लेखक- सरन घई

कितनी आरजू, कितनी उमंग थी मन में.

लेकिन हकीकत में मिला क्या? सारे सपने चूरचूर हुए

और रह गई सिर्फ आह.

‘‘आप इंडिया से कनाडा कब आए?’’

‘‘यही कोई 5 साल पहले.’’

‘‘यहां क्या करते हैं?’’

‘‘फैक्टरी में लगा हूं.’’

‘‘वहां क्या करते थे?’’

‘‘बिड़लाज कंसर्न में अकाउंट्स अधिकारी था.’’

इन सज्जन से मेरी यह पहली मुलाकात है. अब आप ही बताएं, भारत का एक अकाउंट्स अधिकारी कनाडा आ कर फैक्टरी में मजदूरी कर रहा है. उसे कनाडा आने की बधाई दूं या 2-4 खरीखोटी सुनाऊं, यह फैसला मैं आप पर छोड़ता हूं.

‘‘अच्छा, तो वहां तो आप अपने विभाग के बौस होंगे?’’

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‘‘हांहां,  वहां करीब 60 लोग मेरे मातहत थे. अकाउंट विभाग का इंचार्ज था न, 22 हजार रुपए तनख्वाह थी.’’

‘‘तो घर पर नौकरचाकर भी होंगे?’’

‘‘हां, मुझे तो आफिस की तरफ से एक अर्दली भी मिला हुआ था. कार और ड्राइवर तो उस पोस्ट के साथ जुडे़ ही थे.’’

‘‘अच्छा, फिर तो बडे़ ठाट की जिंदगी गुजार रहे थे आप वहां.’’

‘‘बस, ऊपर वाले की दया थी.’’

‘‘भाभीजी क्या करती थीं वहां?’’

‘‘एक स्कूल में अध्यापिका थीं. कोई नौकरी वाली बात थोड़ी थी, अपने छिटपुट खर्चों और किटी पार्टी की किश्तें निकालने के लिए काम करती थीं, वरना उन्हें वहां किस बात की कमी थी.’’

‘‘तो भाभीजी भी आप के साथ ही कनाडा आई होंगी? वह क्या करती हैं यहां?’’

‘‘शुरू में तो एक स्टोर में कैशियर का काम करती थीं. फिर नौकरी बदल कर किसी दूसरी जगह करने लगीं. अब पता नहीं क्या करती हैं.’’

‘‘पता नहीं से मतलब?’’

‘‘हां, 2 साल पहले हमारा तलाक हो गया.’’

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