‘‘ढेर सारे पकवान बनाए हैं मैं ने, बहुतकुछ बाजार से भी मंगवा रखा है. तुम्हारा दोस्त निराश नहीं होगा. विकेश तुम्हारा दोस्त है, तो मेरे लिए भी कुछ है न.’’

‘‘कुछ…’’ बृजेश के कान खड़े हो गए, ‘‘तुम उसे पहले से जानती हो क्या?’’

‘‘अरे नहीं जी, मैं तो उसे पहली बार देखूंगी. तुम बेकार की बकवास सोचने लगे,’’ सरला हंसते हुए बृजेश को रसोईघर में ले गई. वहां दहीबड़े, समोसे, रसगुल्ले और गुलाबजामुन से ले कर छोलेभटूरे तक का इंतजाम था. कई तरह की नमकीन, पापड़ और मिठाइयां भी थीं. आखिर बड़े लोगों की किट्टी पार्टी जो ठहरी. सरला घर बैठे ही चिटफंड वगैरह चला कर अच्छी कमाई भी कर लेती है, फिर एक दिन सब को बढि़या खिलानेपिलाने में हर्ज किस बात का था.

अब यह इत्तिफाक की बात थी कि बृजेश का दोस्त विकेश शाम को 4 बजे आने वाला था. किट्टी पार्टी तो 6 बजे से थी. तब तक तो वह आराम से उसे खिलापिला कर विदा कर सकती थी.

तय समय पर बृजेश अपने दोस्त विकेश के साथ आया, तो सरला ने उस का भरपूर स्वागत किया. बृजेश फ्रैश होने के लिए बाथरूम चला गया.

नमस्ते करने के बाद सरला सीधे अपने मतलब पर आ गई, ‘‘अरे भाई साहब, आप इतनी बड़ी एयरलाइंस कंपनी में पायलट हैं. आप को तो अच्छी तनख्वाह मिलती होगी. तो आप को अपनी आमदनी का एक हिस्सा बचत के लिए भी इंवैस्ट करना चाहिए.

‘‘देखिए, मैं एक इंश्योरैंस सर्विस की एजेंट हूं और चाहती हूं कि आप अपनी बचत को मेरी इस कंपनी में लगाएं.’’

‘‘अरे भाभीजी, ऐसा कुछ नहीं है…’’ विकेश हंसते हुए बोला, ‘‘मेरी कंपनी दिवालिया हो चुकी है और मुझे 6 महीने से तनख्वाह भी नहीं मिली है. इस से आप मेरी हालत का अंदाजा लगा सकती हैं. मैं तो आप के शहर में एक इंटरव्यू के सिलसिले में आया हूं. बृजेश मेरा बचपन का दोस्त है. उस ने इतना कहा, इसलिए मैं मिलने चला आया.’’

विकेश की इस बात से सरला के भाव एकदम से बदल गए थे. वह सपाट चेहरा लिए वहां से उठी और अपने कमरे में चली गई.

उधर ड्राइंगरूम में दोनों दोस्त दुनियाजहान की बातें करते रहे.

अचानक बृजेश को कुछ खयाल आया. वह उठ कर सरला के पास आ कर बोला, ‘‘अरे, मेरा दोस्त बैठा है. कुछ चायपानी तो दो.’’

सरला उठी. चाय बना कर ट्रे में कुछ बिसकुट के साथ ड्राइंगरूम में रख आई.

चाय पीते हुए विकेश बोला, ‘‘चाय में चीनी कम है. तुम्हें ब्लड शुगर तो नहीं, जो चीनी कम लेते हो?’’

बृजेश ने चाय का घूंट भरा, तो उसे महसूस हुआ कि चाय फीकी लग रही है. वह हंसते हुए बोला, ‘‘दरअसल, सरला तुम्हें बढि़या मिठाई खिलाना चाहती है, इसलिए उस ने चाय में कम चीनी डाली है. रुको, मैं उसे चीनी लाने को कहता हूं.’’

‘‘अरे छोड़ो यार, चीनीवीनी…’’ विकेश हंसते हुए बाला, ‘‘मैं तो बस ऐसे ही मजाक कर रहा था.’’

चाय के दौर में पहले एक घंटा हुआ, फिर दूसरा घंटा भी बीत रहा था. मगर सरला का कहीं पता नहीं था. बृजेश इस बीच 1-2 बार टहल कर देख चुका था कि सरला शायद अब कुछ खाने को लाएगी. मगर वह जब भी बैडरूम में गया, वह अपने मोबाइल फोन में मसरूफ थी.

‘‘अब मैं चलूंगा यार…’’ विकेश अपनी घड़ी देखते हुए बोला, ‘‘2 घंटे कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला.’’

बृजेश विकेश से हाथ मिला कर उसे बाहर तक छोड़ने आया. जब वह अंदर आया तो सरला से पूछ बैठा, ‘‘अरे, इतने सारे पकवान बनाए थे तुम ने, कुछ ला कर दिया क्यों नहीं? क्या सोचता होगा वह. चाय में चीनी भी कम थी…’’ बृजेश नाराजगी जताते हुए बोला, ‘‘वह मेरा बचपन का दोस्त है. उस के घर में जब भी मैं जाता था, तो उस की मां मुझे बिना खाना खिलाए वापस नहीं आने देती थीं.’’

‘‘तो क्या हुआ…’’ सरला मुंह बना कर बोली, ‘‘बचपन की बात और होती है.’’

‘‘क्या हुआ…’’ बृजेश गुस्से में बोला, ‘‘अरे, वह मेरे बारे में क्या सोचता होगा.’’

‘‘सोचेगा क्या…’’ सरला बोली, ‘‘मैं समझती थी कि इतनी बढि़या नौकरी करने वाला शख्स है, तो मेरी कंपनी की कोई पौलिसी वगैरह लेगा. लेकिन उस को तो खुद खाने के लाले पड़े हैं. ऐसे आदमी को क्या खिलानापिलाना?’’

बृजेश यह सुन एकदम से सन्न रह गया. अपनी आवाज में कठोरता लाते हुए वह बोला, ‘‘ओहो, तो तुम ऐसा सोचती हो, मगर मैं तो कंगाल नहीं हुआ था,

जो तुम ने जानबूझ कर उसे कुछ खिलायापिलाया नहीं. चाय में चीनी कम डाल कर बेइज्जत करने की कोशिश भी की. क्या सोच रहा होगा वह?’’

‘‘अब जो सोचे…’’ सरला मुंह बना कर उठते हुए बोली, ‘‘मुझे रसोईघर में बहुत काम है. मेरी सहेलियां आती ही होंगी.’’

‘‘वह तो ठीक है…’’ बृजेश बोला, ‘‘अगर मेरी नौकरी चली गई होती और कोई मेरे साथ ऐसा बरताव करता, तो तुम्हें कैसा लगता?’’

सरला बोली, ‘‘फिर की फिर देखेंगे. जो आज की सोचता है, जीत उसी की होती है. मैं फालतू लोगों पर समय और पैसा नहीं खर्च कर सकती. यह सामान तो उन सहेलियों के लिए है, जो मेरी चिटफंड और इंश्योरैंस पौलिसी में पैसा देती हैं. मेरे लिए हर बार नया आसामी लाती हैं.’’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...