कनाट प्लेस पर लगे एक छोटे से होर्डिंग ने मेरा ध्यान खींचा, ‘नवीनतम कोर्स: 2 महीने में बाबा बनिए’. जोशजोश में मैं होर्डिंग पर दिए पते पर जा पहुंचा. रिसैप्शन पर भगवा कपड़े पहने, माथे पर जुल्फें बिखराए नेल पौलिश लगाती एक लड़की बैठी थी. मुझे देखते ही उस लड़की ने होंठों को बड़ी अदा से गोल करते हुए हिंग्लिश यानी हिंदीइंगलिश मिक्स में बाबा के कोर्सों की जानकारी देनी शुरू कर दी, ‘‘सर, द फर्स्ट कोर्स इज बाबा, ओनली बाबा यू नो, सैकंड इज श्री 1008 बाबा श्री और तीसरा श्रीश्री 25008 बाबा श्रीश्री है…

‘‘पहले कोर्स की फीस ओनली 25 थाउजंड बक्स है. सर, सैकंड कोर्स की 50 थाउजंड और तीसरे कोर्स की वन लाख रुपए है.’’ उस के सर…सर कहने से मेरा मन खुश तो बहुत हुआ, मगर मैं ने अपने मध्यमवर्गीय मुंह को बिसुरते हुए कहा, ‘‘बहुत ज्यादा फीस है.’’

‘गुड मौर्निंग मुंबई’ वाली विद्या बालन की तरह अपनी उंगली से लटों को गोल करते हुए उस लड़की ने समझाया, ‘‘आप तो बस बाबा वाला कोर्स कर लीजिए. आप के भक्त ही आने वाले समय में आप के नाम के आगे गिनती के साथ श्री वगैरह लगाते जाएंगे.’’ मेरी गुजारिश पर और मुझ में एक भावी छात्र को देखते हुए उस रिसैप्शनिस्ट बाला ने मुझे प्रिंसिपल बाबा से मिलवा दिया. मैं ने प्रिंसिपल बाबा के मठाफिस में घुसते ही उन के पैर छू कर आशीर्वाद लिया और अपनी जिज्ञासा शांत करने को कहा. प्रिंसिपल बाबा मुझे समझाते हुए बोले, ‘‘वक्त बदलते देर नहीं लगती बच्चा. कमल बाबा का नाम तो तुम ने सुना ही होगा? वह अपना ही शिष्य है. उस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, तुम्हारी तरह वह भी पूछतेपूछते हमारे पास आया था.

‘‘जानते हो, कल तक उस छोटे से शहर की एक छोटी सी कालोनी में रहने वाले कमल का नाम जिसे वहां शायद ही कोई जानता होगा, अचानक हर किसी की जबान पर आ गया, सिर्फ हमारे कोर्स की वजह से.

‘‘12वीं जमात पास कमल के पास सिर्फ एक ही गुण था कि वह बातें करते नहीं थकता था, सब्जैक्ट चाहे जो हो. बातूनी कमल के बारे में बताया जाता है कि वह रौंग नंबर फोन आने या लग जाने पर भी 25-30 मिनट बात कर के ही दम लेता था.

‘‘हम कमल को देखते ही समझ गए थे कि इस में बाबा बनने के सारे गुण हैं. हम ने कमल को ट्रेंड किया और एक चैनल पर सुबह प्रवचन देने का कांट्रैक्ट भी दिलाया. दूरसंचार माध्यम की महिमा के चलते देखते ही देखते गली का कमल सारे देश का कमल बाबा बन गया. ‘‘अब उस चैनल पर हर रोज सुबह कमल बाबा अपने भक्तों को संबोधित करते हैं, उन की समस्याओं का निदान करते हैं. लोगों की समस्याएं तो लोग जानें, मगर बेकार कमल को अब अच्छा काम मिल गया है और चैनल वाले को भी प्रवचन के समय पर ढेर सारे इश्तिहार मिलने लगे हैं. इस तरह बाबा और चैनल वाला दोनों माल बटोर रहे हैं.’’

‘‘सर…’’ मैं ने कुछ पूछना चाहा, मगर प्रिंसिपल बाबा अपने पुराने शिष्य कमल बाबा को छोड़ने को तैयार ही नहीं थे.

‘‘अपनी 25-30 साला जिंदगी में कमल ने परचून की दुकान चलाने से मकानों की दलाली तक सबकुछ कर के देख लिया था, मगर कहीं कामयाबी हाथ न आई और अब देखो, लाखों रुपए रोज उस के अकाउंट में जमा हो रहे हैं, सिर्फ हमारे कोर्स की बदौलत.’’ कमल बाबा से उन्हें मूल मुद्दे पर लौटाते हुए मैं ने हैरानी से पूछा, ‘‘आप प्रवचन देना भी सिखाते हैं सर?’’

‘‘सच बोले बच्चा, प्रवचन देना मतलब और कुछ नहीं, बस बड़बड़ करना है. किस्सेकहानियां मजेदार ढंग से सुनाना और बीचबीच में भजन गाना, यही तो प्रवचन है,’’ प्रिंसिपल बाबा अपने धंधे के राज मुझ पर खोले जा रहे थे.

‘‘लेकिन मुझे भजन गाना नहीं आता. मेरी आवाज कुछ ज्यादा ही मोटी है सर,’’ मैं ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘नो प्रौब्लम. एक भजन मंडली तुम्हारे साथ बैठा करेगी. तुम बस भजन शुरू करना और सुर वगैरह वे लोग संभाल लेंगे,’’ प्रिंसिपल बाबा ने अपना तोड़ बताया.

‘‘बाबा बन जाने के बाद लोग अपनी समस्याएं भी तो मेरे पास लाएंगे, तब मैं क्या करूंगा?’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘लोग अपनी समस्याएं ले कर तुम्हारे पास आएंगे, तो जो तुम्हें अच्छा लगे, वह बकते जाना. मेरे कहने का मतलब है कि बताते जाना. बस, ध्यान रखना बातचीत रुके नहीं,’’ प्रिंसिपल बाबा ने समझाते हुए कहा.

‘‘जो अच्छा लगे, वह बताते जाना? मतलब…?’’ मैं ने अपनी जिज्ञासा जाहिर की.

‘‘मसलन, कोई तुम्हें कहे कि उस की बीमारी ठीक नहीं हो रही, तो उस से पूछो कि डाक्टर की दवा किस दिशा में मुंह कर के लेते हो? अब कोई दिशा देख के तो दवा लेता नहीं. बस, तुम उस से कहना कि यही तो गलती करते हो. पूर्व दिशा में मुंह कर के दवा लिया करो और रोज गाय को एक ताजा रोटी खिलाया करो, तुम्हारी तबीयत ठीक हो जाएगी.’’ ‘‘लेकिन क्या पूर्व दिशा में मुंह कर के दवा लेने से वह ठीक हो जाएगा? और अगर वह ठीक न हुआ, तो सर?’’ मैं ने फिर पूछा.

‘‘बौड़म हो यार तुम तो. अरे, डाक्टर की दवा खाएगा, तो ठीक क्यों न होगा. अगर वह न भी हुआ, तो तुम उस के किए में फिर कोई खोट निकालना. मसलन, दवा पीते ही एकदम पश्चिम या उत्तर दिशा की ओर तो नहीं घूमे थे? या गाय को जो रोटी दी थी, उस का आटा ज्यादा पुराना तो नहीं था… वगैरह.

‘‘खैर, छोड़ो. हम तुम्हें इतना ट्रेंड कर देंगे कि अपने दरबार में तुम ऐसी सिचुऐशन को खुद ही संभाल लोगे.’’

‘‘सर, मैं काफीकुछ तो समझ गया हूं, पर…’’ मैं ने कहा.

‘‘अब पर वगैरह छोड़ो और यह, सरसर कहना भी छोड़ो और ‘बेटा’, ‘बच्चा’, ‘वत्स’ कहने की आदत डाल लो,’’ प्रिंसिपल बाबा ने समझाया और अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘‘तुम्हारे लिए एक मेकअपमैन को बुला लेते हैं और तुम्हें कुछ इंगलिश भी सिखा देते हैं. तुम्हारी दाढ़ी और बाल भी अच्छेखासे बढ़ सकते हैं, सो तुम्हें अब बाबा बनने से कोई नहीं रोक सकता.’’

‘‘सर, आप मेरे दरबार के बारे में कुछ कह रहे थे? कैसा होगा मेरा दरबार सर?’’ मैं ने लडि़याते हुए पूछा.

‘‘चल, तुझे तेरा दरबार दिखाता हूं. सुन, तेरे दरबार में आने के लिए हजार रुपए का टिकट लेना पड़ता है और आगे की लाइन में बैठने के लिए 2 हजार रुपए का. तू बाबा बन गया है. सो, बाबा से सवाल पूछने के 5 सौ रुपए अलग से लगते हैं. अरे भाई, अलग से इसलिए कि सवाल पूछने वाला भी तो टैलीविजन पर दिखता है.’’

‘‘वैसे, टैलीविजन पर बाबा को यानी तुझे देख लेने भर से, तेरी बातें सुन लेने भर से मनोकामना पूरी हो सकती है, मगर उस के लिए महज 250 रुपए बाबा के यानी तेरे बैंक अकाउंट में जमा करवाने पड़ते हैं,’’ प्रिंसिपल बाबा मुझे ख्वाब दिखाए जा रहे थे. ‘‘अगर कोई इतना खर्च भी न करना चाहे तो एक और स्कीम है बाबा के पास, यानी तुम्हारे पास. दरबार के बाहर लगे स्टौल से बाबा का फोटो और तावीज खरीद ले, जो महज 101 रुपए का है. अपने ममेरेचचेरे भाइयों को फोटो और तावीज बेचने के कामधंधे पर लगा देना. कोई सालावाला हो, तो तुम्हारे भजनोंप्रवचनों की किताबें छाप कर और कैसेट सीडी बना कर बेचने के काम पर लगा दो समझे?’’ प्रिंसिपल बाबा मुझे भविष्य में लगने वाले मेरे दरबार का सीन दिखा रहे थे.

वाह, क्या विराट मेला लगा है. राजेंद्र बाबा के भक्त, बाबा की एक झलक पाने को आकुलव्याकुल हैं. बालकनी, स्टौल और आगे की लाइन के सभी टिकट बिक चुके हैं. जो लोग महंगे टिकट नहीं ले पाए हैं, वे बाहर मात्र 101 रुपए में बाबा के तावीज खरीद कर अपनी किस्मत संवार रहे हैं. अब बाबा यानी खुद मैं मंच पर अपनी जगह ले चुका हूं और बाबा के चेले यानी मेरे चेले उन लोगों के हाथ में माइक दे रहे हैं, जिन्होंने टैलीजिवन पर दिखने के लिए 5 सौ रुपए दिए हैं. एक हजार का टिकट व 5 सौ रुपए अलग से चुकाने वाला पहला भक्त बोलता है, ‘‘बाबा, पिछले महीने से मेरा पूरा परिवार टैलीविजन पर आप का कार्यक्रम देख रहा है और कार्यक्रम देख कर ही मुझे नौकरी में प्रमोशन मिल गया है. बस, अब महल्ले की मुन्नी से शादी हो जाए बाबा. आप की कृपा चाहिए.’’ विराट मंच के विराट सिंहासन पर विराजमान बाबा यानी मैं अपना धीरगंभीर चेहरा भक्त की ओर घुमाते हुए उसे अपने हाथ उठा कर आशीष देते हुए कहता हूं, ‘‘मुन्नी से शादी करने के लिए तुझे रोज सुबह एक आलू बड़ा खुद खाना है और कम से कम 4 आलू बड़े अपने यारदोस्तों या पड़ोसियों को खिलाने हैं. आलू बड़ा कहीं से भी खरीद सकते हैं. वैसे, गुल्लू हलवाई की दुकान देखी है? उसी से खरीदो, तो ज्यादा कृपा आती है.’’

अपने भक्त का भला करते हुए मैं अपने ममेरे साले गुल्लू के रोजगार की जुगत जमाने में लगा हूं, तभी श्रीमतीजी आवाज देती हैं, ‘‘अजी सुनते हो, अब उठो भी. सुबह के 7 बजने वाले हैं. आज दफ्तर नहीं जाना क्या?’’ राजेंद्र बाबा यानी हम अपने सपने से बाहर आ कर वाशबेसिन की ओर चल देते हैं. हम मन ही मन हाथ जोड़ते हैं कि यह सब सपना था. भला हो हमारे देश का कि इस के भोलेभाले लोग एक और शातिर बाबा के चंगुल में आने से बच गए.

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