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जब सुशांत ने मां से कहा कि शादी उन के पैतृक निवास से ही होगी तो बीना को सुखद आश्चर्य हुआ था. शादी धूमधाम से संपन्न हो गई. अमृता शक्लसूरत से तो सामान्य थी पर व्यवहार से विनम्र और सुशील लगी थी. उस की शर्मीली मुसकान बीना को एक दुलहन के लिए स्वाभाविक ही लगी थी. फिर उस का संयमित व्यवहार शायद प्रेम विवाह के ढंग को मिटाने की एक कोशिश...इन्हीं विचारों ने बीना को तटस्थ बनाए रखा.

शादी के बाद बंगलौर से बेटाबहू के फोन अकसर आते रहते थे जिन में एक ही जिज्ञासा होती थी कि मां, हमारे पास आप कब आ रही हैं? अमृता की मीठी गुजारिश तो मात्र एक औपचारिकता थी क्योंकि इस प्रेममय बुलावे में बीना को उन की अनकही आस का आभास होता था. शायद मां को खुश कर उस के पैसे और मकान की इच्छा...इसी ऊहापोह में बीना उन के आग्रह को हर बार टाल जाती थीं पर इस बार जब सुशांत फोन पर भावुक हो उठा तो उन्होंने सोचा कि चलो, चल कर देख ही लिया जाए कि क्या होता है.

बंगलौर हवाई अड्डे पर सामान के साथ बीना जब बाहर निकलीं तो भीड़ में सुशांत हाथ हिलाता हुआ नजर आया पर अमृता कहीं दिखाई नहीं दी तो उन्होंने सोचा शायद आफिस से छुट्टी नहीं मिली होगी. फिर खयाल आया कि आज तो रविवार है, आफिस तो बंद होगा. यहीं से हो गई अवहेलना की पहली शुरुआत, सोचते हुए वह सुशांत के साथ कार की ओर बढ़ गईं.

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कार चलाते हुए सुशांत मां को बंगलौर के बारे में बताता जा रहा था. बीना ने महसूस किया कि उस की आवाज में बहुत उत्साह था. चलो, कुछ देर को ही सही, बेटा उसे देख कर खुश तो हुआ और यही सोच कर उन्हें अच्छा लगा. कुछ ही देर में गाड़ी गोल्डन अपार्टमेंट के गेट पर आ कर रुकी.

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