कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

उन के मुल्क में जितनी भी सुविधाएं और तकनीकें हासिल थीं, सब पर प्रयास कर डाले गए थे, पर सफलता की कोई भी गुंजाइश न पा कर वहां के सभी डाक्टरों ने डेविड को आखिरी जवाब दे दिया था. डेविड ने भारी मन से यह सचाई जेनी को बताई थी. इस पर उस का भी दुखी होना स्वाभाविक ही था.

डेविड खुद अमेरिका के जानेमाने डाक्टरों में से एक थे. लिहाजा, उन से कोई डाक्टर झूठ बोले, सवाल ही नहीं उठता था. फिर सारी की सारी पैथालाजिकल रिपोट उन के सामने थीं. उन को सचाई का ज्ञान हो चुका था कि कमी किस में है और किस किस्म की है. पर उस का हल जब था ही नहीं तो क्या किया जा सकता था. नाम, सम्मान और आर्थिक रूप से काफी मजबूत होने के बावजूद उन के साथ यह एक ऐसी त्रासदी थी कि दोनों ही दुखी थे.

डेविड जेनी को बहुत ज्यादा प्यार करते थे. जब जेनी बच्चे की लालसा में आंखें नम कर लेती थी, डेविड तड़प उठते थे. पर इस खबर से पहले हमेशा उसे धीरज बंधाते रहते थे कि सही इलाज के बाद उन्हें संतानसुख अवश्य मिलेगा.

यह खबर ऐसी थी कि न तो छिपाई जा सकी और न ही उस के बाद जेनी को रोने से रोका ही जा सका था. वह लगातार रोए चली जा रही थी और डेविड उसे कंधे से लगाए ढाढ़स बंधाए जा रहे थे कि अभी भी एक रास्ता बचा है.

जब जेनी की सिसकियां कुछ थमीं और उस की सवालिया निगाहें उठीं तो डेविड ने कहा, ‘‘एक  ‘सेरोगेट मदर’ की जरूरत  होगी जो यहां अमेरिका में तो नहीं, पर हिंदुस्तान में बहुत आसानी से मिल जाएगी और फिर हम एक बच्चा आसानी से पा सकेंगे.’’

जेनी ने डेविड की आंखों में झांका जो पहले से ही उस के स्वागत में बिछी हुई थीं. जेनी की आंखों में चमक आ गई. उस ने डेविड को अपनी बांहों में कस लिया और कई चुंबन ले डाले.

डेविड ने अपने मुल्क की करेंसी में व हिंदुस्तान की करेंसी में मामूली सी तुलना करने के बाद बताया कि हिंदुस्तान में मात्र 2-3 लाख में ‘सेरोगेट मदर’ आसानी से मिल सकती है, जबकि इस से 10 गुनी कीमत पर भी अमेरिका में नहीं मिल सकती. जेनी पहले हिंदुस्तान को बड़ी हेयदृष्टि से देखा करती थी. उस के बारे में नए सिरे से सोचने को मजबूर हो गई.

ये भी पढ़ें- अंधेरे की छाया…

अब जेनी ने स्थानीय अखबारों में एक विज्ञापन दे डाला, ‘तुरंत आवश्यकता है एक दुभाषिये की, जिसे अंगरेजी और हिंदी का अच्छा ज्ञान हो’ और प्रत्याशियों का बेसब्री से इंतजार करने लगी. अपने यहां के अखबारों में हिंदुस्तान के बारे में जिन खबरों से खास चिढ़ थी, उन्हें ध्यान से पढ़ने लगी. मन एकाएक हिंदुस्तान के रंग में रंगा नजर आने लगा. जिस मुल्क को वह भिखारी और निरीह देश कहा करती थी, अब फरिश्ता नजर आने लगा था. वहां की सामाजिक व्यवस्था, राजनीति व संस्कृति आदि के बारे में जेनी कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा जान लेने के लिए आतुर हो उठी.

एक अच्छे दुभाषिये के मिल जाने पर जेनी ने उस से पहली ही भेंट में तमाम सवाल कर डाले, ‘उस ने हिंदी क्यों सीखी? क्या वह कभी हिंदुस्तान गया था? क्या उसे हिंदुस्तानी रीतिरिवाजों का कुछ ज्ञान है? क्या वह कहीं से ऐसा साहित्य ला सकता है जो वहां के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दिला सके? क्या वह हिंदी के प्रचलित शब्दों और मुहावरों के बारे में जानता है आदि.’

यह सब जानने के बाद जेनी में इतना भी सब्र नहीं बचा कि वह डाक्टर डेविड को घर आने देती…उस ने फोन पर ही दुभाषिये के बारे में तमाम जानकारी उन्हें दे डाली. डेविड उस के दर्द से अच्छी तरह वाकिफ थे, इसलिए किसी प्रकार का एतराज न करते हुए उसे आश्वस्त किया कि वह जल्दी ही हिंदुस्तान चलेंगे.

जेनी की भावनाओं की कद्र करते हुए डेविड ने भी हिंदुस्तानी अखबारों में एक ‘सेरोगेट मदर’ की आवश्यकता वाला विज्ञापन भिजवा दिया और बेताबी से जवाब का इंतजार करने लगे. मियांबीवी में अकसर हिंदुस्तान के बारे में जम कर चर्चाएं होने लगीं. उन लोगों को यहां के वैवाहिक विज्ञापनों पर बड़ा कौतूहल हुआ करता था. वह अकसर प्रणय व परिणय के बारे में अपने मुल्क और हिंदुस्तान के बीच तुलना करने बैठ जाते थे.

जब जेनी यह बताती कि हिंदुओं में लड़की वाले, शादी के लिए लड़के वालों के वहां जाते हैं, डेविड यह बताना नहीं भूलते कि मुसलमानों में लड़के वाले लड़की वालों के घर जाते हैं. मुसलमानों में लड़कियों में शीन काफ यानी नाकनक्श खासकर देखे जाते हैं. अगर किसी लड़की के यहां कोई भी लड़के वाला न आया तो वह आजीवन कुंआरी भी रह सकती है, पर धर्म के मामले में वह इतनी कट्टर होती है कि बगावत करने की हिम्मत कम ही कर पाती है.

सलमा एक ऐसी ही हिंदुस्तानी मुसलमान परिवार की लड़की थी. वह बहुत ही खूबसूरत थी, पर उस की बड़ी बहन मामूली नाकनक्श होने के कारण हीनता की शिकार होती चली जा रही थी. गरीबी के चलते बड़ी तो मदरसे की मजहबी तालीम से आगे नहीं बढ़ पाई थी, हां, छोटी ने 10वीं कर ली थी. बाप सब्जी का ठेला लगाता था. मामूली कमाई में 4 लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो पाता था.

वैसे तो शहर में 20 साल की लड़की होना कोई माने नहीं रखता पर उस की खूबसूरती एक अच्छीखासी मुसीबत बन गई थी. दिन भर तमाम लड़के  उस की गली के चक्कर लगाने  लगे थे. बड़ी बहन के लिए कोई रिश्ता न आने से गाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रही थी. मांबाप की राय थी, पहले बड़ी लड़की निबटा दी जाए तब ही छोटी के बारे में सोचा जाए पर छोटी वाली के लिए तमाम नातेरिश्तेदारों के अलावा लोग टूटे पड़ रहे थे.

एक तो उम्र का तकाजा, उस पर गरीबी की मार. आखिर सलमा के कदम बहक ही गए. जिस घर में भरपेट रोटी नसीब न हो रही हो, उस घर की इज्जत क्या और ईमान क्या? सलमा एक हिंदू लड़के को दिल दे बैठी. क्यों का जवाब भी बड़ा अजीब था. वह जब अपनी हमउम्र सहेलियों को साजशृंगार किए देखती तो उस का मन भी ललचा जाता. काश, वह भी आने वाली ईद पर एक सोने की नथनी खरीद सकती.

यह बात कहीं से चल कर एक फल वाले नौजवान कमल तक पहुंच चुकी थी. उस ने सलमा से अकेले मिलने पर सोने की नथनी देने का वादा उस तक पहुंचवा दिया. पहले मिलन में ही कमल ने न जाने कौन सा जादू कर दिया कि दोनों ने न बिछड़ने की कसम ही खा डाली. नथनी की बात तो खैर काफी पीछे छूट गई.

दोनों का मामला धर्म के ठेकेदारों तक पहुंचा. उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि धर्म के ठेकेदार बड़े मामलों में ही हाथ डालते हैं, जिन से शोहरत व उन के निजी स्वार्थ सध सकें. एक मामूली सब्जी वाले की लड़की की इज्जत ही क्या होती है? ‘गरीबों में यह सब चलता है.’ कह कर कुछ लोगों ने टाल दिया, कुछ लोगों ने कुछ दिनों तक इस मुद्दे पर खूब चटखारे लगाए. मात्र एक रात का मातम मना कर मांबाप भी सामान्य हो गए. उन के मुंह से इतना ही निकला, ‘‘एक तरह से ठीक ही हुआ.’’

कमल का चालचलन ठीक न होने के कारण उस के घर वाले इस शादी के लिए तैयार नहीं थे. जब लड़की वाले राजी थे तो उन्होंने मजबूरी में हां कर दी थी पर शादी के बाद बेटे को घर से अलग कर दिया था.

शादी का बोझ बढ़ जाने के साथ ही घर से अलग होना कुछ ज्यादा ही महंगा पड़ा. जल्द ही एक नन्ही सी बेटी ने खर्च और बढ़ा दिया. 1-2 बार तो सलमा ने अपने बाप से पैसे मंगवा कर कमल की मदद भी की पर हालात बिगड़ने लगे तो सलमा ने अपनी पड़ोसिन रोमी से किसी काम के लिए राय मांगी तो उस ने सिलाईकढ़ाई का काम भी सिखाया और कमाई का जरिया भी बनवा दिया.

सलमा बहुत खुश थी कि अब वह गृहस्थी का बोझ संभालने में कमल की अच्छीखासी मदद कर सकेगी पर फिर भी ऐसा हो नहीं सका, क्योंकि जैसेजैसे सलमा ने आर्थिक स्थिति मजबूत करनी शुरू की कमल ने दारू पीना शुरू कर दिया.

सलमा ने जल्द ही महसूस किया कि उस ने कमल से शादी कर के बहुत बड़ी भूल कर डाली थी. जो आदमी एक मामूली सी नथनी का वादा पूरा नहीं कर सका वह जिंदगी भर का साथ कैसे निभा पाएगा. बजाय आमदनी बढ़ाने के उस ने दारू पीनी शुरू कर के एक और चिंता बढ़ा दी थी, मायके व ससुराल दोनों के रास्ते पहले ही बंद हो चुके थे.

सलमा का सहारा बनने के बजाय कमल उस पर और अधिक कमाने के लिए दबाव बनाने लगा.

ये भी पढ़ें- अकेले होने का दर्द…

जैसेजैसे कमल पर दारू का नशा तेज होने लगा, सलमा के प्यार का नशा उतरने लगा. वह अधिक से अधिक कमाई करने की होड़ में अपनी सेहत और खूबसूरती खोने लगी. कमल दिन भर इधरउधर मटरगश्ती करता, देर रात आता और सुबह फिर कुछ पैसे ले कर ठेला लगाने का बहाना कर के गायब हो जाता.

पहली बेटी एक साल की मुश्किल से हुई होगी कि एक और हो गई. मुश्किलें और बढ़ गईं. सलमा ने कमल को कई बार विश्वास में ले कर समझाना चाहा पर वह एक ही बात कहता कि वह बड़े धंधे की कोशिश में लगा हुआ है. सलमा चुप हो जाती. फल का ठेला कम ही लग पाता. जो कमाई होती वह दारू के लिए कम पड़ जाती. मकान का किराया चढ़ने लगा. सलमा परेशान रहने लगी.

एक दिन सलमा घर पर बैठी यही सब सोच रही थी कि उस की पड़ोसिन रोमी ने उसे एक अजीब खबर दे कर उस का ध्यान बंटा दिया कि अखबार में ‘सेरोगेट मदर’ की मांग हुई है.

सलमा ने पूछा, ‘‘यह क्या होती है?’’

‘‘इस में किसी मियांबीवी के बच्चे को किसी अन्य औरत को अपने पेट में पालना होता है. बच्चा होने पर उस जोड़े को वह बच्चा देना होता है, इस के एवज में काफी पैसे मिल सकते हैं.’’

सलमा ने हंस कर पूछा, ‘‘रोमी, तू इस के लिए तैयार है?’’

‘‘नहीं, यही तो गम है कि मेरे पति ने मना कर दिया है.’’

‘‘और मेरे पति मान जाएंगे?’’ सलमा ने उलाहना दिया.

‘‘देखो, यह मानने न मानने की बात नहीं है, हालात की बात है. तुम्हारे 2 बच्चे हो चुके हैं, तुम्हारी आर्थिक स्थिति खराब चल रही है. तुम्हारी उम्र भी कम है. अगर तुम तैयार हो जाओ तो वारेन्यारे हो सकते हैं. सारी मुसीबत एक झटके में ठीक हो सकती है.’’

‘‘कितने पैसे मिल सकते हैं कि वारेन्यारे हो जाएंगे?’’

‘‘मामला लाखों का है, 2-3 से बात शुरू होती है, तयतोड़ करने पर अधिक तक पहुंचा जा सकता है.’’

‘‘सच? तू मजाक तो नहीं कर रही है? किसी पराए आदमी के साथ हमबिस्तर तो नहीं होना पड़ता है?’’

‘‘कतई नहीं, ऐसा भी हो सकता है कि तुम उस आदमी को देख भी न पाओ.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘वह ऐसे कि उस जोड़े के साथ एक वकील एक डाक्टर और कुछ नर्सें भी होंगी. डाक्टर तुम्हें सिर्फ एक इंजेक्शन देगा. वकील एक एग्रीमेंट लिखाएगा. उस के बाद 9 महीने तक नर्सें और डाक्टर तुम्हारी जांच करते रहेंगे, तुम्हें अच्छी से अच्छी खुराक और दवाएं भी मिला करेंगी. कुछ रुपए एडवांस भी मिलेंगे. शेष बच्चा उन को सौंपने पर मिलेंगे. एक गोद भरने का संतोष मिलेगा वह अलग से. उस की तो कीमत ही नहीं आंकी जा सकती.’’

सलमा बेसब्री से कमल के आने का इंतजार करने लगी. वह काफी दिनों से उदास भी चल रही थी पर रोमी के इस सुझाव ने उस की आंखों में चमक सी ला दी थी. उस के मन में एक बवंडर सा उठ खड़ा हुआ था. काश, 3 लाख का भी इंतजाम हो जाए तो अपना एक घर हो जाए. कमल को कोई अच्छा सा धंधा शुरू करवा दे, बेटियों के भविष्य के लिए कुछ पैसा जमा कर दे, थोड़ा सा पैसा बाप को भेज दे, क्योंकि उन्होंने भी आड़े वक्त में साथ दिया था.

सुबह राशन लाने को कह कर कमल दिनभर गायब रहा था. देर रात जब कमल आया तो नशे में धुत. उस ने देखा कि सलमा बच्चियों को सुला चुकी थी. उस ने धीरे से दरवाजा खोला, अंदर गया, कपड़े बदले और सलमा की चादर में जा पहुंचा. कमल के हाथ जब सलमा के शरीर पर रेंगने लगे तो वह सकपका कर जाग उठी, ‘‘कमल…खाना खा लिया…’’

ये भी पढ़ें- सुवर्णा गाड़ी में…

‘‘खा के आया हूं, इधर मुंह करो,’’ कमल ने उसे अपनी तरफ करवट लेने के लिए कहा.

‘‘कुछ राशन लाए हो क्या…’’ सलमा ने उस की ओर मुड़ते हुए सवाल दाग दिया.

कमल ने उस के सवाल का कोई जवाब न देते हुए उस की ओर से अपना मुंह दूसरी ओर कर लिया और चादर से मुंह को पूरी तरह से ढक लिया.

फिर सलमा को रात भर नींद नहीं आई. वह सारी रात अपने और अपनी बेटियों के भविष्य के बारे में सोचती रही.

(कहानी में आगे पढ़ें- क्या सलमा सेरोगेट मदर बन के अपनी बेटियों के भविष्य को रोशन कर पाएंगी या भविष्य के अंधकार में डूब जाएंगी…)

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...