सरकारी दफ्तर में बड़े बाबू के चेहरे से लग रहा था कि वे बहुत ज्यादा टैंशन में हैं. दफ्तर के लोगों ने उन्हें हमेशा ‘टन्न’ या ‘टुन्न’ ही देखा था, ‘टैंस’ कभी नहीं. दफ्तर के बाकी लोगों में खुसुरफुसुर होने लगी.

एक दूसरे ‘टुन्न’ बाबू ने बड़े बाबू के टैंशन की वजह जानने की कोशिश की तो बड़े बाबू उन पर ऐसे फट पड़े जैसे कोई सरकारी पाइप फटता है. अपनी मेज पर पड़ी पैंडिंग फाइल और कागजों के बीच से नए साल का कलैंडर निकाल कर दिखाते हुए वे बोले, ‘‘क्या तुम में से किसी ने नए साल का कलैंडर देखा है? कितनी कम छुट्टियां हैं इस साल...’’

एक छोटे बाबू ने उन के हाथ से कलैंडर लिया और पन्ने पलटा कर शनिवार और रविवार की छुट्टियां गिनने लगे. पूरी गिनती होने के वे बाद बोले, ‘‘ठीक तो है बड़े बाबू. शनिवार और रविवार मिला कर पूरे 104 दिन की छुट्टियां हैं.’’

बड़े बाबू का गुस्सा अब पूरे दफ्तर में वैसे ही बहने लगा जैसे सरकारी पाइप फटने के बाद उस का पानी सरकारी सड़कों पर बहने लगता है. उन्होंने कलैंडर के पहले पन्ने की 26 तारीख पर जोर से बारबार उंगली रखते हुए कहा, ‘‘पहले ही महीने में एक छुट्टी मारी गई है. 26 जनवरी शनिवार को है.’’

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अब तक दफ्तर के सारे छोटेबड़े मुलाजिम बड़े बाबू के कलैंडर के इर्दगिर्द जमा हो चुके थे. साल की छुट्टियों का हिसाबकिताब अब दफ्तर का सब से जरूरी काम था.

कलैंडर के अगले पन्ने पलटते हुए बड़े बाबू ने बोलना जारी रखा, ‘‘मार्च में रंग खेलने वाली होली गुरुवार को है. अगर 4 छुट्टियां एकसाथ लेनी होंगी तो एक सीएल बरबाद होगी न.’’

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