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मालती काम से लौटी थी… थकीमांदी. कुछ देर लेट कर आराम करने का मन कर रहा था, पर उस की जिंदगी में आराम नाम का शब्द नहीं था. छोटा वाला बेटा भूखाप्यासा था. वह 2 साल का हो गया था, पर अभी तक उस का दूध पीता था.

मालती के खोली में घुसते ही वह उस के पैरों से लिपट गया. उस ने उसे अपनी गोद में उठा कर खड़ेखड़े ही छाती से लगा लिया. फिर बैठ कर वह उसे दूध पिलाने लगी थी.

सुबह मालती उसे खोली में छोड़ कर जाती थी. अपने 2 बड़े भाइयों के साथ खोली के अंदर या बाहर खेलता रहता था. तब भाइयों के साथ खेल में मस्त रहने से न तो उसे भूख लगती थी, न मां की याद आती थी.

दोपहर के बाद जब मालती काम से थकीमांदी घर लौटती, तो छोटे को अचानक ही भूख लग जाती थी और वह भी अपनी भूखप्यास की परवाह किए बिना या किसी और काम को हाथ लगाए बेटे को अपनी छाती का दूध पिलाने लगती थी.

तभी मालती की बड़ी लड़की पूजा काम से लौट कर घर आई. पूजा सहमते कदमों से खोली के अंदर घुसी थी. मां ने तब भी ध्यान नहीं दिया था. पूजा जैसे कोई चोरी कर रही थी. खोली के एक किनारे गई और हाथ में पकड़ी पोटली को कोने में रखी अलमारी के पीछे छिपा दिया.

मां ने छोटू को अपनी छाती से अलग किया और उठने को हुई, तभी उस की नजर बेटी की तरफ उठी और उसे ने पूजा को अलमारी के पीछे थैली रखते हुए देख लिया.

मालती ने सहज भाव से पूछा, ‘‘क्या छिपा रही है तू वहां?’’

पूजा चौंक गई और असहज आवाज में बोली, ‘‘कुछ नहीं मां.’’

मालती को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है वरना पूजा इस तरह क्यों घबराती.

मालती अपनी बेटी के पास गई और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘क्या है? तू इतनी घबराई हुई क्यों है? और यहां क्या छिपाया है?’’

‘‘कुछ नहीं मां, कुछ नहीं…’’ पूजा की घबराहट और ज्यादा तेज हो गई. वह अलमारी से सट कर इस तरह खड़ी हो गई कि मालती पीछे न देख सके.

मालती ने जोर से पकड़ कर उसे परे धकेला और तेजी से अलमारी के पीछे रखी पोटली उठा ली.

हड़बड़ाहट में मालती ने पोटली को खोला. पोटली का सामान अंदर से सांप की तरह फन काढ़े उसे डरा रहे थे… ब्रा, पैंटी, लिपस्टिक, क्रीम, पाउडर और तेल की शीशी…

मालती ने फिर अचकचा कर अपनी बेटी पूजा को गौर से देखा… उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उस की बेटी जवान तो नहीं हुई थी, पर जवानी की दहलीज पर कदम रखने के लिए बेचैन हो रही थी.

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