लड़कियों की मकान मालकिन कम वार्डेन नीलिमा ने रोज की तरह दरवाजे पर ताला लगा दिया और बोलीं, ‘‘लड़कियो, मैं बाहर की लाइट बंद कर रही हूं. अपनेअपने कमरे अंदर से ठीक से बंद कर लो.’’

एक नियमित दिनचर्या है यह. इस में जरा भी दाएंबाएं नहीं होता. जैसे सूरज उगता और ढलता है ठीक उसी तरह रात 10 बजते ही दालान में नीलिमा की यह घोषणा गूंजा करती है.

उन का मकान छोटामोटा गर्ल्स होस्टल ही है. दिल्ली या उस जैसे महानगरों में कइयों ने अपने घरों को ही थोड़ीबहुत रद्दबदल कर छात्रावास में तबदील कर दिया है. दूरदराज के गांवों, कसबों और शहरों से लड़कियां कोई न कोई कोर्स करने महानगरों में आती रहती हैं और कोर्स पूरा होने के साथ ही होस्टल छोड़ देती हैं. इस में मकान कब्जाने का भी कोई अंदेशा नहीं रहता.

15 साल पहले नीलिमा ने अपने मकान का एक हिस्सा पढ़ने आई लड़कियों को किराए पर देना शुरू किया था. उस काम में आमदनी होने के साथसाथ उन के मकान ने अब कुछकुछ गर्ल्स होस्टल का रूप ले लिया है. आय होने से नीलिमा का स्वास्थ्य और आत्मविश्वास तो अवश्य सुधरा लेकिन बाकी रहनसहन में ठहराव ही रहा. हां, उन की बेटी के शौक जरूर बढ़ते गए. अब तो पैसा जैसे उस के सिर चढ़कर बोल रहा है. घर में ही हमउम्र लड़कियां हैंपर वह तो जैसे किसी को पहचानती ही नहीं.

सुरेखा और मीना एम.एससी. गृह विज्ञान के फाइनल में हैं. पिछले साल जब वे रांची से आई थीं तो विचलित सी रहती थीं. जानपहचान वालों ने उन्हें नीलिमा तक पहुंचाया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD4USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...