तकरीबन 3 महीने पहले.
‘‘बस करो राज. हम पहले ही काफी आगे बढ़ चुके हैं. मुझे बड़ा डर लगता?है,’’ रागिनी ने राज की मजबूत बांहों से छूटने की कोशिश की, पर राज कहां मानने वाला था. उस ने रागिनी को और ज्यादा भींच लिया और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.
इस बात से रागिनी पिघल गई. उस ने राज को बिस्तर पर धकेल दिया और उस पर चढ़ बैठी. फिर वह बोली, ‘‘अब देखो, मैं तुम्हारा क्या हाल करती हूं…’’
रागिनी ने राज के पूरे जिस्म पर चुंबनों की बरसात कर दी. वह उस पर अधलेटी सी थी. राज के हाथ में उस की टीशर्ट आ गई, जिसे उस ने एक झटके में उतार दिया.
काली ब्रा में रागिनी और ज्यादा सैक्सी लग रही थी. अब राज से रहा नहीं जा रहा था. उन दोनों का इस शहर में अकेलापन इस गरम माहौल में और भी आग में घी डालने का काम कर रहा था.
अब राज और रागिनी बिस्तर पर बिना कपड़ों के एक चादर में लिपटे हुए थे.
राज की गरम सांसें रागिनी की गरम सांसों से टकरा रही थीं. उन दोनों में इश्क और जवानी की खुमारी पूरी तरह चढ़ चुकी थी.
रागिनी ने खुद को पूरी तरह राज को सौंप दिया था. राज भी उस के जिस्म से खेलने को उतावला था. फिर उन दोनों ने जीभर कर प्यार किया और थोड़ी देर जब तन की ज्वाला शांत हुई थी, तब उन्हें अजीब सी खुशी मिली.
पर, आज मामला बिगड़ चुका था. राज अपने पिता पंडित दीनानाथ के सामने खड़ा था. साथ में उस की मां कांता देवी भी मौजूद थीं.
‘‘कब से चल रहा था यह सब? शर्म नहीं आई तुझे किसी की आबरू की धज्जियां उड़ाते हुए?’’ गुस्से से उबलते हुए पंडित दीनानाथ अपने गुस्से पर काबू न रख पाए और एक जोरदार चांटा राज के गाल पर जड़ दिया. राज अभी घर में घुसा ही था कि उस का पिता से सामना हो गया था.
गाल पर उभर आई पिता के हथेली की छाप को सहलाते हुए राज दर्द और बेइज्जती से कराह उठा. उस की आंखें गीली जरूर हो गई थीं, लेकिन आंखों में उभरता हुए एक विद्रोह साफ दिखाई दे रहा था.
‘‘शांति से बात करो जी. बच्चा नहीं रहा है अब. दो पैसे खुद कमाने लगा है. उस की अपनी भी इज्जत है,’’ अब तक चुप खड़ी कांता देवी जवान बेटे को तिलमिलाते देख चुप न रह सकीं.
‘‘तुम्हारे लाड़प्यार ने ही बिगाड़ दिया है इसे. अब जब यह बात बाहर उड़ने लगेगी, तब मुंह पर लगी कालिख पोंछने कोई नहीं आएगा,’’ पंडित दीनानाथ अभी भी गुस्से में उबल रहे थे.
‘‘पहले पूरी बात तो जानो. इस से भी तो पूछो कि मसला क्या है. रमाशंकर ने कहा और उसे आप ने पत्थर की लकीर मान लिया. कई बार सुनीसुनाई बातें गलत भी होती हैं,’’ कांता देवी ने अपने बेटे का पक्ष लेते हुए पति को टोका.
‘‘रमाशंकर भला अपनी ही बेटी को ले कर इतनी घिनौनी बात क्यों करेगा? सारी गलती इस की ही है,’’ पंडित दीनानाथ एक बार फिर से अपना हाथ उठाने जा रहे थे, लेकिन अचानक राज ने उन का उठता हुआ हाथ रोक लिया.
‘‘देखा, लग गई न बड़े शहर की हवा इसे भी. अपने बाप की बेइज्जती कर रहा है,’’ पंडित दीनानाथ बेइज्जती से तिलमिला उठे.
‘‘माफी चाहता हूं पापा, पर मैं चुप हूं. इस का मतलब यह नहीं है कि सारा कुसूर मेरा ही है. रमाशंकर अंकल की बात मैं झुठला नहीं रहा हूं, उन्होंने आप को जो भी कहा है, वह सब सही है. पर जो कुछ भी हुआ, उस में रागिनी की भी रजामंदी थी,’’ अब तक चुप रहे राज ने अपना मुंह खोला.
‘‘गलती तेरी कैसे हो सकती है? गलती तो हम से हुई जो तुझे पढ़ने और फिर नौकरी करने इतने बड़े शहर में अकेले भेजा. अब खुद गलती कर के कितनी बेशर्मी से रमाशंकर की बेटी पर कीचड़ उछाल रहा है. यही संस्कार दिए थे तुझे?’’
‘‘बात संस्कारों की नहीं है पापा, मैं और रागिनी आपस में प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं,’’ अपने पिता की बात का जवाब देते हुए राज ने सचाई जाहिर की.
राज की यह बात सुन कर अब तक गुस्से से कांप रहे पंडित दीनानाथ चुप हो कर पास रखी कुरसी पर बैठ गए.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होते ही पूना में एक नामी कंपनी का जौब औफर मिलने पर राज पिछले 2 सालों से अहमदाबाद का आंगन छोड़ कर पूना में ही था. उस के साथ पढ़ रही रागिनी भी अहमदाबाद से थी और पूना में जौब औफर पा कर वहीं बतौर पीजी रह रही थी.
कांता देवी और पंडित दीनानाथ पूना आतेजाते रहते थे. राज ने 2 कमरे का एक फ्लैट किराए पर ले रखा था.
एक ही शहर में परिवार से दूर अकेले रहते हुए राज शुरूशुरू में रागिनी की खबर फोन पर पूछ लिया करता था, फिर यह सिलसिला वीकेंड में एक कप कौफी से होता हुआ डिनर में बदलने लगा और फिर तो अकसर राज और रागिनी आपस में मिलते रहते थे.
राज रागिनी की हर जरूरत का ध्यान रखता था. आपस में मिलते हुए दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. इस बात की खबर तो दोनों को तब लगी, जब हफ्ते के बाकी दिनों में मिले बिना रहना मुश्किल महसूस होने लगा.
जब भी राज के मम्मीपापा पूना रहने आते, राज रागिनी से एक सीमित अंतर बना कर रखता. वैसे, उन के पूना आने की वजह राज को शादी के लिए मनाने की ही होती थी.
राज अब तक हर बार एक या दूसरा बहाना बना कर उन की बात को बड़ी ही आसानी से टाल जाता था, लेकिन आज रात को जब बिना बताए आ कर पंडित दीनानाथ ने अपना गुस्सा उस पर उतारा, तो उस ने सचाई स्वीकार कर ली.
‘‘मजाक समझ रखा है क्या शादी को?’’ पंडित दीनानाथ ने कुछ देर चुप रहने के बाद धीमे से कहा.
कांता देवी अब भी चुप ही थीं. बदलते जमाने के साथ बदलती हुई सोच, विचार और बरताव उन की समझ से परे थे, पर चुप बैठे हुए जैसे वे कुछ मंथन कर रही थीं.
‘‘मम्मीपापा, आप के ही संस्कारों की मर्यादा का असर है, जो मैं आप से खुल कर इस मसले पर बात नहीं कर सकता. शादी की पवित्रता का पूरा खयाल है, मुझे लेकिन पता नहीं उस वक्त क्यों कुछ दिमाग में उपजा ही नहीं. सबकुछ पा लेने की तमन्ना इस कदर हावी हुई कि…’’ हिचकिचाते हुए राज कुछ कहताकहता अचानक चुप हो गया.
‘‘बड़ेबुजुर्ग इसी से कहते थे कि 22 साल का होते ही खूंटे से बांध देना चाहिए लड़के को. पर आजकल की पीढ़ी कुछ समझे तब न. अब रमाशंकर को क्या जवाब दूंगा मैं? तेरी वजह से कितनी बेइज्जत कर गए वे मेरी,’’ पंडित दीनानाथ बुदबुदाए.
‘‘कह तो चुका हूं कि मैं रागिनी से शादी करने को तैयार हूं. समस्या फिर रह ही कहां जाती है?’’ राज ने अपनी बात रखी.
‘‘उस से शादी हरगिज नहीं हो सकती. एक ऐसी लड़की को अपने घर की बहू कैसे बनाऊं, जो शादी से पहले…’’ अपने बेटे की बात नकारते हुए पंडित दीनानाथ शर्म के मारे बात पूरी न कर पाए.
‘‘पापा, आप समझने की कोशिश करें. यह हम दोनों की जिंदगी का सवाल है. आजकल ये सब बातें बहुत ज्यादा माने नहीं रखतीं,’’ राज ने समझाने की कोशिश की.
‘‘लाजशर्म भी कोई चीज होती है बेटा. हमारे परिवार की भलाई इसी में है कि उस लड़की को एक बुरा सपना समझ कर भूल जा. लेदे कर बच्चा तो कोई भी डाक्टर गिरा ही देगा,’’ पंडित दीनानाथ ने कहा और अपनी जगह से खड़े हो कर अंदर के कमरे में जाने लगे.
‘‘मैं ऐसा नहीं कर सकता. रागिनी प्यार है मेरा और हमारे प्यार की पहली निशानी को संसार में लाने से कोई ताकत नहीं रोक सकती,’’ पंडित दीनानाथ की बात सुन कर राज की आंखें लाल हो गईं.
‘‘तो ठीक?है. हम पूना का रास्ता भूल जाएंगे और तू अहमदाबाद का रास्ता भूल जाना,’’ एक फैसला सुनाते हुए पंडित दीनानाथ ने राज की बात का जवाब दिया और अंदर चले गए.
‘‘मम्मी, आप पापा को समझाओ न. मेरे इरादों में खोट होता, तो यह बात आप सब लोगों तक पहुंचने से पहले ही मैं रागिनी का एबोर्शन करवा चुका होता. आप को भनक तक नहीं लगती. हम समय से चूक गए और यह बात आप को किसी और से सुनने को मिली. इस के लिए माफी चाहता हूं, पर आप लोग इस तरह से नाराज न हों,’’ राज ने कांता देवी के दोनों हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा.
कांता देवी ने एक नजर राज के चेहरे पर डाली और फिर उस की बात का कोई जवाब दिए बिना ही वे भी पंडित दीनानाथ के पीछे अंदर चली गईं.
पंडित दीनानाथ अपने बिस्तर पर लेटे हुए कुछ सोच रहे थे. कांता देवी उन के बगल में आ कर लेट गईं. खुली खिड़की से आती हुई ठंडी हवा उन के चेहरे को सहला रही थी.
‘‘अब जो हो गया, उसे स्वीकार कर लेने में ही हम सब की भलाई नजर आ रही है मुझे. बच्चा गिराने की बात तो मुझे भी अच्छी नहीं लगी. पाप तो नहीं चढ़ेगा ऐसा करने से?’’
‘‘पापपुण्य से ज्यादा चिंता मुझे इस समय अपनी और अपने परिवार की इज्जत की है. मैं इस के लिए कोई बांध छोड़ नहीं सकता. दानदक्षिणा दे कर पाप से तो मुक्ति पा लूंगा, पर उस लड़की के चरित्र का क्या भरोसा, जो शादी से पहले ही किसी पराए मर्द के साथ…’’ पत्नी की बात सुन कर पंडित दीनानाथ ने गंभीर आवाज में जवाब दिया.
‘‘चरित्र क्या केवल लड़कियों का ही होता है? तुम्हारा अपना बेटा भी तो उतना ही कुसूरवार है जितनी वह लड़की है, ताली एक हाथ से नहीं बजती है. अपने बेटे ने भी मर्यादा तो भंग की ही है न,’’ कांता देवी की आवाज में दबा हुआ गुस्सा था.
‘‘खोट अपने ही खून में है, इसी से गम खा कर चुप हूं.’’
‘‘अच्छा, तो फिर रमांकात जवाब मांगेंगे, उस का क्या करोगे?’’ कांता देवी ने फिर चिंता जताई.
‘‘छोरी ने जरूर कुछ छिपाया होगा उन से, नहीं तो अपनी छोरी की करतूत जान कर मेरी चौखट पर पैर न धरते वे. वैसे भी यह हम मर्दों का मामला है. तुम्हें बीच में पड़ने की जरूरत नहीं है. मैं सब संभाल लूंगा,’’ पंडित दीनानाथ ने इतमीनान से कहा.
‘‘एक बात कहूं. बुरा तो नहीं मानोगे?’’ अपने पति की बात सुन कर कांता देवी ने उन से पूछा.
‘‘आज तक तुम कहती ही तो आ रही हो और मैं सुनता आ रहा हूं. अब तेरी बात का बुरा मान कर इस उम्र में कहां जाऊंगा,’’ अचानक से पंडित दीनानाथ ने कांता देवी को चेहरे को गौर से देखते हुए कहा.
‘‘अपनी सगाई होने के बाद तुम ने भी एक मर्यादा मुझ से तुड़वाई थी. याद है?’’ कांता देवी ने अचानक कुछ याद करते हुए कहा.
‘‘मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया था,’’ पंडित दीनानाथ ने अपनी पत्नी की बात नकारते हुए कहा.
‘‘रिवाज के मुताबिक उन दिनों सगाई होने के बाद शादी से पहले लड़की का ससुराल में आना गलत माना जाता था, पर तुम ने बहुत जिद की थी मुझे सगाई के बाद पहली दीवाली पर घर आने की.’’
‘‘हां, की थी जिद, पर तुम कहां मानी थीं. तुम ने अपनी ससुराल में तो शादी के बाद ही कदम रखा था न,’’ पत्नी की बात सुन कर पंडित दीनानाथ जैसे पुरानी यादों में खो गए.
‘‘पर, तुम आए थे न मुझ से मिलने. 2 दिन रुके भी थे और फिर लौटने से पहले वाली रात एकांत पा कर तुम ने मेरे होंठों को छुआ था. याद आया कुछ…?’’ अपने पहले चुंबन वाली घटना का जिक्र करते हुए कांता देवी के गालों पर एक बार फिर से गुलाबी चमक छा गई.
‘‘सबकुछ साथ की बलिहारी थी.
वह उम्र ही कुछ ऐसी थी,’’ पंडित दीनानाथ बोले.
‘‘अपने बच्चे भी उम्र के उसी दौर से गुजर रहे हैं. राज और रागिनी से अनजाने में जो कुछ भी हुआ, वह भी समय की बलिहारी ही थी. हमारे समय में हम ने भी बड़ोंबुजुर्गों की बनाई हुई मर्यादा से थोड़ी सी छूटछाट तो ली थी.
‘‘आज जमाना बहुत आगे बढ़ गया है. न तो आप का बेटा बदचलन है और न ही रागिनी चरित्रहीन. अगर फिर भी आप का ऐसा ही मानना है, तो उन से पहले दोषी तो हम भी हैं न,’’ अपने सहजीवन की एक पुरानी याद ताजा करते हुए कांता देवी ने अपने बेटे की जिंदगी के गुलाबी पलों को धूमिल होने से बचाने की कोशिश की.
अपनी पत्नी की बात सुन कर पंडित दीनानाथ चुप हो गए. थोड़ी देर बाद कुछ सोच कर वे बैठ गए.
‘‘अब क्या सोच रहे हो? जाओ और राज को अपने लगाए गए आरोपों से मुक्त कर दो. बेचारा शर्मिंदगी और चिंता से आधा हुआ जा रहा है,’’ कांता देवी अपने पति के चेहरे पर उभरती फैसले की चमक महसूस करते हुए बोली.
पत्नी की बात सुन कर पंडित दीनानाथ उठे और राज के पास चल दिए.
आशीष दलाल