यह हमारा साइकोलौजिकल डाटा था. सारे का सारा उन्होंने चुरा लिया. सिर्फ चुराया ही नहीं, उस का राजनीतिक इस्तेमाल भी किया. वो भारत आएं, तो हम उन से पूछेंगे कि क्या मिला उन्हें हमारा डाटा उड़ा कर?

इस डाटा में यों समझिए कि हमारी जिंदगी की पूरी कहानी दर्ज थी. आप को भी इस डाटाचोरी के दर्द का एहसास हो सके, इस के लिए शब्द दर शब्द यहां पेश हैं (इसे छिपाने का अब कोई फायदा नहीं, पहले से ही उड़ाया जा चुका है) :

लड़की ने पूछा, ‘‘डू यू लव मी?’’

हम ने कहा, ‘‘औफ्कोर्स नौट...’’

उधर से जवाब आया, ‘‘चल झूठ...ठे.’’

यह डाटा उड़ा लिया गया, इस का पता हमें चुनावों में चला.

अगले दिन उस ने नया अकाउंट बना कर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी. हम ने रिक्वैस्ट को मनाने से इनकार कर दिया. उस के पहले वाले अकाउंट पर लिखा, ‘‘आलिया का चेहरा लगाने से कोई फायदा नहीं. हम ने पहचान लिया है. कहीं और मुंह मारो.’’

जवाब आया, ‘‘चोट...टे...कमीने.’’

अहा, हम प्रफुल्लित हुए कि हम ने चोरी पकड़ ली. हम ने पहचान लिया था कि उधर कौन था. बाद में पता चला कि चोरी तो हमारे डाटा की हुई थी. महल्ले के चुनावों के वक्त हमारे पास सीधा संदेश पहुंचाया गया कि वोट गज्जू भैया को ही देना है वरना अपना डाटा कहीं दिखाने लायक नहीं रहोगे. हम ने डरना कहां सीखा था, लेकिन मुंह पर जवाब नहीं दिया.

वोट जिसे देना था, उसे ही दिया और उस के अकाउंट पर आ कर लिख दिया, ‘‘देखना, इस दफा टुल्लूजी जीतेंगे.’’

उस ने पूछा, ‘‘काहे?’’

हम ने लिखा, ‘‘हम ने उन्हें वोट जो दिया है.’’

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