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तो अभय सिंह का मन थोड़ा खिन्न हो गया. उस ने ध्यान हटाया और तेज आवाज में बोला, ‘‘खाना तो अच्छा बनाती हो. किस महल्ले में रहती हो?’’ ‘‘जी, गोमती पुल के नीचे वाली बस्ती में,’’ उजरिया धीरे से बोली. ‘‘गोमती पुल के नीचे वाली बस्ती में… पर वहां तो सब मलिन लोग रहते हैं,’’ अभय सिंह ने जल्दीजल्दी खाना खाते हुए कहा. उजरिया उस की बात सुन कर चुप रही और नीचे देखने लगी. ‘‘ठीक है… कोई बात नहीं… जहां भी रहती हो, पर कल से थोड़ा नहाधो कर और चंदन का टीका लगा कर आना… ठाकुरब्राह्मण हो तो दिखना भी तो चाहिए न… लो, हम तो बातोंबातों में तुम्हारी जाति पूछना तो भूल ही गए. ठाकुर हो कि ब्राह्मण?’’ अभय सिंह ने सवाल किया, पर उस का जवाब देने के बजाय उजरिया चुप रही. ‘‘अरे, कौन जात हो… बताओ तो सही?’’ अभय सिंह तेज आवाज में बोला. ‘‘जी, हम जात से खटीक हैं. खाना बनाना सीख लिए हैं,’’ उजरिया के गले से बड़ी मुश्किल से इतनी बात निकली. यह सुनते ही जैसे अभय सिंह को करंट लग गया, ‘‘आक… थू…’

’ अभय सिंह ने मुंह में भरा हुआ सारा दालचावल बाहर की ओर थूक दिया. उस के चेहरे पर नफरत झलक रही थी और उस की आंखों से गुस्से की चिनगारियां निकल रही थीं. उस ने चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘‘नीच जात हो कर हमें अपने हाथ का खाना बना कर खिलाती है… हमारा धर्म खराब करना चाहती है…’’ और खाने की थाली उजरिया की तरफ फेंक दी. पलभर में सभी लड़कों ने खाने की थाली नीचे फेंक दीं. ‘‘क्या रे वार्डन, तू भी इस औरत के साथ मिला है. हम को नीच जात के हाथ का खाना खिलाना चाह रहा था तू…’’ अभय सिंह ने लपक कर वार्डन का गरीबान पकड़ लिया. वार्डन ने अभय सिंह से झूठ बोल दिया कि उसे उजरिया ने अपनी जात सवर्ण ही बताई थी. अभय सिंह ने वार्डन का गरीबान छोड़ दिया और गुजरिया की ओर लपका. पंकज तिवारी भी अपनी थाली फेंक कर उजरिया की तरफ बढ़ चला था. दोनों दोस्तों की आंखें एकदूसरे से मिलीं और पंकज तिवारी ने अभय सिंह से कहा, ‘‘इस ने हम से झूठ बोल कर हमारा धर्म खराब किया है… इसे सजा तो देनी ही पड़ेगी… वही सजा, जो हमारे पिताजी गांव की औरतों को दिया करते हैं…’’

इतना कह कर पंकज तिवारी ने आगे बढ़ कर उजरिया की साड़ी का एक कोना पकड़ा और उसे उजरिया के तन से अलग करने लगा. उजरिया ने इस का विरोध किया. वह रोनेगिड़गिड़ाने लगी, पर पंकज पर उस के रोने का कोई असर नहीं हुआ. अभय सिंह और उस के सभी दोस्त एक दलित औरत के हाथ का बना खाना खा कर अपनेआप को दूषित महसूस कर रहे थे और मैस में दूसरे छात्रों के सामने अपनी बेइज्जती का बदला उजरिया से लेने के लिए उसे नंगा कर के बाहर सब के सामने घुमाना चाहते थे, जिस से बाकी छात्रों के सामने उन की धर्मांधता और कट्टरता साबित हो जाती और सवर्ण छात्रों के बीच अभय सिंह का दबदबा और भी बढ़ जाता. अभय सिंह मंडली की इस हरकत को वहां पर बैठे हुए डिमैलो ग्रुप के कुछ समर्थक छात्र भी देख रहे थे. उन लोगों की कुछ इनसानियत जागी, तो उन में से एक ने उजरिया को अभय के चंगुल से बचाते हुए अलग किया और जमीन पर पड़ी हुई उस की साड़ी पहनने को दी, जिसे उजरिया ने तुरंत ही अपने तन से लपेटना शुरू कर दिया.

‘‘तुम लोग बीच में मत आओ. हम ऊंची जाति वाले हैं, किसी नीच के हाथ का बना खाना नहीं खाते,’’ अभय सिंह नफरत भरे अंदाज में बोल रहा था. ‘‘नीच के हाथ का खाना खा नहीं सकते, पर नीच औरत को चाटने में तो तुम लोगों को बहुत मजा आता है न…’’ उजरिया का सब्र जवाब दे चुका था और विद्रोह की चिनगारी उस की आंखों में साफ नजर आ रही थी. उजरिया को इस तरह विद्रोह करता देख कर डिमैलो ग्रुप के लोगों ने उजरिया को और उकसाना शुरू कर दिया. एक लड़के ने पूछा, ‘‘तुम्हारे कहने का क्या मतलब है? खुल कर कहो… हमारे होते हुए तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.’’ उन लड़कों की शह पा कर उजरिया ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘ये लोग जो बड़े ऊंची जाति के बनते हैं और हमारे हाथ का बना खाना खाने से इनकार करते हैं, ये सिर्फ बहुरुपिए हैं, जो शराफत का चोला ओढ़ कर रात के अंधेरे में दलित लड़कियों के साथ मुंह काला करते हैं, तब इन का जाति का बड़ापन कहां चला जाता है…’’ कहे जा रही थी उजरिया. ‘‘ऐ…

क्या बके जा रही है…’’ हरीश सिंह हुनक कर बोला, तो उसे डिमैलो ग्रुप के एक तेजतर्रार लड़के ने चुप करा दिया और उजरिया को अपनी बात जारी रखने के लिए कहा. उजरिया ने अपनी बात आगे कहते हुए बताया, ‘‘गोमती नदी के पुल के नीचे जो मलिन लोगों की बस्ती है, वहां पर सभी लोग बेहद गरीब हैं और अपनी रोजीरोटी के लिए मेहनतमजदूरी करते हैं. वहां रहने वाली अनेक लड़कियां, जो अच्छी पढ़ाईलिखाई की कमी में कुछ नहीं कर पाती हैं, वे अपना जिस्म बेचने के लिए मजबूर हैं. ‘‘बस्ती में बहते हुए नाले को पार करने के बाद एक छोटा सा होटल है, जिस के पीछे के कमरे में सैक्स का धंधा होता है, जिस में काम करने वाली लड़कियां इसी मलिन बस्ती की हैं, जबकि वहां पर आने वाले कस्टमर ज्यादातर ऊंची जाति वाले लोग होते हैं. ‘‘अभी परसों ही ये तीनों भी उसी होटल के कमरे में थे और इन लोगों ने पहले तो एक दलित लड़की के साथ बारीबारी से मुंह काला किया और उस के बाद भी उन का मन नहीं भरा, तो इन तीनों ने उस बेचारी के साथ एकसाथ बहुत बुरा काम किया. ‘‘ये उस लड़की के जिस्म के हर हिस्से को अपनी जीभ से चाट रहे थे और चूम रहे थे,

बगैर इस बात की परवाह किए कि वह किस जाति या किस धर्म की है. ‘‘खाना खाते समय इन लोगों का यह जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि उसे पकाने वाली औरत किस जाति की है, पर यह बात किसी के साथ रंगरलियां मनाने से पहले क्यों नहीं सोचते? दलित औरत के हाथ का भोजन नहीं खा सकते, पर दलित औरत के जिस्म को भोगते समय इन का ऊंचापन कहां चला जाता है?’’ उजरिया की ये बातें सुन कर अभय सिंह मंडली के होश उड़ने लगे, तो उन्होंने उसे डांट कर चुप कराना चाहा, पर डिमैलो ग्रुप के लड़कों को बहुत मजा आ रहा था. उन्होंने उजरिया को अपनी बात जारी रखने के लिए कहा. उजरिया काफी गुस्से में लग रही थी. उस ने अभय सिंह की तरफ इशारा करते हुए आगे कहना शुरू किया, ‘‘आज ये वाले साहब… जो ऊंची जाति वाले बनने का ढिंढोरा पीट रहे हैं, उस दिन उस होटल के कमरे में लड़की के पैरों को अपनी जीभ से चाट रहे थे और बीचबीच में उस के मुंह के अंदर अपनी जबान डालने से भी बाज नहीं आ रहे थे…’’ उजरिया ने पंकज की तरफ उंगली दिखाते हुए कहा, ‘‘ये जो दूसरे वाले हैं, ये शायद शराब के बहुत शौकीन हैं, तभी तो उस दलित लड़की के नंगे जिस्म और सीने पर बारबार शराब फेंकते और जब वह शराब फिसल कर उस लड़की के जिस्म के निचले हिस्से में आती, तो ये अपने मुंह से उस शराब को चाटते और फिर मस्त हो जाते…’’

अभय सिंह, पंकज तिवारी और हरीश सिंह को बहुत गुस्सा आ रहा था और शर्म भी… भला इस उजरिया को उन सब की करतूतों के बारे में कैसे पता चल गया और वह भी सबकुछ ऐसे बयान कर रही है, जैसे इस ने अपनी आंखों से देखा हो. ‘‘आगे के कुछ और सीन तो बताओ न…’’ डिमैलो ग्रुप में से एक शोहदा सिसकी भरते हुए बोला. उजरिया ने आगे कहा, ‘‘फिर क्या था, ये तीनों उस अकेली लड़की के हर हिस्से को चूमतेचाटते रहे और उस के जिस्म को तब तक भोगते रहे, जब तक इन के शरीर ने इन का साथ देना नहीं छोड़ दिया.’’ अभय सिंह का गुस्सा उजरिया की बातें सुन कर रफूचक्कर हो चुका था और अब उस की जगह बेशर्मी ने ले ली थी. उस ने दावा किया कि अगर वह कोठे पर जाता है या किसी होटल में किसी लड़की के साथ रंगरलियां मनाता है, तो इस में बुरा ही क्या है? आखिर वह उन लड़कियों को उन के जिस्म की कीमत देता है और फिर वह उन लड़कियों को जबरदस्ती तो वहां नहीं लाता, वे सब तो अपनी मरजी से ही वहां आती हैं. ‘‘मरजी नहीं, वे अपनी मजबूरी से वहां आती हैं और अपना जिस्म बेचती हैं,’’ उजरिया ने हताश भाव से कहा. ‘‘पर, यह सब तुम्हें कैसे पता? और तुम्हारे बताने के ढंग से ऐसा लग रहा है कि जैसे तुम खुद एक धंधे वाली हो और उस होटल के कमरे में जाती रही हो?’’ पंकज तिवारी ने बड़ी मुश्किल से अपना सवाल किया,

 

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