रीलौंचिंग होती है, होने दें. प्रोडक्ट की रीलौंचिंग होती रहनी चाहिए. गाडि़यों की होती है. बिल्डर फ्लैटों की करते हैं. साहित्य, कला, संस्कृति इन से अलग नहीं हैं. संगीत के साथसाथ सभी कलाओं में भी रीलौंचिंग की परंपरा है. अरे भाई, नेताओं की या पार्टियों की रीलौंचिंग हो, तो हायतोबा मचाने की क्या जरूरत आ पड़ी. सरकारों का भी एक रूप बहुरुपियों का होता है. इधर भूमि अधिग्रहण विधेयक को ग्रहण लगा हुआ है, फिर भी वह नएनए विधेयक या अध्यादेश के रूप में लौंच होता रहता है. लोकतंत्र को चलाए रखने के लिए यह सब होता रहना जरूरी है.

लौंचिंग से फसलों पर पड़े ओलों की भरपाई नहीं हो सकती. बाउंस होते सरकारी चैकों से रकम नहीं आ जाएगी. किसानों की आत्महत्या के आंकड़े भी कम नहीं होंगे. लेकिन किसानों को कंगाल बना देने वाली अधिग्रहण बिल की साजिश देश के लोगों को जरूर समझ में आएगी. कारपोरेट घराना एक नए भारत का सपना संजोए हुए है. उस में किसानों को अभी से हाशिए पर डालने की कोशिश का नाम है भूमि अधिग्रहण अध्यादेश, ताकि किसानों की बेशकीमती जमीन पर अरबपति अपने सपनों के आशियाने को और मजबूती दे सकें.

लौंचिंग हो तो दमदार हो, जानदार हो. जैसे बराक ओबामा के साथ 10 लाख के सूट का दमखम दिखा. पूरे देश में तहलका मचा. सोशल मीडिया में सूट छा गया. उन दिनों देश के पास सूट के सिवा और था ही क्या? कोई कीमत आंकने लगा, कोई दर्जी की तलाश में निकल पड़ा.

भद्रजन सूट के होने पर सवालिया निशान दागने लगे. करोड़ोंअरबों के वारेन्यारे को छोड़ कर देश का मीडिया हाथ धो कर सूट के पीछे पड़ा रहा. कीमती सूट के साथ प्राइम मिनिस्टर की लौंचिंग होती है, तो इतने बवाल की क्या जरूरत? देश के स्वाभिमान के सामने 10 लाख की क्या औकात? वैसे भी इतिहास को दोबारा लिखा जा रहा है. नए इतिहास में एकाध अध्याय सूट व सूट माहिरों पर भी हो जाए, तो बिल्ली के भाग्य से. सूट बड़ा भाग्यशाली निकला. नीलामी में अपनी ऊंची बोली लगवा कर सुर्खियों में आ गया. इसे कहते हैं अपनाअपना भाग्य. आजकल कुछ नेता बिलकुल नई तरह से अपनी लौंचिंग कराने लगे हैं.

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