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लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

दिनेश की आटा मिल भी बंद हो गई. वह भारी मन से साइकिल खड़ी कर के अपने कमरे में गया तो फुलवा उसे देख कर ही समझ गई कि दिनेश कुछ परेशान है.

‘‘क्या बात है जी... आज मुंह लटकाए आ रहे हो... किसी से लडाईझगड़ा हो गया क्या?‘‘ फुलवा न पूछा.

‘‘नहीं रे फुलवा... सुना है, पूरी दुनिया में कोई भयानक बीमारी फैल रही है. लोग मर रहे हैं... इसलिए सरकार ने सारे उद्योग, सभी  कामकाज को पूरी तरह से बंद करने का निर्णय लिया है. और ये सब तब तक बंद रहेगा, जब तक यह बीमारी पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाती," दुखी मन से दिनेश ने कहा.

‘‘सबकुछ बंद... पर, ऐसा कैसे हो जाएगा... और काम नहीं होगा तो हमें पैसा कहां से मिलेगा... और... और हम खाएंगे क्या... हमें तो लगता है कि कोई मजाक किया है तुम से,‘‘ फुलवा ने चौंक कर कहा.

पर, ये तो कोई मजाक नहीं था... धीरेधीरे सबकुछ बंद होने की खबर फुलवा को भी पता चल गई और उस को भी मानना पड़ गया कि हां, सबकुछ वास्तव में ही बंद हो गया है.

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महल्ले में सारे मजदूर अपनेअपने घरों में ही बैठे थे और उस बीमारी को कोस रहे थे, जिस ने आ कर उन सब की जिंदगी पर ही एक सवालिया निशान लगा दिया था.

सभी के साथ ही दिनेश का भी दम घुटता था घर में... खाने का सामान और राशन भी धीरेधीरे खत्म हो रहा था. जब ज्यादा परेशानी आई तो दिनेश को अपना गांव याद आया.

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