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अरु भाभी और शशांक भैया के चेहरे के उठतेगिरते भावों को पढ़तेपढ़ते मैं सोच रही थी कि बंद मुट्ठी में रेत की तरह जब सबकुछ फिसल जाता है तब क्यों इनसान चेतता है?

बीच में ही बात काटते हुए शशांक बोल पडे़ थे, ‘नहीं डाक्टर अवस्थी, ऐसा नहीं कि हम लोग निधि को प्यार नहीं करते या हमेशा उसे मारतेपीटते ही रहते हैं. समस्या तो यह है कि निधि बहुत गंदी बातें सीख रही है.’

नन्ही निधि का छोटा सा बचपन मेरी आंखों के सामने कौंध उठा. घटनाएं चलचित्र की तरह आंखों के परदे पर आजा रही थीं.

उस दिन तेज बरसात हो रही थी. ओले भी गिर रहे थे. पड़ोस के मकान से जोरजोर से आती आवाजें सुन कर मेरा दिल दहल उठा. शशांक कह रहे थे, ‘बदमिजाज लड़की, साफसाफ बता, क्या चाहती है तू? क्या इस नन्ही सी जान की जान लेना चाहती है. छोटी बहन आई है यह नहीं कि खुद को सीनियर समझ कर उस की देखभाल करे. हर समय मारपीट पर ही उतारू रहती है.’

कमरे में गूंजती बेरहम आवाजें बाहर तक सुनाई पड़ रही थीं. निधि की कराह के साथ पूरे वेग से फूटती रुलाई को साफसाफ सुना जा सकता था.

‘पापा प्लीज, मुझे मत मारो. ऐसा मैं ने किया क्या है?’

‘पूरा का पूरा रोटी का टुकड़ा सीमा के मुंह में ठूंस दिया और पूछती है किया क्या है? देखा नहीं कैसे आंखें फट गई थीं उस बेचारी की?’

‘पापा, मैं ने सोचा सब ने नाश्ता कर लिया है. गुड्डी भूखी होगी,’ रोंआसी आवाज में अंदर की ताकत बटोरते हुए निधि ने सफाई सी दी.

‘एक माह की बच्ची रोटी खाएगी, अरी, अक्ल की दुश्मन, वह तो सिर्फ मां का दूध पीती है,’ आंखें तरेरते हुए शशांक बिफर उठे और एक थप्पड़ निधि के गाल पर जड़ दिया.

उस घर में जब से सीमा का जन्म हुआ था. ऐसा अकसर होने लगा था और वह बेचारी पिट जाती थी.

निधि का आर्तनाद सुन कर मैं सोचती कि ये कैसे मांबाप हैं जो इतना भी नहीं समझ पाते कि ऐसा क्रूर और कठोर व्यवहार बच्चे की कोमल भावनाओं को समाप्त करता चला जाएगा.

निधि बचपन से ही मेरे घर आया करती थी. जिस दिन अरु अस्पताल से सीमा को ले कर घर आई, वह बेहद खुश थी. दादी की मदद ले कर अपने नन्हेनन्हे हाथों से उस ने पूरे कमरे में रंगबिरंगे खिलौने सजा दिए.

सीमा का नामकरण संस्कार संपन्न हुआ. मेहमान अपनेअपने घर चले गए थे. परिवार के लोग बैठक में जमा हो कर गपशप में मशगूल थे. निधि भी सब के बीच बैठी हुई थी. अचानक अपनी गोलगोल आंखें मटका कर बालसुलभ उत्सुकता से उस ने मां की तरफ देख कर पूछ लिया, ‘मां, मेरा भी नामकरण ऐसे ही हुआ था?’

‘ऊं हूं,’ चिढ़ाने के लिए उस ने कहा, ‘तुम्हें तो मैं फुटपाथ से उठा कर लाई थी.’

निधि को विश्वास नहीं हुआ तो दोबारा प्रश्न किया, ‘सच, मम्मी?’

अरु ने निधि की बात को सुनी- अनसुनी कर सीमा के नैपीज और फीडर उठाए और अपने कमरे में चली गई.

अगले दिन 10 बजे तक जब निधि सो कर नहीं उठी, तब अरु का ध्यान बेटी की तरफ गया. उस ने जा कर देखा तो पता चला कि तेज बुखार से निधि का पूरा शरीर तप रहा था. आंखों के डोरे लाल थे. कपोलों पर सूखे आंसुओं की परत जमा थी. अरु ने पुचकार कर पूछा, ‘तबीयत खराब है या किसी ने कुछ कहा है?’

निधि ने मां की किसी भी बात का उत्तर नहीं दिया.

निधि का बुखार तो ठीक हो गया पर अब वह हर समय गुमसुम सी बैठी रहती थी. घर में वह न तो किसी से कुछ कहती, न ज्यादा बात ही करती थी. अपने कमरे में पड़ीपड़ी घंटों किताब के पन्ने पलटती रहती. घर के सभी सदस्य यही समझते कि निधि पहले से ज्यादा मन लगा कर पढ़ने लगी है.

एक दिन सीमा को तेज बुखार चढ़ गया. दादी और शशांक दोनों घर पर नहीं थे. अरु समझ नहीं पा रही थी कि सीमा को ले कर कैसे डाक्टर के पास जाए. तभी निधि स्कूल से आ गई. उसे भी हरारत के साथ खांसीजुकाम था. अरु सीमा को निधि के हवाले कर डाक्टर के पास दवाई लेने चली गई. वापस लौटी तो सीमा के लिए ढेर सारी दवाइयां और टानिक थे पर उस में निधि के लिए कोई दवा नहीं थी.

शाम को शशांक और दादी लौट आए. कोई सीमा की पेशानी पर हाथ रखता, कोई गोदी में ले कर पुचकारता. मां पानी की पट्टियां सीमा के माथे पर रखती जा रही थीं पर किसी ने निधि की ओर ध्यान नहीं दिया.

शाम को सीमा थोड़ी ठीक हुई तो अरु उसे गोद में ले कर बालकनी में आ गई. मैं भी कुछ पड़ोसिनों के साथ अपनी बालकनी में बैठी थी. अचानक निधि ने एक छोटा सा पत्थर उठा कर नीचे फेंक दिया तो प्रतिक्रिया में अरु जोर से चिल्लाई, ‘निधि, चल इधर, वहां क्या देख रही है? छत से पत्थर क्यों फेंका?’

अरु की तेज आवाज सुन कर मेरे साथ बैठी एक पड़ोसिन ने कहा, ‘रहने दीजिए भाभीजी, बच्चा है.’

‘ऐसे ही तो बच्चे बिगड़ते हैं. यदि अभी से नहीं रोका तो सिर पर चढ़ कर बोलेगी,’ अरु की आवाज में चिड़- चिड़ापन साफ झलक रहा था.

मैं निधि के बारे में सोचने लगी थी कि उसे भी तो सीमा की तरह बुखार था. उस का भी तो मन कर रहा होगा कोई उसे पुचकारे, उस की तबीयत के बारे में पूछे. क्योंकि सीमा के जन्म से पहले उस के शरीर पर लगी छोटी सी खरोंच भी पूरे परिवार को चिंता में डाल देती थी. लेकिन इस समय सभी सीमा की तबीयत को ले कर चिंतित थे और निधि को अपने घर वालों की उपेक्षा बरदाश्त नहीं हो पा रही थी.

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