सविता के तकिए के नीचे एक महंगा मोबाइल फोन देख कर उस के पति श्यामलाल का माथा ठनक गया. उसे समझ में नहीं आया कि 6,000 रुपए महीना कमाने वाली उस की पत्नी के पास 50,000 रुपए का मोबाइल फोन कहां से आया.

सविता दूसरे घरों में झाड़ूपोंछे का काम करती थी, जबकि श्यामलाल दिहाड़ी मजदूर था. पत्नी के पास इतना महंगा मोबाइल देख कर उस के दिमाग में कई तरह के सवाल आने लगे.

इस सब के बावजूद श्यामलाल ने अपने दिल को मनाया तो जरूर, लेकिन रातभर उसे नींद नहीं आई. वह मन ही मन सोच रहा था, ‘इस के पास इतना महंगा फोन कहां से आया? इसे जगा कर पूछ लेता हूं. नहीं, अभी सोने देता हूं, बेचारी थकी होगी. कल सुबह पूछ लूंगा.’

‘‘सविता, यह किस का मोबाइल है और तेरे पास कहां से आया? यह तो काफी महंगा है,’’ अगले दिन श्यामलाल ने पूछा.

पति के हाथ में अपना मोबाइल फोन देख कर सविता के चेहरे का रंग पीला पड़ गया. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले, क्या न बोले.

‘‘मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया सविता? यह फोन है किस का?’’ श्यामलाल ने जोर दे कर पूछा.

‘‘अरे, मालकिन का है. इस में कुछ दिक्कत आ रही थी, सो उन्होंने कहा था कि इसे ठीक करवा लाओ. यह अब ठीक हो गया है तो आज उन्हें दे दूंगी,’’ यह कह कर सविता ने मोबाइल अपने हाथ में लिया और काम पर निकल गई.

लेकिन उस दिन के बाद से सविता का पति कभी उस के पास नए सोने के झुमके देखता, तो कभी पायल, कभी महंगी साड़ी, तो कभी कुछ और. एक दिन वह बड़ा और महंगा टीवी ले कर घर आई तो श्यामलाल की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने टोकते हुए कहा, ‘‘क्या है यह सब?’’

‘‘टीवी है… दिख नहीं रहा है क्या?’’

‘‘वह तो दिख रहा है मुझे, लेकिन यह आया कहां से?’’

‘‘दुकान से आया है और कहां से आएगा.’’

‘‘देखो, ज्यादा बात को घुमाओ मत और सीधेसीधे बताओ कि इतना महंगा टीवी कहां से आया? तुम्हारी कोई लौटरी लगी है क्या? ये झुमके, पायल, साड़ी और टीवी, सब कहां से आ रहे हैं?’’

श्यामलाल की बातों को सुन कर सविता ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘यह सब मेरी नई मालकिन ने दिया है. वे मेरे काम से बहुत खुश हैं. वे मुझे गिफ्ट देती हैं.’’

‘‘कोई भी मालकिन इतना महंगा गिफ्ट नहीं देती है और वह भी अपने घर काम करने वाली को.’’

‘‘आप मुझ पर शक कर रहे हैं?’’

‘‘नहीं, जो बात सच है, वही बता रहा हूं. हम दोनों जितना कमाते हैं, उस से ये सारी चीजें इस जनम में तो नहीं ही ली जा सकती हैं.’’

‘‘अब अगर कोई मुझे दे रहा है, तो आप को क्यों खुजली लग रही है? देखिए जी, मैं कोई गलत काम नहीं कर रही. आप चाहें तो मेरी मालकिन से जा कर पूछ सकते हैं,’’ श्यामलाल की बातों को सविता ने अपनी गोलमोल बातों में उलझा दिया.

श्यामलाल ने सविता की बातों को सुना तो जरूर, लेकिन वह चाह कर भी उस की बातों पर यकीन नहीं कर पा रहा था.

उधर सविता का अचानक बदला रंगढंग सभी के लिए चर्चा की बात बन गया था. उस के महल्ले वालों ने अब पीठ पीछे बातें बनानी शुरू कर दी थीं.

‘‘विमला, यह सविता ने घर पर नोट छापने की मशीन लगा रखी है क्या? कल ही नया टीवी लाई थी वह. आज देखा कि वशिंग मशीन भी. आएदिन उस के घर में एक नया सामान आ रहा है.’’

‘‘जानती हो, वे जो कान में नए झुमके पहनी थी, वे भी सोने के हैं.’’

‘‘वह तो लोगों को यही बता रही है कि उस की मालकिन उस पर मेहरबान है. भला इस तरह मालकिन लोग कब से मेहरबान होने लगी हैं हम लोगों पर? मुझे तो दाल में कुछ काला लग रहा है.’’

‘‘तुम ने तो मेरी मुंह की बात छीन ली. जरूर वह कोई गलत काम कर रही है.’’

सविता के साथ की काम करने वाली सहेलियां आपस में कानाफूसी कर रही थीं.

लोगों की बातें श्यामलाल के कानों तक भी जाती थीं. वह जब सविता से लोगों की बातें कहता, तो वह बोलती, ‘‘जलने दो. अरे, जलन नाम की भी कोई चीज होती है कि नहीं. उन की मालकिन उन के एक दिन न जाने पर पैसे काट लेती है और मेरी मालकिन मुझे गिफ्ट पर गिफ्ट दिए जा रही है. जब ऐसा होगा तो उन्हें नींद आएगी कभी? नहीं आएगी तो और वे कुछ न कुछ बातें बनाएंगी.

‘‘देखिए, अगर आप दूसरों की बातों पर भरोसा कीजिएगा, तो कभी खुश नहीं रह पाएंगे, इसीलिए कान में तेल डालिए और जिंदगी के मजे लीजिए.’’

जिस तरह से सविता ने अपने पति को यह बात कही, उसे बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी. शक तो उसे भी अपनी पत्नी पर हो रहा था कि वह जरूर कोई गलत राह पर है, लेकिन जब तक वह उसे रंगे हाथों पकड़ नहीं लेता तो उसे क्या कहता.

‘जो मैं सोच रहा हूं, वैसा बिलकुल भी न हो. और जैसा सविता कह रही है, वैसा ही हो,’ श्यामलाल मन ही मन सोच रहा था.

एक दिन की बात है. रात के 9 बज गए थे. सविता अभी तक काम से लौटी नहीं थी. श्यामलाल उस के लिए बहुत परेशान हो रहा था.

श्यामलाल उसी समय राज अपार्टमैंट्स की तरफ निकल गया, जहां सविता काम करती थी. वह तेज चाल से अपार्टमैंट्स की ओर चला जा रहा था कि तभी उस की नजर एक पुलिस की जीप पर गई. उस ने देखा कि सविता उस जीप में बैठी हुई थी.

सविता को पुलिस जीप में बैठा देख कर श्यामलाल का दिमाग चक्कर खाने लगा. पुलिस सविता को कहां ले कर जा रही है?

‘‘सविता, सविता,’’ उस ने आवाज लगाई, लेकिन पुलिस की गाड़ी तेज रफ्तार में वहां से निकल गई.

श्यामलाल पुलिस की गाड़ी के पीछे भागने लगा. भागते हुए वह पुलिस स्टेशन पहुंचा तो देखा, सविता हवालात में थी.

‘‘क्या किया तू ने? पुलिस वाले तुझे यहां क्यों ले कर आए हैं? बता, क्या किया तू ने?’’

सविता खामोश थी. उस का चेहरा पीला पड़ा हुआ था.

तभी इंस्पैक्टर उस के पास आया और पूछा, ‘‘हां भाई, तुम इस के पति हो?’’

‘‘जी साहब, मैं इस का पति हूं.’’

‘‘क्या किया है इस ने? ऐसे पूछ रहा है, जैसे तुम को कुछ पता ही नहीं. जरूर तुम लोग मिल कर रैकेट चलाते हो. अभी रुक, तेरे को भी जेल में बंद करता हूं.’’

‘‘कौन सा रैकेट साहब? आप क्या कह रहे हैं?’’

सविता का मन हमेशा से अमीर बनने का था. वह बड़े साहब लोगों के यहां काम करती. उन की लाइफ स्टाइल को देखती. उन के कपड़ों और गाडि़यों को देखती तो उस के मन में हमेशा यही आता है कि उसे भी इन महंगी गाडि़यों में बैठना है. वह भी महंगे कपड़े पहने और इन के जैसी जिंदगी जिए. लेकिन दूसरों के यहां झाड़ूपोंछा कर के महंगे शौक पूरा करना मुमकिन नहीं था, इसलिए उस ने शौर्टकट रास्ता अपनाने का सोचा.

सविता देखने में खूबसूरत थी. उस ने सोचा, ‘मेरी खूबसूरती अगर मुझे अमीर नहीं बना सकी तो फिर यह किस काम की…’

लिहाजा, सविता जहांजहां काम करने जाती थी, उस घर के मालिक को अपनी अदा से घायल करने की कोशिश करती. लेकिन कोई भी उस के झांसे में नहीं आता था.

लेकिन एक बार विवेक नाम का एक शादीशुदा शख्स उस के जाल में फंस ही गया. हुआ यों कि विवेक की पत्नी कुछ दिनों के लिए मायके गई हुई थी. उस के जाने के अगले दिन की बात है.

‘‘अरे, कोई टैंशन नहीं है मेरे भाई. आज की रात एक बार फिर से जीते हैं बैचलर वाली लाइफ. पूरी रात मौजमस्ती होगी,’’ विवेक ने अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने का प्लान बनाया था. उस रोज उन सब ने जबरदस्त पार्टी की. जब विवेक घर लौटा, तो उस के पैर लड़खड़ा रहे थे.

विवेक ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी. बस, घर पहुंच कर वह तुरंत बिस्तर पर जा कर सो गया. विवेक को घर पहुंचे अभी आधा घंटा भी नहीं हुआ था कि दरवाजे की डोरबैल बजी. सविता खड़ी थी.

‘‘साहब, मेमसाब ने कहा था कि आप के लिए रात की रोटी बना दिया करूं,’’ सविता कमरे के अंदर आते हुए बोली.

‘‘रोटी… नहीं… तुम जाओ… मैं खा कर आया हूं.’’

‘‘नहीं साहब, ऐसे कैसे चली जाऊं… मेमसाब गुस्सा होंगी मेरे ऊपर,’’ यह कह कर सविता किचन में चली गई.

विवेक सविता को रोकता रहा, लेकिन वह मानी नहीं. वैसे भी उस रोज नशा विवेक पर इतना हावी था कि वह क्या कह रहा था उसे खुद भी पता नहीं चल रहा था.

विवेक की यही हालत सविता के लिए लौटरी का टिकट बन गई. जब वह नशे की हालत में सोया था, तो वह उस के बगल में जा कर लेट गई और उस के साथ कुछ फोटो अपने मोबाइल पर खींच लिए. अगले दिन सवेरे ही सविता कहने लगी, ‘‘साहब, आप ने तो कल रात मेरी इज्जत लूट ली. मैं झूठ नहीं बोल रही हूं. मोबाइल की तसवीर तो झूठ नहीं बोलेगी न.

‘‘अरे, मैं तो वापस जा रही थी, लेकिन आप ने मुझे खींच कर अंदर बुला लिया और फिर मेरे साथ वह सब किया कि मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रही.’’

‘‘सविता, यह तुम क्या कह रही हो… यह माना कि मैं नशे में था, लेकिन मैं ने ऐसा तो कुछ नहीं किया,’’ विवेक ने कहा..

फिर विवेक के आसपास सविता ने ऐसा जाल बुना कि वह उस में फंस गया. सविता उसे ब्लैकमेल करने लगी और पैसे ऐंठना शुरू कर दिया. इन्हीं पैसों से वह रईसी करने लगी. यह सिलसिला चलता रहा,

लेकिन एक दिन विवेक की पत्नी शालिनी ने बैंक की पासबुक में देखा कि विवेक हर दूसरे दिन एक मोटी रकम खाते से निकाल रहा है, तो उसे कुछ शक हुआ. उस ने उस से पूछा, तो वह टालमटोल करने लगा. लेकिन जब उस ने अपने सिर की कसम दी, तो उस ने शालिनी को सारी बात बता दी.

‘‘मुझ से बहुत बड़ी भूल हो गई. तेरे जाने के बाद एक दिन,’’ विवेक ने सारी कहानी शालिनी को बताई. लेकिन उस के लाख कहने पर भी उसे इस बात पर यकीन नहीं हुआ कि उस के पति ने उस रोज कोई बदतमीजी सविता के साथ की होगी.

एक दिन जब फिर से सविता ने 50,000 रुपए विवेक से मांगे, तो विवेक और शालिनी ने पुलिस को बुला लिया. पुलिस को सामने देख सविता के चेहरे का रंग उड़ गया.

पुलिस ने जब अपने तरीके से सविता से पूछताछ की, तो उस ने सबकुछ उगल दिया.

‘‘साहब, गलती हो गई मुझ से. विवेक साहब बेकुसूर हैं. यह वीडियो तो मैं ने उन के नशे में होने का फायदा उठा कर बनाया था.’’

फिर क्या था, सविता पर मुकदमा चला. उसे 3 साल की सजा हो गई. जिंदगी में जल्दी कामयाब होने का शौर्टकट उस पर भारी पड़ गया.

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