बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना होने का शौक सदियों से अशिक्षा और बेरोजगारी की तरह चारपहिया गाड़ी में सवार हो कर हमारा पीछा कर रहा है क्योंकि इस शौक को भी मालूम है कि हम इस के परमानैंट ग्राहक हैं जो कभी भी मोलभाव के लिए शौक की बलि और रिमांड नहीं लेते हैं.

वैसे तो बेगानी शादी में अब्दुल्ला बनने का शौक 24 घंटे, सातों दिन अपनी सेवाएं देता है लेकिन फुटबाल वर्ल्ड कप के दौरान तो यह शौक ऐक्स्ट्रा लार्ज पैग लगा कर किसी महफिल में बैठने का फील लाता है.

फुटबाल वर्ल्ड कप के महासमर में समर (गरमी) के दौरान बेगानी शादी में अब्दुल्लाओं की तादाद लू की तरह जानलेवा हो जाती है.

हौकी में देश का नाम ध्यानचंद ने रोशन किया था लेकिन फुटबाल में हमारा नाम एलईडी लगा कर रायचंद रोशन कर रहे हैं.

हौकी में भारत के पास केवल एक ही ध्यानचंद था लेकिन फुटबाल में रायचंदों का बंपर प्रोडक्शन होता है. फुटबाल वर्ल्ड कप के दौरान ये हर जगह भिनभिनाते हुए नजर आते हैं.

फीफा वर्ल्ड कप में इन रायचंदों का रोल एक उम्रदराज फूफा का होता है. इन्हें भले ही फीफा का पूरा नाम न पता हो लेकिन अपने फेवरेट खिलाड़ी की जर्सी का नंबर और उस की हाफपैंट का नाप इन के दिमाग के सब से महफूज कोने में सेव रहता है.

ये रायचंद हर मैच के पहले ही उस के नतीजे के बारे में अपने अनुमानों के पत्थर सभ्य समाज पर फेंकते हैं जिस से बचने के लिए आम फुटबाल प्रेमी को उदासीनता का हैलमैट पहन कर चलना पड़ता है.

इन रायचंदों ने भले ही खुद कभी फुटबाल को पैर न लगाया हो लेकिन अपनी पसंदीदा टीम और उस के खिलाडि़यों को हमेशा दिल से लगाए रहते हैं. किसी भी टीम की हारजीत के पूर्वानुमान के साथसाथ नतीजे का पूरा विश्लेषण भी इन के पास वाजिब कीमत और दिलकश पैकिंग में मुहैया होता है.

रायचंदों की बातें भले ही इन की अधकचरी जानकारी की मीठी आवाज में चुगली करती हों, लेकिन इन के खुद पर भरोसे से लगता है मानो ये महान फुटबाल खिलाड़ी पेले के साथ खेले हों.

फुटबाल वर्ल्ड कप से हमारी दूर की रिश्तेदारी है क्योंकि किलोमीटर और औकात के हिसाब से यह अभी भी हमारी पहुंच से बहुत दूर है.

दूर की रिश्तेदारी होने के चलते कई सालों से हम इस में क्वालीफाई करने के लिए जद्दोजेहद करने की ऐक्टिंग करने में कामयाब हो पा रहे हैं. फुटबाल वर्ल्ड कप में भाग लेने के बजाय हम दूर से ही ‘भाग’ लेते हैं.

फुटबाल वर्ल्ड कप में हम भले ही क्वालीफाई न कर पाते हों लेकिन वर्ल्ड कप पर पौष्टिक चटकारे लेने के लिए क्वालीफाई करने से हमें कोई नहीं रोक सकता.

फुटबाल में हमारे पिछड़ने की अहम वजह यह है कि इस में रैड कार्ड और यैलो कार्ड दिखाए जाते हैं जबकि हमारी सरकार ने फिलहाल आधारकार्ड के अलावा और कोई भी कार्ड छूने या देखने को अपराध घोषित कर रखा है.

फुटबाल में हम इसलिए भी तरक्की हजम नहीं कर पाए, क्योंकि फुटबाल में गोल करने के लिए केवल 90 मिनट का समय होता है लेकिन हम तो गोल करने के लिए शुरू से ही पंचवर्षीय योजनाओं के आदी रहे हैं.

हम ने अपने कमिटमैंट को पुरुषों और महिलाओं दोनों के वर्ल्ड कप में क्वालीफाई न कर के किसी भी तरह के लिंगभेद से मुक्त रखा है.

हम ने दुनिया को संदेश देने की कोशिश की है कि केवल पुरुष या केवल महिला वर्ल्ड कप में खेलने के लिए हम लिंगभेद की नीति नहीं अपना सकते हैं, हमें लिंगभेद केवल जनसंख्या अनुपात में ही स्वादिष्ठ लगता है ताकि हम ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ जैसे आंदोलन चला कर अपनी सामाजिक जागरूकता को उचित मंच और फंड दे सकें.

फुटबाल के बारे में हमारी सोच डकवर्थलुईस नियम की तरह बिलकुल साफ है. हम नहीं चाहते कि फुटबाल भी हौकीगति को प्राप्त हो इसलिए हम फुटबाल को लोकप्रिय बनाने के लिए कोशिश का पेचकश नहीं कसते हैं.

अगर फुटबाल का खेल भी हौकी की तरह लोकप्रियता के हत्थे चढ़ गया तो फिर हौकी और फुटबाल दोनों अच्छा हौलिडे पैकेज ले कर गड्ढे में लंबी छुट्टियां मनाएंगे और दोनों को गड्ढे से निकालने के लिए खेल संघों के अध्यक्षों और दूसरे पदाधिकारियों को खेल बजट बढ़ा कर खिलाडि़यों के साथ विदेशी दौरों पर कहांकहां शौपिंग कर बजट का खात्मा करें, इस की चिंता करनी पड़ेगी जिस से उन के डिप्रैशन में चले जाने का खतरा है.

खिलाड़ी तो आतेजाते रहते हैं, लेकिन खेल संघों के अध्यक्ष और पदाधिकारी ही खेल की असली निधि हैं, इसलिए भारत जैसा विकासशील देश उन को डिप्रैशन का मेहमान बनने को मजबूर नहीं कर सकता?है.

हमारे राष्ट्रीय चिंतन बजट का अच्छाखासा हिस्सा हौकी की फिक्र के लिए आवंटित होता है. अगर हम ने फुटबाल की बुरी लत भी लगा ली तो पहले से ही घाटे में चल रहा हमारा राष्ट्रीय चिंतन किसानों की तरह खुदकुशी कर लेगा और चिंतन की खेती करने के बजाय हमें चिंतन विदेशों से मंगवाना पड़ेगा, इसीलिए अभी तक फुटबाल को हम ने राष्ट्रीय चिंतन के वाईफाई के नैटवर्क में आने से बैन कर रखा है.

यही दूर की सोच हमारे खेल चिंतन की बत्ती को हमेशा सुलगाए रखती है जिस में अच्छे नतीजों के भस्म होने की पूरी उम्मीदों के साथ चिंतन की निरंतरता बनी रहती है.

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