लेखक- एस भाग्यम शर्मा
‘20 साल की लड़की 12 लोगों का खाना बनाती है और उस से उम्मीद की जाती है कि पूरे घर की साफसफाई, झाड़ूपोंछा वही लगाए, पूरे घर वालों के कपड़े धोए, देवरों को पढ़ाए.’
ससुर अफसर थे, साथ में, पत्नी के नाम से इंश्योरैंस का काम भी करते थे. पत्नी तो पढ़ीलिखी नहीं थी, सो उस का काम भी मुझ से कराना चाहते हैं. इस के अलावा मुझे कालेज भी जाना पड़ता था अपनी पढ़ाई पूरी करने.’
मेरी मम्मी मेरी हालत जान कर परेशान होतीं और पापा से कहतीं, ‘मैं बात करूं?’
पापा कहते, ‘ऐसे तो संबंध बिगड़ जाएगा. हर बात की तुम्हें जल्दी पड़ी रहती है. शादी की भी जल्दी थी, अब बात करने की भी जल्दी है.’
और लोगों ने भी मम्मी को सम झाया कि जल्दबाजी मत करो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.
सब से बड़ी बात तो सासससुर को छोड़ो, मेरे पति ने सरकारी नौकरी को छोड़ कर निजी कंपनी में नौकरी कर ली.
इतने में मैं प्रैग्नैंट हो गई. मेरी तबीयत खराब रहने लगी. ऊपर से पढ़ाई और काम करना बहुत मुश्किल हो गया. पीहर वालों की प्रेरणा से किसी प्रकार से मैं ने परीक्षा की तैयारी की. गर्भ को पूरा समय था जब मैं ने एग्जाम दिया.
बहुत मुश्किल से गरमी के दिनों में भी एग्जाम देने जाती थी.
खैर, परीक्षा खत्म होने के हफ्तेभर बाद बेटा पैदा हुआ. उस के पहले मेरी सास ही नहीं, पति और देवर भी कहते थे कि हमारे घर में लड़की होने का रिवाज नहीं है. हमारे घर तो लड़के ही होते हैं. लड़कियां चाहिए भी नहीं.
इन बातों को सुन कर मु झे बहुत घबराहट होती थी.
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मैं मम्मी से कहती, ‘मम्मी, यदि लड़की हो जाए तो ये लोग लड़ाई करेंगे?’ मम्मी परेशान हो जातीं.
वे लोग मु झे पीहर आने नहीं दे रहे थे पर मैं जिद कर के आ गई थी.
बेटा हुआ तो ससुराल वालों को सूचित किया गया. 5 मिनट के लिए सासुमां आईं.
इस के पहले मम्मी ने मेरी जन्मपत्री पंडितजी को दिखाई. उन्होंने बहुत सारे उपचार बताए. मम्मी ने सब पर खर्चा किया. पर उस से कुछ नहीं हुआ.
कोई और आया नहीं. न कोई खर्चा किया, न कोई फंक्शन. मम्मीपापा ने ही सारे खर्चे उठाए. मु झे विदा करते समय भी मम्मी ने बहुतकुछ दिया.
मम्मी नौकरी करती थीं, बावजूद छुट्टी ले कर सबकुछ करना पड़ा, जिस का मु झे बहुत दुख हुआ. ससुराल वाले आ कर मु झे ले गए.
बच्चा रोता तो उस को ले कर पति मुझे खड़े रहने को बोलते. ठंड में मैं बिना कपड़े के ही खड़ी रहती. इन परिस्थितियों में राजीव का ट्रांसफर छोटे गांव में हो गया. वे मु झे वहां ले कर गए.
यह ट्रांसफर राजीव ने जानबू झ कर कराया था ताकि मैं दूरदर्शन और आकाशवाणी में न जा सकूं.
वहां रोज मु झ से लड़ाई करते. सुबह ठंड के दिनों में 4 बजे उठ कर नहाने को कहते. ‘आज चौथ का व्रत है’, ‘आज पूर्णमासी है’, ‘आज एकादशी है…’ रोज कुछ न कुछ होता और मु झे व्रत रखने को मजबूर करते.
मु झे बहुत एसिडिटी होती थी. डाक्टर ने मु झे खाली पेट रहने को मना किया. पर मैं क्या कर सकती थी.
‘हमारे यहां तो सारी औरतें रखती हैं. तुम कोई अनोखी हो क्या? तुम्हें अपनी पढ़ाई का घमंड है.’
मैं जब भी अपनी मम्मी को चिट्ठी लिखती, तो राजीव कहते कि मैं पोस्ट कर दूंगा. मु झे लगता वे कर देंगे, मगर मम्मी ने मु झे बताया कि उन के पास कोई चिट्ठी ही नहीं आई.
मम्मी कोई चिट्ठी भेजतीं तो औफिस के पते पर पोस्ट करने को कहा जाता. मैं ने कहा कि घर के पते पर मंगाओ तो राजीव कहते कि यहां पर ठीक से पोस्टमैन नहीं आता.
मम्मी के पत्रों को भी मु झे नहीं दिया जाता. मेरे पत्रों को संदूक में बंद कर के ताला लगा जाते. इस का तो मु झे पता ही नहीं था.
एक दिन राजीव ताला लगाना भूल गए. मैं ने जो उसे खोल कर देखा तो सारे पत्र उस में थे. मु झे बहुत तेज गुस्सा आया. मैं ने राजीव से औफिस से आते ही कहा तो मु झे गालियां देने लगे और बुरी तरह से पिटाई भी की और बाहर से ताला लगा कर कहीं चले गए.
फिर मैं ने पड़ोसियों को आवाज दी और बोली, ‘‘मेरे पति मेरे सोते समय ताला लगा चले गए. अब उन के आने में देर हो रही है बच्चा रो रहा है. अब प्लीज आप ताला तोड़ दो.’’
कोई सज्जन पुरुष थे. उन्होंने ताला तोड़ दिया तो मैं उन्हें शुक्रिया कह कर जयपुर आ गई.
मम्मीपापा मु झे देख कर दंग रह गए. मेरी मम्मी को तो बहुत गुस्सा आया और वे खूब चिल्लाने लगीं. पापा मेरे सहनशील व्यक्ति थे.
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उन्होंने कहा, ‘आकांक्षा की ससुराल में सूचित कर देता हूं. ऐसे मामले में जल्दबाजी ठीक नहीं.’
ससुराल वालों ने अपने बेटे की गलती को मानने के बदले मेरी सहनशीलता को दोष दिया. खैर, हम ने कुछ नहीं किया.
पापा बोले, ‘ऐसी स्थिति में बेटी को हम बीएड करा कर पैरों पर खड़ा कर देते हैं.’
मैं बीएड की तैयारी में लग गई.
राजीव का पत्र आया कि तुम आ जाओ, सब ठीक हो जाएगा. जब उन्हें पता चला कि मैं बीएड की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही हूं तो ससुराल वालों ने राजीव को हमारे घर पर भेजा.
‘अब मैं ठीक रहूंगा, तुम्हें कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा. तुम मेरे साथ आ जाओ. मैं तुम्हें नौकरी भी करने दूंगा,’ राजीव कहने लगे.
मैं ने उन से कहा, ‘बगैर बीएड किए मैं यहां से नहीं जाऊंगी.’
राजीव उस समय तो यहां से चले गए. फिर जहां नौकरी करते थे वहां के जिले में कोर्ट केस कर दिया, ‘मेरी पत्नी को मेरे साथ आ कर रहना चाहिए. मैं चाहता हूं वह मेरे साथ रहे.’
सब लोग कहने लगे, ‘वह इतना खराब तो नहीं है. उस ने कोई लांछन नहीं लगाया तुम्हारे ऊपर.’
मेरे घर वालों ने भी कहा कि हम भी ठीकठाक ही जवाब दे देते हैं. ऐसे रिश्ते को तोड़ना ठीक नहीं है. एक बच्चा भी हो गया.’ मैं कोर्ट में गई. आमनेसामने देख कर सम झौते की बात करने लगा. वकील भी बोले, यही ठीक रहेगा. उस समय राजीव ने सारी बातें मान लीं.
तब सारे रिश्तेदारों ने मु झे सम झाया.
मेरी मम्मी तो ज्योतिष के चक्कर में पड़ गईं. बड़ेबड़े ज्योतिषाचार्य के पास गईं. सब ने कहा कि इस का यह उपचार करो, वह यज्ञ करो. यह दान दो वह दान दो. उस मंदिर में पूजा करो, वहां अर्चना करो…