मैं ने घर का दरवाजा खोल कर चाय का पानी चूल्हे पर रखा ही था कि कालबेल बज उठी.
‘कौन?’ मैं ने पूछा.
‘आंटी, मैं निधि.’
मैं ने दरवाजा खोल दिया. फिर निधि के चेहरे को ध्यान से देखने लगी. उस की सूनी बेजान आंखों को देख कर मैं ने प्यार से पुचकारा और उस के सिर पर हाथ फे रते हुए उसे गोद में उठा लिया. फिर उस के गालों को चूमती हुई बोली, ‘तू क्यों अपनी मम्मीपापा को नाराज करती है?’
‘नहीं तो,’ सहमी सिकुड़ी सी निधि मेरी आंखों में देखते हुए बोली तो मैं ने उसे जमीन पर उतारते हुए कहा, ‘निधि बेटा, सीमा तुम्हारी छोटी बहन है और छोटों को हमेशा प्यार करते हैं.’
‘उस की चिंता मत कीजिए, वह बहुत अक्लमंद और सुंदर है, आंटी,’ और उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे.
वातावरण को सहज बनाने के लिए मैं ने आवाज में कोमलता भरते हुए पूछा, ‘यह तुम से किस ने कहा?’
‘मां और पापा दोनों कहते हैं.’
‘गलत कहते हैं,’ मैं ने उस के कान के पास धीरे से कहा तो उस का चेहरा खिल उठा और वह घर में उछलकूद करने लगी.
10वीं की परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ तो सीमा अपने स्कूल में ही नहीं, पूरे प्रांत में प्रथम आई थी. अरु और शशांक को मैं बधाई देने पहुंची तो देखा, निधि कोने में गुमसुम बैठी है. उस ने 12वीं में 90 प्रतिशत अंक हासिल किए थे पर सीमा की तरह प्रांत में प्रथम नहीं आई थी.
मैं धीरे से उस के पास सरक गई, ‘निधि, तुम तो बहुत बुद्धिमान निकलीं. 90 प्रतिशत अंक हासिल करना कोई आसान बात नहीं है.’