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‘माफ कीजिएगा, आप तनुजा हैं न?’’ लड़खड़ाते शब्दों में उन्होंने पूछा.

‘‘क्यों, आप को कुछ शक है क्या?’’ तेज निगाहों से देखते हुए मैं ने पूछा.

‘‘मैं ने तुम्हारे साथ कठोर व्यवहार व अन्याय किया है, जिसे मैं कभी भूल नहीं पाया. कल तुम्हें देखने के बाद से ही मैं पश्चात्ताप की अग्नि में जल रहा हूं. मुझे माफ कर दो, तनु.’’

‘‘तनु नहीं, कुमारी तनुजा कहिए और बाहर आप मेरे नाम की तख्ती देख लीजिए,’’ निर्विकार मुद्रा में बोली थी मैं. ‘‘आप की पत्नी की तबीयत अब कैसी है? उन का खयाल रखिएगा और हो सके तो प्रत्येक 15 दिन बाद परीक्षण करवाते रहिएगा,’’ कह कर मैं ने घंटी बजा दी, ‘‘मरीजों को अंदर भेज दो,’’ चपरासी को निर्देश देती हुई बोली.

‘‘अच्छा, मैं चलता हूं, तनु,’’ मनुज ने मेरी ओर आग्रहपूर्वक देखते हुए कहा.

‘‘तनु नहीं, कुमारी तनुजा,’’ मैं ने कुमारी शब्द पर थोड़ा जोर देते हुए तीव्र स्वर में कहा. और लड़खड़ाते कदमों से मनुज चले गए.

मैं देखती रह गई. क्या यह वही व्यक्ति है जिस ने मुझे मझधार में डूबने के लिए छोड़ दिया था. किंतु यह इस समय इतना निरीह क्यों? इतना दयनीय क्यों? क्या यह सिर्फ मेरे पद के कारण है या इस के जीवन में कोई अभाव है? मुझे स्वयं पर हंसी आने लगी थी. इसे क्या अभाव होगा, जिस की इतनी प्यारी पत्नी है, पद है, मानसम्मान है.

तब तक मरीजों ने आ कर मेरी विचार शृंखला को भंग कर दिया और मैं कार्य में व्यस्त हो गई.

अतीत ने मुझे कुरेदा जरूर था किंतु अनजाने सुख भी दे गया था, क्योंकि वह व्यक्ति जिस ने मुझे अपमानित किया था, मानसिक पीड़ा दी थी, वह मेरे सामने निरीह व दयनीय बन कर खड़ा था. इस से अधिक सुख क्या हो सकता था? मेरे जीवन में एक और परिवर्तन आ गया था, वह तसवीर जिसे शादी के दूसरे दिन दोनों ने बड़े प्रेम से खिंचवाया था उसे देखे बिना मुझे नींद नहीं आती थी. उस तसवीर में उस का निरीह चेहरा मेरे आत्मसम्मान को सुख पहुंचाता था. इसलिए, अब वह तसवीर मेरे बेडरूम में लग गई थी.

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