदार खेत, पहाड़ों पर जगह कम होने के कारण बनाए जाते हैं ऐसे खेत... और दूर वहां रंगीन सा गलीचा दिख रहा है? फूलों की खेती होती है उधर.’’

कुछ देर बाद हलका कोहरा छाने लगा. आर्यन ने बताया कि ये सांवली घटाएं हैं जो अकसर शाम को आकाश के एक छोर से दूसरे तक कपड़े के थान सी तन जाती है. कभी बरसती हैं तो कभी सुबह सूरज के आते ही अपने को लपेट अगले दिन आने के लिए वापस चली जाती हैं.

सूरज ढलने के साथ अंधेरा होने लगा तो दोनों नीचे आ गए. घर सुंदर बल्बों और झूमरों से जगमग कर रहा था. वान्या का अंगअंग भी आर्यन के प्रेम की रोशनी से झिलमिला रहा था. सुबह वाली बात मन में अंधेरे में कहीं गुम सी हो गई थी.

प्रेमा के खाना बना कर जाने के बाद आर्यन वान्या को डायनिंग रूम के पास बने एक कमरे में ले गया. कमरे की अलमारी से महंगी क्रौकरी, चांदी के चम्मच, नाइफ और फोर्क आदि वान्या को बेहद आकर्षित कर रहे थे, लेकिन थकान से शरीर अधमरा हो रहा था. कमरे में बिछे गद्देदार सिल्वर ग्रे काउच पर वह गोलाकार मुलायम कुशन के सहारे कमर टिका कर बैठ गई. आर्यन ने कांच के 2 गिलास लिए और पास रखे रैफ्रीजरेटर से ऐप्पल जूस निकाल कर गिलासों में उड़ेल दिया. वान्या ने गिलास थामा तो पैंदे पर बाहर की ओर क्रिस्टल से बने गुलाबी कमल के फूल की सुंदरता में खो गई.

‘‘फूल तो ये हैं... कितने खूबसूरत,’’ कहते हुए आर्यन ने अपने ठंडे जूस में डूबे अधरों से वान्या के होंठों को छू लिया. वान्या मदहोश हो खिलखिला उठी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...