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तानी गुस्से से कहती, ‘‘वह आप के पास नहीं आने देते. हम तो यहां जरूर आएंगे. क्या आप हमारे दादादादी नहीं हो? क्या आप के बच्चे आप की बात मानते हैं जो हम मानें?’’

दादी के पास हमारे इस सवाल का कोई उत्तर नहीं होता था.

दादी के एक तरफ मैं लेटती दूसरी तरफ तानी और बीच में वह लेटतीं. वह रोज हमें नई कहानियां सुनातीं. स्कूल की बातें सुनातीं और जब पापा छोटे थे तब की ढेर सारी बातें बतातीं. हमें बड़ा आनंद आता.

दादाजी की जेब की तलाशी में कभी चुइंगम, कभी जैली और कभी टौफी मिल जाती, क्योंकि दादाजी जानते थे कि बच्चों को जेबों की तलाशी लेनी है और उन्हें निराश नहीं होने देना है. उन के मतलब का कुछ तो मिलना चाहिए.

दादी झगड़ती हुई दादाजी से कहतीं, ‘तुम ने टौफी, चाकलेट खिलाखिला कर इन की आदतें खराब कर दी हैं. ये तानी तो सारा दिन चीज मांगती रहती है. देखते नहीं बच्चों के सारे दांत खराब हो रहे हैं.’

दादाजी चुपचाप सुनते और मुसकराते रहते.

तानी दादी की नकल करती हुई घुटनों पर हाथ रख कर उन की तरह कराहती. कभी पलंग पर चढ़ कर बिस्तर गंदा करती.

‘तानी, तू कहना नहीं मानेगी तो तेरी मैडम से शिकायत करूंगी,’ दादी झिड़कती हुई कहतीं.

‘मैडम मुझ से कुछ कहेंगी ही नहीं क्योंकि वह मुझे प्यार करती हैं,’ तानी कहती जाती और दादी को चिढ़ाती जाती. दादी उसे पकड़ लेतीं और गाल चूम कर कहती, ‘प्यार तो तुझे मैं भी बहुत करती हूं.’

सर्दियों के दिनों में दादी हमारी जेबों में बादाम, काजू, किशमिश, पिस्ता, रेवड़ी, मूंगफली कुछ भी भर देतीं. स्कूल बस में हम दोनों बहनें खुद भी खातीं और अपने दोस्तों को भी खिलातीं.

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