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रोज की मालिश और दवा ने कमाल दिखाया तो 2 दिन में ही उन के पैर में आराम आ गया. अगले दिन वे सब घूमने निकल पड़े. बच्चों ने उन्हें एक शानदार मौल में घुमाया, कुछ शापिंग हुई और फिर सब ने चाट का आनंद लिया. बीना ने बहुत समय के बाद इतना सैरसपाटा किया था. उन का मन खुश हो उठा.

अगले दिन सुशांत ने मां को बताया कि इस रविवार को वह अपनी तरक्की होने की खुशी में दोस्तों कोपार्टी दे रहा है और पार्टी घर में ही रखी गई है तो बीना सोच में पड़ गईं कि उन सब अनजान चेहरों के बीच वह तो अलगथलग ही पड़ जाएंगी.

तभी सुशांत बोल पड़ा, ‘‘मां, उस दिन आप को हमारे साथ अपने वित्तीय अनुभव शेयर करने होंगे. उन से हमें भविष्य की योजना बनाने के लिए सही दिशा मिलेगी.’’

सुशांत की इस पेशकश ने बीना की उलझन को पल में सुलझा दिया पर साथ ही उन्हें हैरानी भरे एक नए मंजर में छोड़ दिया. वह तो उन दोनों से एक दूरी बनाए रखने की निरंतर कोशिश कर रही थीं पर उन्होंने उसे दूर होने कहां दिया था. क्या उन्हें अपनी जिंदगी में सचमुच मां की जरूरत थी या फिर यह एक दिखावा भर था? बारबार ऐसे खयाल उन के जेहन में आ रहे थे पर वे किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थीं.

रविवार की सुबह सुशांत ने पूछ लिया कि मां, आप की टाक का विषय क्या रहेगा?

‘‘अब यह तो शाम को ही पता चलेगा. सब्र करो, सब्र का फल मीठा होता है, क्यों मांजी?’’ अमृता ने चुटकी ली तो तीनों हंस पड़े.

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