लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
अगले ही दिन से फुलवा ने काम करना शुरू कर दिया. वह दिनेश के काम पर जाने के बाद घर से निकली और पूरे महल्ले में अपने काम का नमूना ले कर सब को दिखा आई और साथ में यह बताना भी नहीं भूली कि जिस किसी को कढ़ाई आदि करवानी हो, तो इतने पैसे के साथ उस से बात करें.
खूबसूरती बहुत से कठिन कामों को भी आसान बना देती है. फुलवा खूबसूरत होने के साथसाथ व्यवहार में भी अच्छी थी. जल्द ही फुलवा के काम को लोगों ने पसंद किया. काम के और्डर भी आने लगे और आमदनी भी अच्छी होने लगी.
थोड़ीबहुत दिनेश की कमाई से बचा कर और बाकी अपनी कमाई से अब वे दोनों इस हालत में आ गए थे कि एक नई साइकिल खरीद सकें.
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और वह दिन भी आ गया, जब दिनेश और फुलवा ने पैसे गिने और साइकिल लेने के लिए मार्केट की ओर चल दिए.
आज फुलवा के चेहरे पर खुशी का रंग देखते ही बनता था. उस की गुलाबी साड़ी उस के चेहरे की आभा के आगे फीकी लग रही थी.
‘‘तभी तो राह आतेजाते लोग फुलवा को ही देख रहे हैं,” मन ही मन बुदबुदा रहा था दिनेश.
अपने मनपसंद रंग वाली साइकिल खरीद कर दिनेश बहुत ही खुश हो रहा था. उस ने साइकिल में घंटी भी लगवाई.
‘‘शहरों में घंटी सुनता ही कौन है… पर, हम जब मौज में होंगे तो इसी को बजा लिया करेंगे…
“और हां… वो गद्दी जरा मोटे फोम वाली लगाना भैया, ताकि कोई परेशानी न हो हमें… और एक कैरियर भी लगा देना पीछे… कभीकभी कुछ सामान ही रखना हो तो रख लो और आराम से चलते बनो.”
दिनेश कभी फुलवा को निहार रहा था, तो कभी अपनी नईनवेली साइकिल को.
पहले सोचा कि फुलवा को आगे वाले डंडे पर बिठा कर कोई गाना गाते हुए चल दें… लेकिन, फिर कुछ अच्छा नहीं लगा, तो पीछे कैरियर पर ही बिठा लिए और रास्ते भर गाना गाते और घंटी बजाते घर चला आया.
महल्ले में सब ही दिनेश को देखे जा रहे थे और दिनेश अपनी नई साइकिल के नशे में ही अकड़ा जा रहा था.
उस का आंगन कई किराएदारों का साझा आंगन था और बहुत गुंजाइश इस बात की भी थी कि निकलतेबैठते कोई जलन के कारण दिनेश की नई साइकिल को खरोंच ही मार दे.
हालांकि फुलवा ने रास्ते में ही बुरी नजर से बचने के लिए काला धागा खरीद कर बांध दिया था साइकिल के हैंडल पर, फिर भी सुरक्षा अपनाने में क्या जाता है, इसलिए दिनेश ने अपनी साइकिल को सब से अलग एक कमरे के पिछवाड़े वाले हिस्से में खड़ा करना शुरू कर दिया.
दिनेश जब साइकिल खड़ी कर के आ रहा था तो सामने फुलवा खड़ी मुसकरा रही थी. दिनेश के मन में भी अपनी पत्नी के लिए प्यार उमड़ आया और मस्ती भरी निगाहों से उस से बोला, ‘‘अरे फुलवा, आज तो नई साइकिल आई है… तो आज कुछ खट्टामीठा होना चाहिए.‘‘
‘‘खट्टामीठा… क्या मतलब है तुम्हारा, मैं कुछ समझी नहीं.‘‘
‘‘कुछ ऐसा काम करो, जो जबान का स्वाद खट्टा कर के भी मन को भा जाए और मीठा का मतलब जब तुम मुझे देखो और मैं तुम्हे देखूं और हम लोगों का मुंह अपनेआप मीठा हो जाए,‘‘ कह कर दिनेश ने फुलवा की तरफ आंख मारी, ‘‘धत्त… बेशर्म कहीं के.‘‘ और इतना कह कर फुलवा पीछे की ओर मुड़ी तो दिनेश ने अपने दोनों हाथों से उस के सीने को भींच लिया और बेतहाशा प्यार करने लगा.
दिनेश के हाथ फुलवा की गरदन पर फिसल रहे थे. उस की इन हरकतों से फुलवा भी जोश में आ गई और कमरे में 2 जिस्मों के दहकने की आवाजें साफ सुनाई देने लगीं. कुछ ही देर बाद कमरे का बढ़ा हुआ ताप धीरेधीरे ठंडा हो गया.
सुबह हुई तो नई साइकिल उठा कर दिनेश मिल की तरफ चला गया. जाते समय बड़ी शान से फुलवा से टाटा बायबाय करते हुए गया.
साइकिल के आ जाने से अब सबकुछ सही था. न ही दिनेश को किसी की डांट सुननी और न ही किसी सवारी का इंतजार करना पड़ता. और इधर फुलवा को भी इधरउधर से काम मिल जाता, जिस से कामकाज की गाड़ी अब पटरी पर चल रही थी.
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अपने काम पर जाने से पहले अपनी साइकिल को रगड़ कर पोंछना दिनेश के रोज के कामों में शामिल हो गया था और उस के इस तरह ध्यान रखने से मानो साइकिल भी खुश हो कर उसे धन्यवाद कहती थी.
एक तो महल्ले में फुलवा की जवानी और उस के भड़काऊ कपड़ों की चर्चा पहले से ही थी, फिर उस के काम के हुनर को देख कर महल्ले के लोग उस का लोहा मान गए थे और अब फुलवा ने अपने पति को जो नई साइकिल दिलवा दी. अब महल्ले में दिनेश की साइकिल चर्चा और जलन का केंद्र बनी हुई थी.
रविवार वाले दिन उसी के महल्ले का एक लड़का मनोज दिनेश से बोला, ‘‘अरे भाई दिनेश, आज तो तुम्हें काम पर जाना नहीं है. मुझे थोड़ा तुम्हारी साइकिल की जरूरत है… अगर मिल जाती तो बड़ी मेहरबानी होती.”
साइकिल मांगने की बात पर दिनेश का मूड थोड़ा उखड़ गया. उस की आवाज में तल्खी सी आ गई, ‘‘क्यों…? मेरी साइकिल की भला तुम्हें क्या जरूरत आ पड़ी.”
‘‘गोदाम तक जा कर सिलेंडर लाना है. बस यों गया और यों आया,‘‘ मनोज ने विनम्रता से कहा.
‘‘नहीं भाई… मुझे भी आज जरा फुलवा को ले कर अस्पताल तक जाना है, इसलिए साइकिल तो मैं नहीं दे पाऊंगा.‘‘
दिनेश के इस तरह मना कर देने से मनोज को काफी निराशा हुई और वह मुंह लटका कर वहां से चला गया.
‘‘हुंह… साइकिल न हो गई मानो कोई ठेला हो गया, जिस पर सिलेंडर लाद देंगे… अरे, इतना भारी सिलेंडर मेरी साइकिल के कैरियर को न पिचका देगा भला… महल्ले में और लोग भी तो हैं उन की साइकिल मांगो जा कर,‘‘ मन ही मन बुदबुदा रहा था दिनेश.
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बस कुछ इसी तरह से कट रही थी फुलवा और दिनेश की जिंदगी. अपनी ही दुनिया में मस्त. जिंदगी के हर पल का मजा उठाते हुए, पर इन की खुशियों को एक झटका सा तब लगा, जब एक दिन अचानक देश के प्रधानमंत्री ने टीवी पर आ कर पूरे देश में लौकडाउन का ऐलान कर दिया. लौकडाउन अर्थात सब कामधाम बंद, सारी दुकानें, साप्ताहिक बाजार सब बंद, सारे कारखाने बंद…