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जिस के जवाब में उजरिया ने उन्हें बताया, ‘‘भला जिस्म के धंधे में बड़ी उम्र वाली औरतों की पूछ ही कहां होती है...’’ ‘‘पर, तुझे हमारे बारे में इतना सबकुछ कैसे पता?’’ ‘‘मुझे यह सब इसलिए पता है, क्योंकि जिस लड़की के जिस्म को तुम लोग उस दिन चूमचाट और नोच रहे थे, वह और कोई नहीं, बल्कि मेरी सगी बहन थी...

हम दोनों बहनें अपने कैंसर से पीडि़त पिता का इलाज कराना चाहती हैं, इसीलिए,’’ कह कर उजरिया चुप हो गई. एक दलित औरत के हाथ का बना खाना खाने से मना करने वाले लड़कों की समझ में नहीं आ रहा था कि उन्हें अब क्या करना चाहिए? भले ही आज उन्होंने एक दलित औरत के हाथ का खाना खाने से मना किया हो, पर उसी की सगी बहन के साथ तो वे अपना शरीर बांट ही चुके हैं और इन बातों से मैस के अंदर उन लोगों की काफी बेइज्जती तो हो ही चुकी थी. इतना सब कह कर उजरिया बाहर खुली हवा में आ चुकी थी. वहां उसे थोड़ा सुकून मिल रहा था.

, जबकि डिमैलो ग्रुप के लड़कों की नजरें कह रही थीं, ‘हम शर्मिंदा हैं उजरिया...’ उजरिया तेज कदमों से गोमती पुल के नीचे बनी बस्ती में पहुंच जाना चाहती थी और अपनी छोटी बहन और पिता के गले लग कर खूब रोना चाहती थी. किसी के कमरे में रखा टैलीविजन तेज आवाज में चल रहा था, जिस पर कोई नेता बोल रहा था, ‘‘हम सवर्णों की पार्टी आप सब से यह वादा करती है कि हम शोषित, वंचित और दलित लोगों का खास ध्यान रखेंगे और उन्हें समाज में ऊंचा दर्जा दिलाएंगे...’’ उस नेता की आवाज सुन कर उजरिया ने नफरत से सिर झटक दिया और उस के मुंह से निकला, ‘‘हुं...

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