Hindi Social Story: मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले का एक गांव था. आजादी के 75 सालों के बाद भी इस गांव के दलितों के साथ जानवरों से भी बदतर बरताव किया जा रहा था. ऊंचा तबका दलित मर्दों से बंधुआ मजदूर की तरह काम कराता था और दलित औरतों का शारीरिक शोषण किया जाता था.

दलित औरतें ऊंचे तबके के मर्दों के लिए भोगविलास की चीज थीं. उन्हें अपने मालिक से परदा करने की इजाजत नहीं थी.

800 लोगों के इस गांव में एक अनोखी ‘धान रोपाई’ की प्रथा चलन में थी. इस इलाके में धान यानी चावल की खेती तो होती नहीं थी, फिर आखिर यह ‘धान रोपाई’ की प्रथा क्या थी?

दरअसल, इस प्रथा में जब भी गांव के दलित परिवार में कोई लड़की ब्याह कर आती थी तो उसे एक हफ्ते तक ठाकुर परिवार की हवेली में सेवा देनी होती थी और उस के बाद 3 दिन तक गांव के मंदिर में देवताओं को प्रसन्न करना होता था. इस के बाद ही उसे अपने पति और ससुराल वालों के साथ रहने दिया जाता था.

गांव के ऊंचे तबके का बनाया हुआ यह एक ऐसा पाखंड था, जो कई सालों से चला आ रहा था. इस प्रथा को पूरा करने के बाद कोई भी दलित औरत ऊंचे समाज के लोगों से कभी आंख नहीं मिला पाती थी. वह मानसिक और शारीरिक रूप से ऊंचे समाज की गुलामी स्वीकार कर लेती थी.

इस प्रथा के जरीए ऊंची जाति वाले दलितों का दैहिक शोषण करते थे. दलित औरतों के द्वारा अपने नाजायज बच्चे पैदा कर अपने लिए गुलाम बनाया करते थे.

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